देश के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस

21 अक्टूबर 1943 का दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण दिन है। क्योंकि इसी दिन भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्र भारत की पहली सरकार की स्थापना की थी। इस प्रकार आज का दिन भारतीय इतिहास में भारत के पहले प्रधानमंत्री के द्वारा शपथ लिए जाने का दिन है। भारत के इतिहास में कई सौ वर्ष के पश्चात किसी तेजस्वी हिंदू नायक ने पहली बार ऐसा साहस किया था जिसने अपने आपको भारत का प्रधानमंत्री घोषित किया हो । इस प्रकार यह भारत की हिंदू चेतना के प्रतीक दिवस के रूप में भी याद किए जाने योग्य दिन है। अबसे पहले 1674 में शिवाजी महाराज ने अपने आपको हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक के रूप में राजा घोषित किया था। 21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा तो की ही थी साथ ही नए सिरे से आजाद हिंद फौज का गठन करके उसमें नई स्फूर्ति थी पैदा की थी। यह उस समय की घटना है जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और हिटलर व नेताजी सुभाष चंद्र बोस दोनों ही भारत की विदेशी सरकार अर्थात ब्रिटिश हुकूमत के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुके थे। हिटलर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से ब्रिटिश सरकार उस समय कांपती थी। उस समय सारा विश्व जहां कांग्रेसी नेतृत्व में लड़े जा रहे युद्ध को नगण्य मानता था, वहीं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के ओजस्वी नेतृत्व के अंतर्गत क्रांतिकारी ढंग से लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम को सारा संसार कौतूहल और आश्चर्य की दृष्टि से देख रहा था । इसलिए नेताजी के द्वारा यदि उस समय अपनी सरकार बनाने की घोषणा की गई तो यह समकालीन विश्व की बहुत बड़ी घटना थी। जिसे कांग्रेस के नेतृत्व ने आजादी के बाद इतिहास की कीचड़ में फेंकने का काम किया। नेताजी के आवाहन पर उस दिन भारतीय स्वतंत्रता लीग के प्रतिनिधि सिंगापुर के कैथे सिनेमा हाल में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की ऐतिहासिक घोषणा सुनने के लिए एकत्र हुए थे। लोगों में अपने देश की पहली स्वतंत्र सरकार बनाने की इतनी प्रबल इच्छा और उत्साह था कि जिस हॉल में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ था वह खचाखच भर गया था। लोगों के खड़े होने तक के लिए कहीं जगह नहीं थी। उस दिन आजाद हिंद फौज के सभी सैनिकों में अपने देश के भावी प्रधानमंत्री अर्थात नेताजी सुभाष चंद्र बोस की झलक पाने की भी प्रबल इच्छा देखी जा रही थी। शाम के सही 4:00 बजे नेताजी सुभाष चंद्र बोस मंच पर प्रकट हुए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपना ऐतिहासिक भाषण देना आरंभ किया वास्तव में यह उनकी एक महत्वपूर्ण घोषणा तो थी ही साथ ही ब्रिटिश सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती दी थी। सारी दुनिया ने नेताजी के उन शब्दों को बड़े ध्यान से सुना था। क्योंकि उस दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं बल्कि आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बोल रहा था । जिसके शब्दों और भाषण में ओज और तेज भरा हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह ऐतिहासिक भाषण मात्र 1500 शब्दों में लिखा गया था। जिसे नेताजी ने 2 दिन पहले ही तैयार कर लिया था। लोगों की धड़कनें में बढ़ती जा रही थीं। एक एक शब्द को वे बड़े ध्यान से सुन रहे थे। हर नए वाक्य के साथ उन्हें लगता था कि नेता जी इस बार क्या कहने वाले हैं ? नेता जी ने अपने भाषण में स्पष्ट किया था कि “अस्थायी सरकार का काम होगा कि वह भारत से अंग्रेजों और उनके मित्रों को निष्कासित करे। अस्थायी सरकार का ये भी काम होगा कि वह भारतीयों की इच्छा के अनुसार और उनके विश्वास की आजाद हिंद की स्थाई सरकार का निर्माण करे।” नेताजी कई ने संक्षिप्त परंतु ओजस्वी शब्दों में स्पष्ट कर दिया गया था कि उनकी सरकार का उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ना है । इतना स्पष्ट संदेश कांग्रेस के किसी भी नेता ने कभी विदेशी सरकार को दिया नहीं था। अंग्रेजों को उस समय केवल नेताजी सुभाष चंद्र बोस से ही यह अपेक्षा थी कि वह ऐसी चुनौती उन्हें दे सकते हैं, और आज मां भारती का यह शूरवीर पुत्र अंग्रेजों की इसी अपेक्षा पर खरा उतरता जा रहा था। उस समय की अंग्रेज सरकार और कांग्रेस या उन जैसे अन्य विचारधारा के दल चाहे नेता जी के कितने ही विरुद्ध क्यों ना हों, परंतु हर देशभक्त नागरिक जहां से भी और जिस प्रकार भी नेताजी के इस ऐतिहासिक कार्यक्रम से जुड़ा हुआ था , वह गर्व और गौरव के मारे उछल रहा था। उस समय की परिस्थितियों के दृष्टिगत भारत का प्रधानमंत्री बन्ना जहां बहुत महत्वपूर्ण था वहीं उस समय का विदेश मंत्री और युद्ध मंत्री भी बहुत ही सुलझा हुआ होना अपेक्षित था। यही कारण था कि इस सरकार में प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री और युद्ध मंत्री का दायित्व भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही संभाला । युद्ध मंत्री का मंत्रालय उस समय की परिस्थितियों के अनुसार बनाया गया था । यह किसी भी देश की सरकार में स्थाई मंत्रालय नहीं होता । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे और यदि कोई यह पूछे कि भारत का पहला विदेश मंत्री कौन था तो उसका उत्तर भी यही होगा कि वह भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। इसके अलावा इस सरकार में तीन और मंत्री थे। साथ ही एक 16 सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति का गठन भी किया गया था। आज हम भारत के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ लेते हुए अपने मंत्रियों को देखते हैं। परंतु उस समय एक नई बात स्थापित की गई थी कि सभी मंत्री गण भारत के प्रति निष्ठावान रहेंगे। स्वतंत्र भारत में भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया जाना अपेक्षित था। सदियों के पश्चात इस प्रकार के होने वाले आयोजन को लोग बहुत ही उत्साह और भावुकता के साथ देख रहे थे । अनेकों लोगों की आंखों में उस समय आंसू स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली तो उस समय तो दृश्य और भी अधिक भावुक हो गया था। चारों ओर उस समय गहरा सन्नाटा छा गया था। लोग एक ऐतिहासिक दृश्य को अपनी नजरों से निस्तब्ध होकर देख रहे थे। फिर सुभाष की आवाज गूंजी, “ईश्वर के नाम पर मैं ये पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ निवासियों को स्वतंत्र कराऊंगा।“ नेताजी के एक वाक्य में ही यह स्पष्ट हो गया था कि वह राजसुख भोगने के लिए शपथ नहीं ले रहे थे नहीं उन्हें इस बात का उतावलापन था कि वह स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और इतिहास उनका इस रूप में गुणगान करेगा ? उन्होंने शपथ के साथ ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत के प्रधानमंत्री इसलिए बन रहे हैं कि उन्हें यहां से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ कर फेंकना है और अपना देश आजाद कराना है। यह बात उन जैसा साहसिक नेतृत्व ही कह सकता था कि वह भारत को आजाद कराने के लिए भारत के प्रधानमंत्री बन रहे हैं। वास्तव में इतना साहस दिखाना भारत को राजनीतिक, सामाजिक और प्रत्येक दृष्टिकोण से एक सक्षम व समर्थ राष्ट्र के रूप में खड़ा करने के समान था । नेताजी ने यह भली प्रकार समझ लिया था कि गांधीजी का चरखा और गांधीजी की चरखा नीति दोनों ही असफल हो चुके हैं। इसलिए अब अपनी सरकार बनाकर अवैध रूप से काम कर रही सरकार को यहां से उखाड़ फेंकना ही एकमात्र रास्ता है ? जिसके द्वारा देश को आजाद कराया जा सकता है। ब्रिटिश सत्ता और कांग्रेस दोनों ही नेता जी के इस साहसिक कार्य को कोस रहे थे। तभी तो आजादी के बाद कांग्रेस की बनने वाली पहली नेहरू सरकार ने भी अपने आका अंग्रेजों के अनुसार ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन और उनके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को विस्मृत करने का हर संभव प्रयास किया। नेता जी ने अपना पहला वाक्य बोल तो दिया परंतु उसके बाद नेताजी रुक गए। उनकी आवाज भावनाओं के कारण रुकने लगी। आंखों से आंसू बहकर गाल तक पहुंचने लगे। उन्होंने रूमाल निकालकर आंसू पोंछे। बताया जाता है कि उस समय हर किसी की आंखों में आंसू आ गए। कुछ देर सुभाष को भावनाओं को काबू करने के लिए रुकना पड़ा।फिर उन्होंने पढ़ना आरम्भ किया, “मैं सुभाष चंद्र बोस, अपने जीवन की आखिरी सांस तक स्वतंत्रता की पवित्र लड़ाई लडता रहूंगा। मैं हमेशा भारत का सेवक रहूंगा। 38 करोड़ भाई-बहनों के कल्याण को अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझूुंगा।” नेताजी के इन ओजस्वी शब्दों को सुनकर अनेकों लोग उस समय भावुकतावश जोर से रोने लगे थे। देशभक्ति का ऐसा वातावरण चारों ओर बन गया था कि कोई भी उस समय अपने आंसू रोक नहीं पाता। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भली प्रकार यह जानते थे कि उनका संकल्प आजादी प्राप्त करने के बाद ही समाप्त नहीं हो जाएगा बल्कि वह आजादी के बाद भी यथावत बना रहेगा। क्योंकि स्वतंत्रता को छीनने वाली शक्तियां देश के भीतर भी किसी न किसी रूप में मौजूद रहेंगी। तभी तो उन्होंने अगले वाक्य में यह स्पष्ट कर दिया कि “आजादी के बाद भी मैं हमेशा भारत की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने रक्त की आखिरी बूंद बहाने को तैयार रहूंगा.” नेताजी के भाषण के बाद देर तक “इंकलाब जिंदाबाद”, “आजाद हिंद जिंदाबाद” के आसमान को गूंजा देने वाले नारे गूंजते रहे।देश की इस पहली सरकार के मंत्रियों / पदाधिकारियों का विवरण इस प्रकार है :- सुभाष चंद्र बोस – राज्याध्यक्ष, प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेश मंत्रीकैप्टेन श्रीमती लक्ष्मी – महिला संगठनएसए अय्यर – प्रचार और प्रसारणलै. कर्नल एसी चटर्जी – वित्तलै. कर्नल अजीज अहमद, लै, कर्नल एनएस भगत, लै. कर्नल जेके भोंसले, लै. कर्नल गुलजार सिंह, लै. कर्नल एम जैड कियानी, लै. कर्नल एडी लोगनादन, लै. कर्नल एहसान कादिर, लै. कर्नल शाहनवाज (सशस्त्र सेना के प्रतिनिधि), एएम सहायक सचिव, रासबिहारी बोस (उच्चतम परामर्शदाता), करीम गनी, देवनाथ दास, डीएम खान, ए, यलप्पा, जे थीवी, सरकार इशर सिंह (परामर्शदाता), एएन सरकार (कानूनी सलाहकार। बोस की इस सरकार को उस समय आधा दर्जन से अधिक देशों ने तुरंत मान्यता प्रदान कर दी थी। जिनमें जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, इटली, मांचुको और आयरलैंड का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिए। नेताजी उन द्वीपों में गए। उन्हें नया नाम दिया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा गया। 30 दिसंबर 1943 को इन द्वीपों पर आजाद भारत का झंडा भी फहरा दिया गया।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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