कांग्रेस का घोषणा-पत्रः असंभव वादों का पिटारा

-प्रमोद भार्गव- congress
कांग्रेस ने सपने दिखाने वाले असंभव वादों का घोषणा-पत्र जारी कर दिया। राहुल गांधी अपनी चुनावी सभाओं में अक्सर कहते हैं, ‘भाजपा सपने दिखाती है, जबकि हम सपने नहीं हकीकत पर भरोसा करते हैं‘। किंतु दृष्टि-पत्र के मार्फत कांग्रेस ने वादों का जो पिटारा खोला है, उनमें से ज्यादातर हास्यास्पद सपनों की ही बानगी हैं। कांग्रेस ने रियासत की इतनी रेबड़ियां बांटी हैं कि मामूली समझ रखने वाला नागरिक भी इन वादों पर भरोसा नहीं कर सकता। हालांकि अब मतदाता इतना जागरूक हो गया है कि वह वादों के खोखले दस्तावेज के आधार पर मतदान नहीं करता ? वह जानता है कि चुनावी वादों का पुलिंदा जारी करना राजनीतिक दलों के लिए एक रस्म अदायगी भर है। बावजूद यह अच्छी बात है कि कांग्रेस ने दृष्टि-पत्र जारी तो किया, क्योंकि अचरज में डालने वाली खबर है कि भाजपा इस बार अपना घोषणा-पत्र जारी नहीं करने जा रही। भजपा ऐसा करती है तो यह स्थिति रहस्यपूर्ण व संदेह पैदा करने वाली है ? कहीं ऐसा न हो कि चुनाव परिणाम उसके पक्ष में आ जाएं और वह समावेशी विकास के बदले, एकपक्षीय विकास की पगडंडी पर चल पड़े ?
कांग्रेस के लोक-लुभावन वादों में अजीबोगरीब वादा 70 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य, आवास और पेंशन सुविधा देने का है। यह सबसे बड़ा और असंभव वादा है। इस वादे से यह भी साफ होता है कि देश के 81 करोड़ मतदाताओं में से आज भी 70 करोड़ मतदाता बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बीते दस साल कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार केंद्र में काबिज है, इसलिए यदि वह 70 करोड़ लोगों को उपरोक्त बुनियादी संविधाओं से वंचित मानती है तो इससे साफ होता है कि तथाकथित विकास ने समावेशी लक्ष्य की पूर्ति नहीं की ? इस वादे में भी कुटिल चतुराई बरतते हुए घोषणावीरों ने दुविधा का पेंच जोड़ दिया है। पत्र में कहा गया है कि इन जरूरतों को व्यक्ति को कानूनी अधिकार देकर पूरा किया जाएगा। मसलन कांग्रेस के ये वादे शिगूफा भर हैं। वह इन्हें शिक्षा और भोजन के अधिकार की तरह महज कानून बनाकर पूरा कर लेना चाहती है। लक्ष्यपूर्ति के ऐसे हवाई भरोसे मतदाता में अब उम्मीद जगाने की बजाय, संदेह पैदा करते हैं।
जिन नरेंद्र मोदी पर भाजपा आज इतरा रही है और जिन्हें विकास-पुरुष का दर्जा देने के साथ देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर दिया गया है, इन्हीं मोदी के आदर्श गुजरात की पड़ताल करते हैं। गुजरात दृष्टि-पत्र में मोदी ने वादा किया था कि गरीबों के लिए 50 लाख घर बनाए जाएंगे। इनमें से 28 लाख नगरों में और 22 लाख गांवों में बनाए जाएंगे। राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री समृद्धि योजना के तहत 4,400 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान भी किया है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह काम कछुआ चाल से चल रहा है। 15 लाख घर अब तक बन जाने चाहिए थे, लेकिन विडंबना यह रही कि एक लाख भी नहीं बने ? जाहिर है, जब आदर्श राज्य के पुरोधा घर देने के सपने को पूरा नहीं कर पाए तो कांग्रेस 70 करोड़ लोगों को आवासीय सुविधा कैसे हल कराएगी ? महज कानून बना देने से आवास और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का लक्ष्य पूरा होने वाला नहीं है ?
इसी तरह कांग्रेस ने हर साल 10 करोड़ नए रोजगार देने का वादा किया है। लेकिन रोजगार के अवसर कैसे पैदा किए जाएंगे, इसका कोई हवाला दृष्टि-पत्र में नहीं है। इतना जरूर कांग्रेस का कहना है कि रोजगार सृजन के लिए आर्थिक विकास दर को 8 से 10 फीसदी तक पहुंचाना होगा। लेकिन यह इस उंचाई तक पहुंचेगी कैसे इसका कोई उल्लेख नहीं है। दरअसल हमारे यहां केंद्र की सरकार हो अथवा राज्य सरकारें ईमानदारी से रोजगार के अवसर पैदा करने के उपाय किए ही नहीं गए ? इस बहाने प्राकृतिक संपदा के दोहन का सिलसिला तेज करने की जरुर कोशिशें की जाती रही हैं। हकीकत भी यही र्है कि अंततः आधुनिक और औद्योगिक विकास का पूरा एजेंडा कृषि और खनिज पर टिका है। परंतु विडंबना देखने में यह आ रही है कि खेती घाटे का सौदा हो गई है और किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। खेती किसानी से जुड़े 70 करोड़ लोगों में से 10 करोड़ लोग आजीविका का यदि वैकल्पिक साधन मिल जाए तो तुरंत खेती छोड़ने को तैयार हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि किसान की माली हालत सुधारने की बात किसी भी दल के राजनीतिक अजेंडे में शामिल नहीं है। अच्छा हो, उद्यमिता और कौशल विकास के नाम पर हमने जो ढांचा खड़ा किया है और बेवजह के प्रशिक्षण देने में लगे हैं, उस धन को छोटी जोत वाले किसानों को पेंशन के रुप में दिया जाए ? इसी तरह शिक्षित बेरोजगारों की अपेक्षा पूर्ति के लिए नौकरी की उम्र घटाई जाए और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन में कटौती हो ? आज सेवानिवृत्त प्राध्यापक और राजपत्रित अधिकारी को 50 हजार रुपए से भी ज्यादा पेंशन फिजूल में दी जा रही है।
समावेशी सोच के बिना सामाजिक न्याय किसी को मिलने वाला नहीं है। कांग्रेस की तरह अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने भी हर साल एक करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, क्या दे पाए ? जबकि अटल सरकार से लेकर मनमोहन सिंह सरकार तक लंबे समय आर्थिक विकास दर 8 से 9 फीसदी रही है। पर इस दौरान जितनी भी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षणों की रिपोर्टें आई हैं, उनके आंकड़ों से पता चलता है कि इस बीच संगठित क्षेत्र में नहीं, असंगठित क्षेत्र में ही रोजगार बढ़े हैं। इनमें भी मानदेय मामूली और अनियमित रहा है। इसीलिए मौजूदा विकास को रोजगारविहीन विकास के तमगे से नवाजा जा रहा है। दरअसल, बुनियादी समस्याओं का हल नीतिगत बदलाव, पर्याप्त धनराशि और भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन के बिना संभव ही नहीं है। इन बदलावों के प्रति आम आदमी पार्टी छोड़ कोई भी दल प्रतिबद्ध दिखाई नहीं देता।
कालेधन की वापसी से तमाम बुनियादी समस्याओं के हल को जोड़कर देखा जा रहा है। इसलिए इस लोकसभा चुनाव में कालाधन भी चुनावी मुद्दा बनता दिखाई दे रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस ने भी कालेधन की वापिसी के लिए विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने की बात अपने दृष्टि-पत्र में कही है। लेकिन विरोधाभासी सोच यह है कि उसी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार शीर्ष न्यायालय में इस मसले पर ‘विशेष जांच दल’ के गठन का विरोध कर रही है। लेकिन यह अच्छी बात है कि अदालत ने कांग्रेस की याचिका खारिज करते हुए एसआईटी के गठन का रास्ता खोल दिया। अदालत ने यह भी कहा कि पिछले छह दशक से कालाधन विदेशी बैंकों से निकालने के कोई कारगर उपाय नहीं किए गए। बहरहाल, कालाधन वापिस आता है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी ?
कांग्रेस की आरंभ से ही सोच रही है कि देश में आर्थिक उदारवादी विकास के साथ समाजवादी मॉडल को भी गति मिलती रहे। लिहाजा विदेशी पूंजी निवेश के जरिए उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य भी घोषणा-पत्र में रखा गया है। दरअसल, कांग्रेस औद्योगिक घरानों को यह भरोसा देना चाहती है कि वह आर्थिक सुधार के लंबित प्रस्तावों को ठोस धरातल देने की इच्छा रखती है। इस लिहाज से पर्यावरणीय मंजूरी में तेजी लाने की बात कही गई है। किंतु पर्यावरण-संरक्षण और वन सुरक्षा कानूनों के अमल, विस्थापितों के पुनर्वास पर स्पष्ट खामोशी है। यह विरोधाभास क्यों ? ऐसा एकतरफा विकास सामाजिक न्याय की कसौटी पर खरा उतरने वाला नहीं है। इस बाबत भाजपा के प्रति भी शंकाएं हैं। जैसी कि खबर है कि भाजपा घोषणापत्र ला ही नहीं रही, तो ये शंकाएं और गहरा जाती हैं ? क्योंकि भाजपा के जिस गुजरात मॉडल को आदर्श माना जा रहा है, उसकी बुनियाद भी इसी नव उदारवाद पर टिकी है। मोदी को औद्योगिक घराने मनमोहन से कहीं ज्यादा अपनी इच्छाओं के अनुरूप मान रहे हैं। यही वजह है कि मोदी, अरविंद केजरीवाल द्वारा पूछे गए उस सवाल का जवाब नहीं देते, जिसमें गैस की कीमत मुकेश अंबानी 4 रुपए प्रति डॉलर से बढ़ाकर 8 रुपए प्रति डॉलर करने जा रहे हैं।
हालांकि कांग्रेस ने घोषणा-पत्र जारी करते हुए निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों की परवाह नहीं की। आयोग ने हिदायत दी थी कि दल, लोक-लुभावन वादों से बचें। साथ ही जो वादे किए जाएं, उन्हें पूरा करने के आर्थिक स्त्रोत भी उजागर करें। बहरहाल कांग्रेस ने असंभव वादों का पिटारा खोलकर एक तरह से आयोग की हिदायतों को नजरअंदाज किया है। नैतिक तकाजे का यह उल्लंघन देश की सबसे पुरानी और प्रमुख पार्टी के लिए ठीक नहीं है ?

1 COMMENT

  1. वादों की खुराक पिलाने में कोई पीछे नहीं.उन्हें पता है की अगले चुनाव से पहले इनके विषय में पूछने वाला कोई नहीं.सब दल एक ही पंक्ति में खड़े नज़र आते है.फिर कांग्रेस को तो पता ही है कि उसके कार्यकाल का खाता उसे वोट नहीं दिलाएगा.वैसे भी यूपी ऐ २ की सरकार थकी थकी नजर आ रही थी.इन हालात में अब ऐसे असम्भव वादे करने में कोई परेशानी नहीं.उन्हें तो बार बार सदन में हल्ला गुल्ला कर काम को रोकना है जिसका जिक्र घोषणा पत्र में नहीं किया जिसका कि वे यह कर कर सकते थे कि हारने पर यह किया जायेगा.

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