यों तो धीरे धीरे हमारे समाज में यूं भी संयुक्त परिवार समाप्त होते जा रहे हैं, कुछ तो देस- विदेश नौकरियों की वजह, तो कुछ अपनी अपनी ईच्छाएं और चाहतों की वहज! और अब सरकार की नीतियां भी कह रहीं या यों कहिए कि विवश कर रही है कि संयुक्त परिवार ना रहे!
जी हां एक घर-परिवार एक एलपीजी कनेक्शन की व्यवस्था यानी कि संयुक्त परिवार ना रह पाए।
देशभर में यह व्यवस्था लागू कर दी गई है। अखबारें में छापकर और सूचना देकर एक घर में एक से अधिक कनेक्शन वाले परिवारों को अतिरिक्त कनेक्शन सरेंडर करने को कह या यों कहिए कि आदेश दे दिया गया है। अब एक घर में दो से अधिक गैस सिलेंडर नहीं रह पाऐंगे। तो बड़ा परिवार कैसे पकाएगा खाना ? कोई इंतजाम ? कोई विकल्प ?
बड़ा परिवार, अगर बहुत बड़ा न कहें और सिर्फ संयुक्त परिवार की व्याख्या करें, सिर्फ तीन पीढ़ियों की। कम से कम दो बुजुर्ग माता- पिता, दो बेटे (बेटे ही अगर हैं तो), दो बहुए और इनके कुल चार बच्चे। यानी कुल मिलाकर दस लोग। ऐसा परिवार तो आज भी हमारे यहां बहुतायत से मेट्रो में भले ना मिले पर अन्य शहरों, छोटे शहरों और कस्बों में तो हंसी खुशी रहते हुए अक्सर मिल ही जाते हैं। और इस परिवार में एकाध काम करने वाले और एकाध अतिथि को जोड़ दिया जाए तो कैसे 12 लोगों की रसोई पकेगी मात्र दो सिलेंडरों से ?
और वह भी तब जबकि अधिकतर गैस एजेंसियां 20 या कम से कम 15 दिनों से पहले दोबारा गैस की बुकिंग का नंबर नहीं लगातीं ! उस पर तुर्रा यह कि गैस सिलेंडर की डिलीवरी छोटे शहरों, कस्बों को तो छोड़ दें, राज्य की राजधानी पटना जैसे शहरों में भी बुकिंग के 5-7 दिनों बाद ही की जाती है।
तो अंदाजा लगाइये कि 2-3 संख्या वाले परिवार में लगभग एक माह चलने वाला एक गैस सिलेंडर संयुक्त परिवार में कितने दिनों चलेगा ? 15-16 दिन तो काफी हुए न ?
इस पर खबर यह है कि सबसिडी दरों वाली गैस सिलेंडरों की एक कनेक्षन पर सालाना संख्या भी सरकार जल्दी ही कम करने वाली है। यानी कि अब संयुक्त परिवार में रहने वालों को जिसे औसतन साल में 20 से 24 गैस सिलेंडरों की जरूरत होगी, वह अब अधिक मूल्य चुकाएगा।
कुल मिलाकर एलपीजी गैस कनेक्शन की नई नीति यही कहती है कि या तो घर में ‘चोरी’ से अधिक सिलेंडर रखिए या फिर संयुक्त परिवार में रहिए ही मत ! वरना नहीं पक पाएगी रसोई !