लेख

स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में जीता पहाड़ का दर्द 

निशा आर्य

गरुड़, उत्तराखंड
उत्तराखंड के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में बसे लमचूला गाँव का दृश्यमान सौंदर्य किसी चित्र की तरह मन मोह लेता है। परंतु इन पहाड़ियों के भीतर एक ऐसी सच्चाई छिपी है जिसे देखना जितना ज़रूरी है उतना ही कष्टकारी भी। बागेश्वर जिले के गरुड़ ब्लॉक से कई किलोमीटर दूर स्थित यह गाँव लगभग सत्रह सौ से अधिक लोगों का घर है, जिनमें अधिकांश अनुसूचित जनजाति से आते हैं। शांत वातावरण और सरल जीवनशैली इसे विशिष्ट बनाते हैं, किंतु इसी शांत दुनिया में एक गहरी समस्या निरंतर बनी हुई है। यह क्षेत्र आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा के इंतजार में है। गाँव में न अस्पताल है न ही कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जबकि स्वास्थ्य सुविधा किसी भी समाज की पहली आवश्यकता होती है।

देश की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का जीवन ग्रामीण क्षेत्रों में व्यतीत होता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार लगभग साठ प्रतिशत महिलाएं और चालीस प्रतिशत किशोरियाँ समय पर स्वास्थ्य जांच नहीं करा पातीं। पर्वतीय जिलों के लिए यह प्रतिशत और भी चिंताजनक हो जाता है जहाँ दूरी और परिवहन की कमी स्वास्थ्य सेवा को और कठिन बना देती है। लमचूला इसी स्थिति का एक उदाहरण है। यहाँ के लोग बीमारी की स्थिति में पंद्रह से तीस किलोमीटर दूर बैजनाथ या गरुड़ जाने को मजबूर हैं। यह यात्रा न केवल समय लेती है बल्कि आर्थिक दबाव भी डालती है।

गाँव की युवा पीढ़ी इस स्थिति को गहराई से महसूस करती है। अठारह वर्षीय इंद्रा बताती है कि छोटी समस्या भी यहाँ बड़ी बन जाती है। मासिक चक्र में अनियमितता हो या चक्कर आना जैसी आम परेशानी, उन्हें गाँव के बाहर जाना पड़ता है। कई बार यह संभव नहीं होता तो वे दर्द सहकर चुपचाप इंतजार करती रहती हैं। किशोरावस्था वह समय होता है जब शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की देखभाल आवश्यक होती है। पोषण आहार से लेकर नियमित स्वास्थ्य जांच तक हर सुविधा बेहद महत्वपूर्ण होती है। परंतु लमचूला में किसी भी प्रकार की चिकित्सा सेवा का न होना इन युवतियों के लिए निरंतर चिंता का विषय है।

यह समस्या केवल युवाओं तक सीमित नहीं है। उम्रदराज लोगों के लिए यह स्थिति और गंभीर हो जाती है। पैंसठ वर्ष की जाउली देवी को आंखों की धुंधली रोशनी के कारण चलना भी कठिन लगता है। वे बार बार इस बात का दुःख व्यक्त करती हैं कि इलाज के लिए दूर जाना उनके लिए लगभग असंभव है। किसी भी समाज में बुजुर्गों के लिए उपचार सबसे सहज उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि उन्हें सबसे अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। पर यहाँ उनके पास न सुविधा है न विकल्प।

कई परिवार आर्थिक रूप से भी कमजोर हैं। रोज मजदूरी करने वाले परिवारों के लिए इलाज का खर्च उठाना कठिन हो जाता है। दीपा देवी बताती हैं कि जब बच्चे बीमार पड़ते हैं तो सबसे पहले वे सफर के खर्च की चिंता करती हैं। दवा से पहले उन्हें यह सोचना होता है कि उस दिन घर का खाना कैसे बनेगा। यह सिर्फ दीपा देवी का अनुभव नहीं है। पूरे क्षेत्र में अनगिनत परिवार ऐसी ही चिंता में जीते हैं।

लमचूला के ग्राम प्रधान का कहना है कि आसपास बसे छोटे गाँवों के लोग भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। यदि लमचूला में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित हो जाए तो पूरे क्षेत्र को राहत मिल सकती है। अभी उन्हें जखेडा स्थित एक केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है जिसकी क्षमता सीमित है और वहाँ भी भीड़ अधिक रहती है। ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधा की अनुपलब्धता के कारण कई बार लोग घरेलू उपचार पर निर्भर हो जाते हैं या झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं। इससे स्थिति बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य सुविधा केवल बीमार होने पर दवा तक सीमित नहीं होती। इसमें जागरूकता, रोकथाम, समय पर जांच और उचित सलाह शामिल होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं के लिए यह और भी महत्वपूर्ण होता है। कई रिपोर्ट बताती हैं कि दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच नहीं मिल पाती जिससे प्रसव संबंधी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। लमचूला जैसे गाँवों में कई ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं जहाँ समय पर सुविधा नहीं मिलने के कारण परिवारों को गंभीर कठिनाई झेलनी पड़ी।

यह केवल एक गाँव की पीड़ा नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लगभग पैंतीस प्रतिशत घरों के पास स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचने में आधे घंटे से अधिक समय लगता है। पर्वतीय क्षेत्रों में यह दूरी और समय कहीं अधिक बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षित मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य केंद्र की उपलब्धता अनिवार्य है। पर लमचूला जैसे गाँव इस बुनियादी आवश्यकता से भी वंचित हैं।

सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई गई हैं जिनका उद्देश्य दूरदराज क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाना है। परंतु योजनाओं का लाभ तभी मिलता है जब वे सही ढंग से लागू हों। कागजों में दर्ज योजनाएं गाँव के जीवन में बदलाव तब ही लाती हैं जब वे व्यवहारिक रूप से जमीन पर उतरती हैं। लमचूला के लोग आज भी उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब उनके गाँव में भी एक ऐसा केंद्र स्थापित होगा जहाँ हर व्यक्ति बिना भय और बिना अतिरिक्त खर्च के उपचार पा सकेगा। उनके लिए यह केवल सुविधा नहीं बल्कि जीवन रक्षक आवश्यकता है।

इन पहाड़ों की मजबूती यहाँ के लोगों में भी दिखती है। कठिन परिस्थितियों में भी उनका धैर्य और सहनशीलता अद्भुत है। परंतु सहनशीलता का अर्थ यह नहीं कि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को हमेशा दबाते रहें। अब समय आ गया है कि प्रशासन इस क्षेत्र की वास्तविक जरूरतों को समझें और स्वास्थ्य सुविधा को प्राथमिकता दे। यह किसी प्रदर्शन की मांग नहीं, बल्कि जीवन का अधिकार है। हर व्यक्ति को उपचार पाने का वही अधिकार होना चाहिए जो शहरों में रहने वालों को मिलता है।

लमचूला और ऐसे अनेक गाँव हमारे देश की वह तस्वीर हैं जो अक्सर नजरों से दूर रह जाती है। प्रकृति भले ही खूबसूरत हो पर जीवन केवल सुंदर दृश्यों से नहीं चलता। जीवन चलता है सुविधा के साथ, सुरक्षा के साथ और इस विश्वास के साथ की बीमारी की स्थिति में इलाज पास ही उपलब्ध है। लमचूला के लोग इसी विश्वास की प्रतीक्षा में हैं। उन्हें अब प्रतीक्षा नहीं समाधान चाहिए। पहाड़ का यह दर्द तभी कम होगा जब स्वास्थ्य सुविधा उनके गांव तक पहुंचेगी और उनका जीवन सुरक्षित और संतुलित बन सकेगा।