समाज

शहरों की ओर युवाओं का बढता पलायन चिंताजनक


डा वीरेन्द्र भाटी मंगल


आज गांव का युवा शहरों की और बेतहाशा  दौड़ा चला जा रहा है। जहां आकर कुछ समय बाद उसको अपना जीवन बंधा सा लगता है. यहां न तो गांव जैसा वातावरण है और न ही खान-पान की जीवन शैली। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है जिसकी आत्मा आज भी गांवों में बसती है किंतु वर्तमान समय में ग्रामीण युवाओं का बड़े पैमाने पर शहरों की ओर पलायन एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्या बनता जा रहा है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आधुनिक जीवनशैली और बेहतर भविष्य की तलाश में गांव का युवा शहरों की ओर आकर्षित हो रहा है। यह प्रवृत्ति जहां एक ओर शहरीकरण को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी ओर गांवों की सामाजिक संरचना को कमजोर कर रही है।


ग्रामीण पलायन का सबसे प्रमुख कारण रोजगार की कमी है। आज भी अधिकांश गांवों की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, किंतु खेती अब उतनी लाभकारी नहीं रही। छोटी जोत, बढ़ती लागत, जल संकट और बाजार की अनिश्चितता ने कृषि को जोखिम भरा बना दिया है। ऐसे में युवाओं को खेती में भविष्य दिखाई नहीं देता। उद्योगों, कारखानों और सेवा क्षेत्र की सुविधाएं गांवों में सीमित होने के कारण युवाओं के पास शहरों की ओर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।


शिक्षा भी पलायन का एक बड़ा कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। अच्छे कॉलेज, विश्वविद्यालय और कोचिंग संस्थान प्रायः शहरों में ही स्थित हैं। युवा बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर जाते हैं और फिर वहीं रोजगार मिलने पर स्थायी रूप से बस जाते हैं। इससे गाँवों में शिक्षित और कुशल युवाओं की कमी होती जा रही है।


स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव भी ग्रामीण पलायन को बढ़ावा देता है। गाँवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर, आधुनिक उपकरण और आपातकालीन सुविधाएँ सीमित हैं। गंभीर बीमारी की स्थिति में शहर जाना मजबूरी बन जाती है। बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षित जीवन की चाह में युवा और उनके परिवार शहरों को अधिक उपयुक्त मानने लगे हैं। आधुनिक जीवनशैली और सामाजिक आकर्षण भी इस समस्या को गहरा कर रहे हैं। शहरों की चकाचैंध, तकनीक, मनोरंजन, सुविधाएं और उपभोक्तावादी संस्कृति युवाओं को अपनी ओर खींचती है। सोशल मीडिया और फिल्मों के माध्यम से शहरी जीवन को सफलता और सम्मान का प्रतीक बताया जाता है, जबकि ग्रामीण जीवन को पिछड़ा और संघर्षपूर्ण दिखाया जाता है। इसका प्रभाव युवाओं की मानसिकता पर पड़ता है और वे गाँव छोड़ने को ही प्रगति मानने लगते हैं।


ग्रामीण युवाओं के पलायन के दुष्परिणाम अत्यंत चिंताजनक हैं। सबसे पहले, गांवों में श्रम शक्ति की कमी हो जाती है। खेती और परंपरागत व्यवसायों में काम करने वाले युवा कम हो रहे हैं, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है। गांवों में बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे ही अधिक रह जाते हैं, जिससे सामाजिक संतुलन बिगड़ता है। दूसरी ओर, शहरों पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है। आवास की समस्या, झुग्गी-झोपड़ियों का विस्तार, बेरोजगारी, प्रदूषण, यातायात और अपराध जैसी समस्याएँ गंभीर होती जा रही हैं। शहरों में आए कई ग्रामीण युवा अपेक्षित रोजगार और जीवन स्तर प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे वे शोषण, असुरक्षा और मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं।


इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब ग्रामीण विकास को वास्तविक प्राथमिकता दी जाए। गांवों में रोजगार के अवसर सृजित करना सबसे आवश्यक है। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आधुनिक तकनीक, सिंचाई सुविधाएं, उचित समर्थन मूल्य और बाजार तक सीधी पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां और स्टार्टअप को बढ़ावा देना चाहिए।
शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार भी अनिवार्य है। गांवों में गुणवत्तापूर्ण स्कूल, कॉलेज, आईटीआई और कौशल विकास केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए, ताकि युवा अपने क्षेत्र में ही शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। टेलीमेडिसिन, मोबाइल हेल्थ यूनिट और बेहतर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जा सकता है। इसके साथ ही, ग्रामीण जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना भी आवश्यक है। गांवों की संस्कृति, परंपरा और सामुदायिक जीवन को सम्मान और महत्व दिया जाना चाहिए। मीडिया और शिक्षा के माध्यम से यह संदेश दिया जाए कि विकास केवल शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि गाँव भी आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सकते हैं।


 ग्रामीण युवाओं का शहरों की ओर पलायन केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की गंभीर समस्या है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो गांव खोखले हो जाएंगे और शहर असहनीय बोझ से दब जाएंगे। संतुलित विकास, मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अवसरों की समान उपलब्धता ही इस चिंताजनक प्रवृत्ति को रोक सकती है। तभी भारत की आत्मा गांवों में सुरक्षित रह सकेगी और देश का समग्र विकास संभव होगा।


डा वीरेन्द्र भाटी मंगल