वहां ५० हजार बेरोजगार, यहाँ ५० करोड़ निराहार; ओबामा चिंताग्रस्त – मगर सिंह साहेब मस्त !!!

9
231

वहां ५० हजार बेरोजगार,यहाँ ५० करोड़ निराहार

ओबामा चिंताग्रस्त – मगर सिंह साहेब मस्त !!!

– एल. आर गान्धी

दुनिया के सबसे समृद्ध राष्ट्र का सबसे शक्ति सम्प्पन राष्ट्रपति दिवाली के अग्ले दिन जब इन्डिया की व्यापारिक राजधानी मुम्बई पहुँचे तो ‘ आम आदमी ‘ भी खास पशोपेश में पड गया कि भारत भी दुनिया की दूसरी बड़ी शक्ति के रुप में उभरते देशों की कतार में लग गया है. ‘आम आदमी’ और भी अचम्भित और हतप्रभ रह गया जब ओबामा ने अपनी भारत फेरी का मंतव्य व्यक्त करते हुए घोषणा की कि वे यहाँ मंदी के दौर से दो चार अमेरिकनों के लिए ५०,००० नौकरियां पैदा करने के उदेश्य से आए हैं. ओबामा अपने साथ अमेरिकन व्यवसाइयों की पूरी फौज ले कर आए थे ताकि भारतीय सरकार और बिग बिजनस हाउसिस से बात चीत कर अमेरिका के लिए इण्डिया में बिग बाज़ार की संभावनाओं को मूर्तरूप दिया जा सके.

बराक ओबामा को विश्व के सबसे अमीर अमेरिकनों की १०% बेरोज़गारी पर इतनी चिंता देख कर -अमेरिका के विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्र होने का आधार समझ में आ गया. वह था वहां के राजनेताओं का अपने देश और जनता के प्रति इमानदार होना . उन्हें अपनी १०% बेरोजगार जनता की फ़िक्र है और हमारे नेताओं को देश की ५० करोड़ जनता जिसे दो जून की रोटी भी नहीं मुयस्सर,हर रोज़ १४,६०० बच्चे भूख से अकाल मृत्यु के आगोश में समा जाते हैं. १८.३ लाख बच्चे अपना ५व जन्म दिन नहीं मना पाते. विश्व के ९२.५ करोड़ भूख से बेहाल लोगों में भारत के ४५.६ करोड़ लोग हैं.

२००८ में आर्थिक संकट के बाद अंतर्राष्ट्रीय नेत्रित्व ने अमीरों और उद्योगपतियों को संकट से उबारने के लिए १० अरब डालर से अधिक राशी झोंक दी जबकि गरीबी मिटाने के लिए केवल एक अरब डालर मुंबई में ओबामा ने ताज होटल में ‘ठहर ‘ कर अपने मित्र पाक को एक सन्देश दिया कि वे इण्डिया के ‘ताज में शहीद हुए ‘ हुए लोगों के साथ पूरी पूरी सहानुभूति व्यक्त करते है. मगर भारत में पाक प्रायोजित आतंक के चलते लाखों भारतीय और सुरक्षा कर्मी जो शहीद हुए उनसे उन्हें कोई सरोकार नहीं- पाक को आतक के खिलाफ लड़ाई में भी उन्होंने अपना ‘साथी’ घोषित कर दिया. जाहिर है ओबामा हो या बुश सभी अमेरिकियों को केवल और केवल अपने हित ही सर्वोपरि हैं.

मुंबई आगमन पर ओबामा के भारी भरकम जहाज़ को मेन रनवे के स्थान पर स्मालर रनवे पर उतरा गया ताकि वापसी उड़ान पर जहाज़ ऐअर पोर्ट की दिवार के साथ मीलों में फैली झुगी झोंपड- पट्टिओं के ऊपर से हो कर न गुज़रे, और भारत की दुर्दशा पर ओबामा की नज़र न पड़ जाए.इस के साथ् ही स्मलर रनवे के निकट हेलिकप्टर करियर सेवा उपलब्ध थी और ओबामा को मुम्बई भ्रमण के दौरान सडक मार्ग से दूर रखा जा सकता था- सडक मार्ग के दोनो ओर मुम्बई की बद्न्सीबी पसरी पडी है ऊंची अटालिकाओं के बीच जानवरों से भी बद्तर जीवन जी रहे झोपड पट्टि वासियों को देख दुनिया का सर्व सुख सम्म्प्पन ‘महाराजा’ क्या सोचता कि किन भिखारिओं से कुछ पाने की आस लगा बैठा.

वही मुंबई है जो देश को कुल इनकम टैक्स का ५०% देती है अर्थात यहाँ देश के ‘धनकुबेर ‘ अपनी ऊंची ऊंची अत्ताल्लिकाओं में ऐश करते है. मुंबई की दूसरी सच्चाई यह भी है कि यहाँ की ६० % जनता झुग्गी झोपड़ियों में जानवरों से भी बदतर नारकीय जीवन जीने पर बाध्य है.

दिल्ली आगमन पर हमारे भारत भाग्य विधाताओं को ”अतिथि देवो भव् ‘ में मुम्बई जैसी दिक्कत नही आइ – क्योंकी कामन वेल्थ ने दिल्ली को पहले ही चका-चक किया हुआ था . खेलों से पहले करीब करीब ३ लाख झुगी वासी निर्वासित कर दिए गए थे और बाकि को बडे बडे साइन बोर्ड़ो के पीछे छुप दिया गया था. ६०००० भिखारिओं में से ५०००० को दिल्ली की गलियों से खदेड दिया गया था. दिल्ली को देख कर कोइ भी ‘भारत’ को दुनिया की उभर्ती महान्शक्ति का भ्रम आराम से पाल सकता है. इस लिए ओबामा को सडक मार्ग ही नहीं हुमयुं का मकबरा दिखा कर ‘सच्चे लोक तन्त्र ‘ से भी रुबरू करवाया गया . ओबामा को इन्डिया की ऊंची- भव्य -विशाल और ‘आदर्श भ्रष्ट तन्त्र की प्रतीक’ अत्ताल्लिकाओं के दर्शन खूब करवाए गए मगर असली और बदनसीब भारत के पास भी फट्कने नहीं दिया.

वाह रे गालिब तेरी फाका मस्तियाँ

वो खाना सूखे टुकड भिगो कर शराब में

9 COMMENTS

  1. सर, हम आपके लेख से प्रभावित हैं और शेहमत हैं , असल भारत तो ओबामा ने देखा ही नहीं क्योकि भारत को शो ऑफ बिज़नस करने का शोक है . इससे अमेरिका को कोई फरक नहीं पड़ता , क्योकि अमेरिका अमेरिका है और भारत भारत . अमीरी दिखाने से नहीं होती असल मैं होती है . टाटा , बिरला, अम्बानी भाईयों को अमीरी दिखाने की जरुरत नहीं है क्योकि पूरा विश्व जानता है की वोह दुनिया के दश आमिर आदमियों की गिनती मैं आते हैं.
    धन्यवाद-अनिल रेजा, mumbai

  2. अजीब बात करते है आपलोग भी अरे भाई जब देश की बागडोर एक विदेशी के हाथ में गिरवी रख देगे और उस विदेशी महिला द्वारा सवा करोड़ देश का सञ्चालन एकी मनोनीत पूर्व नौकरशाह नौकरशाह द्वेअरा होगा तो फिर कैसी जबाबदेही और किसे कैसा संसद और कैसा लोकतंत्र आपलोग राजतन्त्र के अधीन ही रहने लायक है घबडाए नहीं दो चार साल में अज्प्लोग्बो के युव राज आ रहेद है वो सब दुरुस्त केर देगे जो उनके पिता और नानी और पैर नाना भी नहीं केर पाए होगे.

  3. धन गावो से शहरो मे आता है। शहरो से विदेशो मे जाता है। अमेरिका जैसे हाई-टेक मुलुको को हम टेक्नोलोजी के नाम पर ढेरो पैसा देते है। हमारी दलाल सरकारे ऐसी नितिया निर्माण करती है जिससे उनके उत्पादनो को हमारा बजार उपलब्ध होता है। और अमेरिका जैसे देश दोनो हातो से लुट कर हमे कंगाल बनाते है। ऐसी कंगाल बनाने वाली अर्थव्यवस्था के पिता मनमोहन सिंह हैं।

    उनके जिन टेक्नोलोजी में लाभ मिलना बंद हो जाता है वह हमे दान मे दे देती है। जैसे अटोमोबाईल आदि।
    हमारी हैसियत एक बडे बजार की है। अगर हमारी लिवाली न रहे तो बिकवालो का भट्टा बैठ जाएगा। लेकिन हम माल खरीद कर भी कृतज्ञ होते है और बेच कर भी कृतज्ञ होते है।

    आज की स्थिति मे दुर दुर तक रौशनी की कोई किरण नही दिखाई देती है।

  4. वहां ५० हजार बेरोजगार,यहाँ ५० करोड़ निराहार:ओबामा चिंताग्रस्त – मगर सिंह साहेब मस्त !!! – by – एल. आर गान्धी

    अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने भारत को उभरता देश नहीं बल्कि एक उभरा हुआ देश कहा.
    क्यों ?
    समृद्ध कंगाल के गले नहीं लगता. गले लगो बराबर वाले के साथ.
    ओबामा कृष्ण-सुदामा का मेल नहीं दर्शाना चाहता था.
    वह यह सन्देश छोड़ कर गए कि अमेरिका ने सौदे बराबर के देश भारत के साथ किये हैं. बराबर की चोट है – अमेरिका और भारत.

    यह भूल जायो ? ओबामा को मुंबई की झोपढ-पट्टी और दिल्ली की झुगी के विषय में कुछ नहीं पता था क्योंकि आपने उनको उधर फटकने नहीं दिया.

    जो चांदनी चौक, अमृतसर, कोलकत्ता के विलक्षण स्वरूप का वर्णनं संसद में करता है, क्या उन्हें हमारी गरीबी के बारे में brief नहीं किया गया क्या भोलेपन की बात करते हैं आप ?

    ओबामा सब जानतें हैं.

    वह देशी नेताओं को उल्लू साबित कर गए. सच स्वीकार करना पडेगा.

    इस लिए भारत को विकासशील नहीं, विकसित देश है – यह वहम-ब्रह्म फैला कर सौदे किये हैं.

    – अनिल सहगल –

  5. आपने अच्छा आलेख लिखा है। जिसके लिये साधुवाद। लेकिन सवाल यह है कि हमारे देश के राजनेता क्यों देश की जनता के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?

    जब तक देश के लोगों को स्वयं को जानने और अपनी शक्ति को पहचानने की समझ पैदा नहीं होगी, तब तक कोई दूसरा उनके लिये सोचे, यह कैसे सम्भव है?

    लोगों में यह समझ इसलिये पैदा नहीं हो पा रही है, क्योंकि हमारा देश ही तो आजाद हुआ है, हमारे देश के आम लोग तो आज भी गुलामों से बदतर हालातों में जीने को विवश हैं। जिसके लिये बहुत कुछ तो हमारी पुरातनपंथी खोखली संस्कृति के संवाहक संगठन एवं ढोंगी धर्माधिकारी भी जिम्मेदार हैं।

    इस देश में जब तक सभी को सभी वर्गों को सत्ता एवं अन्य सभी क्षेत्रों में समान भागीदारी नहीं मिलगी, तब तक हालात सुधर नहीं सकते।

    संविधान में दिये गये अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के क्रियान्वयन में असफलता के लिये जवाबदारी तय करना बेहद जरूरी है! अन्यथा इस देश में हजारों सालों की भांति 98 प्रतिशत लोग शोषित होते रहेंगे और केवल दो प्रतिशत लोग इस देश को लूटते रहेंगे।

  6. घड़े में एक छेद हो तो तो अंगुली से भी बंद किया जा सकता है ,किन्तु हज़ार छेड़ हों तो क्या कीजियेगा ?अमेरिका के लिए सब प्राईम संकट अर्थात मंदी का आंशिक संकट मात्र है ,जबकि भारत को -निरक्षरता ,आतंकवाद .कट्टर्हिदुवाद ,कट्टर मुस्लिमवाद ,कट्टर सिखवाद .कट्टर ईसाई वाद .नक्सलवाद .जातिवाद .gundawad ,महंगाई ,बेरोजगारी ,पाकिस्तान .कश्मीर .चीन तथा आंतरिक भृष्टाचार इत्यादि भयानक बीमारियों से एक साथ जूझना पड़ रहा है .सरदार मनमोहनसिंह जी पूंजीवादी अमेरका के प्रभाव में हैं यह सबको मालूम है किन्तु उनकी ईमानदारी पर विश्वाश करने का दिल करता है …

  7. रहिमन देख बड़ों को .लघु न दीजिये डार…
    जहां काम आवे सुई ,कहा करे तलवार ……
    जन सरोकारों से सम्बंधित आलेख है ……शुक्रिया …….

  8. वहां पर ओबामा को अपनी जनता को जवाबदेय बनना पड़ता है , अपने देश में काहें की चिंता , लूटने पर कोई चिंता नहीं तो इस गरीबी पर कौन चिंता करे. हम तो आँख बंद कर विश्व शक्ति बनने जा रहे हैं .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,510 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress