ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें

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-फ़िरदौस ख़ान

ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें

इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

शायद जां निसार अख्तर साहब ने किताबों को जो अहमियत दी है, उसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता। यह हकीकत है कि अच्छे दोस्तों के न होने पर किताबें ही हमारी सबसे अच्छी दोस्त साबित होती हैं। यह कहना गलत न होगा कि किताबें ऐसी पारसमणि की तरह होती हैं, जिसकी छुअन से अज्ञानी भी ज्ञानी बन जाता है। बाल गंगाधर ने कहा था-अच्छी किताबों के साथ, मैं नर्क में रहने के प्रस्ताव का भी स्वागत करूंगा। यह कहना कतई गलत न होगा कि मानव की ज्ञान पिपासा का एकमात्र साधन पुस्तकालय हैं। अमूमन हर पुस्तक प्रेमी का अपना निजी पुस्तकालय होता है, जिसमें दहाई अंक से लेकर सैकड़ों पुस्तकें हो सकती हैं, लेकिन फिर भी लोगों को सरकारी या सामुदायिक (स्वयंसेवी संस्थाओं आदि के) पुस्तकालयों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। सामुदायिक पुस्तकालयों की देखरेख संबंधित संस्थाएं करती हैं, इसलिए इनकी हालत बेहतर होती है, जबकि सरकारी पुस्तकालयों की हालत महानगरों में तो अच्छी होती है, लेकिन छोटे कस्बों और गांवों में इनके रख-रखाव की दशा बेहतर नहीं कही जा सकती। हालत यह है कि इन पुस्तकालयों में रखी किताबों को दीमक चट कर जाती है।

राजीव गांधी ग्रामीण पुस्तकालय योजना के तहत विभिन्न राज्यों के देहाती इलाकों में खोले गए पुस्तकालयों की हालत खुद अपनी कहानी बयान करती है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की याद में हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी हलके में खोली गई 51 लाइब्रेरी डेढ़ साल में ही बंद हो चुकी हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं। किताबें बंद कमरों में धूल फांक रही हैं। बेरी हलके में अगस्त 2008 में बेरी के विधायक डा. रघुबीर सिंह कादियान के एच्छिक कोष से हलके के लोगों को जागरूक करने और मानसिक विकास के लिए 51 राजीव गांधी मैमोरियल पुस्तकालय बनाए गए। सोच अच्छी थी युवा भी कुसंगति से बचने के लिए पढ़ने-पढ़ाने से जुड़ सकें और बुजुर्गों र्को भी समय काटने के लिए अध्ययन के लिए अच्छा स्थान मिल सके, लेकिन बेरी उपमंडल की 42 पुस्तकालयों को आनन-फानन में चालू कर दिया गया। इसके लिए एक लाख रुपए प्रति पुस्तकालय के हिसाब से 51 लाख रुपए का अनुदान भी दिया गया। जल्दबाजी में किताबें और फर्नीचर मंगाकर पुस्तकालय खोल दिए गए। उद्धाटन से एक दिन पहले रातों रात ही पुस्तकालय के बोर्ड भी बनवा दिए गए। यही कारण है कि आज कई गांवों में किताबें अलमारियों में बंद पड़ी हैं और कई जगह पुस्तकालयों के कमरों को ही रेस्ट हाउस बना दिया गया है, जिनमें मजदूर व आने-जाने वाले आराम करते हैं। कुछ पुस्तकालयों की इमारतें भी बदल दी गई हैं। अधिकतर पुस्तकालयों में अखबार आने भी बंद हो गए हैं, क्योंकि कई माह से भुगतान न होने से एजेंटों ने भी इन पुस्तकालयों में अख़बार डलवाना बंद कर दिया है। दुजाना गांव के पुस्तकालय में मज़दूरों का रैन बसेरा बना है, तो गुढ़ा गांव के पुस्तकालय मुख्य सड़क से अंदर चौपाल में चला गया है, जहां पहले से ही आंगनबाड़ी भी है। गांव बिरधाना में तो पुस्तकालय कर्मी ने किताबें अपने मकान के स्टोर में रख ली हैं और उन पर धूल चढ़ रही है। गांव जौंधी में तो पुस्तकालय के नाम पर सिर्फ एक इमारत ही है। ग्रामीणों को किताबों का कोई अता-पता नहीं है। अन्य गांवों के पुस्तकालयों की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है।

बेरी उपमंडल के मेन बाजार में दुकान कर रहे पेंटर सुरेश का कहना क़रीब डेढ़ साल पहले अगस्त 2008 में राजीव गांधी मैमोरियल पुस्तकालय के उदघाटन के लिए सांसद दीपेंद्र व पूर्व स्पीकर डा. रघुबीर सिंह कादयान को आना था तो बीडीओ व एडीसी कार्यालय के अफसर आए। उन्होंने रात को ही नींद से जगाकर कहा कि राजीव गांधी मैमोरियल पुस्तकालय का उदघाटन करने के लिए सुबह सांसद दीपेंद्र आ रहे हैं। पुस्तकालय के बाहर बोर्ड लगाना है और दीवारों पर भी प्रचार लिखना है। मैं रातभर काम में लगा रहा। दोपहर कार्यक्रम के बाद जब अधिकारियों से पैसे मांगे तो बोले कि ऑफ़िस में बिल भिजवा देना, अभी साहब को जाने दो। सुरेश जब 6 अगस्त 2008 को बिल काटकर सुबह ही विभाग में जब 2200 रुपए का बिल भिजवाया तो अधिकारी कहने लगे कि रख जाओ पास कराकर देंगे, लेकिन आज इस पेंटर को मात्र 2200 रुपए के लिए सैकड़ों चक्कर कटवा चुके हैं।

इसी तरह मध्य प्रदेश के विदिशा में ग्रामीण जनता को ज्ञानवर्घक पुस्तकें पढ़ाने, पढ़ाई के प्रति रूचि बढ़ाने और साक्षरता के उद्देश्य से अंचलों में खोले गए पुस्तकालय सह-संस्कृति केंद्र बंद हो गए हैं। इन पुस्तकालयों सह-संस्कृत केंद्र के लिए खरीदी गई क़रीब 82 लाख रुपये की सामग्री कहीं नष्ट हो गई और कहीं गायब होने लगी है।

शिक्षा योजना के तहत वर्ष 2003 में ग्रामीण अंचलों में पुस्तकालय सह-संस्कृति केंद्रों की स्थापना की गई थी। यह केंद्र प्राथमिक स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों, जन शिक्षा केंद्रों एवं संकुल केंद्रों में खोले गए थे। ज़िला शिक्षा केंद्र के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ज़िले में इनकी संख्या 950 थी। इनमें सामग्री खरीदने के लिए प्रति पुस्कालय 8 हजार 600 रुपये प्रदान किए गए थे। इस लिहाज से इन केंद्रों पर 81 लाख 70 हजार रुपये की राशि खर्च की गई थी। मगर बाद में केंद्र सरकार के आदेश पर इन केंद्रों को बंद कर दिया गया जिससे यह राशि व्यर्थ चली गई।

हालांकि पिछले साल सरकार ने देशभर में नए पुस्तकालय खोलने की योजना बनाई थी। इंटरनेट सुविधा से युक्त ऐसे ज्यादातर पुस्तकालय देश के ग्रामीण हिस्सों में स्थापित किए जाने थे। नए पुस्तकालय खोलने की यह योजना नेशनल मिशन ऑन लाइब्रेरीज (एनएमएल) कार्यक्रम के तहत बनाई थी। इसके तहत नए आधुनिक पुस्तकालय स्थापित किए जाएंगे। यह पुस्तकालय आधुनिक गैजेटस और इंटरनेट सुविधा से युक्त होंगे, साथ ही इनमें दूसरे पुस्तकालयों के साथ ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी भी होगी। यह पुस्तकालय अन्य पुस्तकालयों, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों से भी जुड़े होंगे। इन पुस्तकालयों का मकसद आधुनिक तकनीकी संबंधी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण बच्चों तक यह सुविधाएं मुहैया कराना है। इस योजना के लिए ग्रामीण इलाकों में स्कूलों के पास पुस्तकालय नहीं हैं, वहां इन्हें स्कूलों के नजदीक खोलने की भी सिफारिश की गई है।

बताया गया है कि संस्कृति मंत्रालय पूरे देश के सार्वजनिक पुस्तकालयों को भी नया रूप देने की योजना बना रहा है। देश के सभी सार्वजनिक पुस्तकालयों को आधुनिक उपकरणों से युक्त बनाया जाएगा। इस कोशिश को कब अमलीजामा पहनाया जाएगा, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

2 COMMENTS

  1. sahi likha apane,pustake to gyan ki jan hoti he,kabhi dokha nahi deti he,agar achchhi pustke ho to vkti jivan me kabhi nahi bhatakta he,sare dharm pustako se hi ate he,par sarkar ki tarf nahi dekhana chahiye sarkar ka har kam esa hi he aj samany vkti me pustak ke prati ruchi gati he tabhi to pustakalay khali pade rahahte he,gyan ko arjan karane ki jigyasa ka kam hona hi puskalay ke has ka karana he,bahut achchha likha,sadhuvad.

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