-ललित गर्ग-
भारत और कनाडा के रिश्तों पर पड़ी बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है और दोनों देशों के बीच एक नए विश्वास, सहयोग और साझेदारी का वातावरण आकार ले रहा है। वैश्विक राजनीति के बदलते स्वरूप, व्यापारिक हितों और तकनीकी साझेदारियों की बढ़ती जरूरतों ने दोनों देशों को पुनः संवाद और सहयोग की राह पर लौटने के लिए प्रेरित किया है। जून से शुरू हुआ यह सकारात्मक बदलाव अब व्यापक रूप में दिखाई देने लगा है, जिसका संकेत हाल ही में की गई द्विपक्षीय बैठकों, उच्चस्तरीय संपर्कों और आर्थिक सहयोग की घोषणाओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। भारत के केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल द्वारा 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 50 अरब डॉलर तक ले जाने के लक्ष्य एवं कनाड़ा द्वारा अब नागरिकता के बंद दरवाजे खोलने की घोषणा इस परिवर्तन की गहराई और व्यापकता को रेखांकित करती है। यह लक्ष्य केवल व्यापार बढ़ाने का संकल्प मात्र नहीं है बल्कि यह उस नये दौर की प्रतीकात्मक दस्तक है जिसकी ओर दोनों देश बढ़ रहे हैं और इससे दोनों देशों को फायदा होगा।
पिछले कुछ समय में भारत और कनाडा के रिश्तों में जिस तरह तनाव और अविश्वास ने जगह बनाई थी, वह दोनों देशों के लंबे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और जन-आधारित संबंधों के विपरीत था। खालिस्तान मुद्दे पर कनाडा में बढ़ती गतिविधियों, राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों और न्यायिक प्रक्रियाओं ने दोनों देशों के रिश्तों में गहरी खटास पैदा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बीच दूरी सार्वजनिक रूप से दिखाई देती थी और कूटनीतिक संवाद लगभग ठहर-सा गया था। जस्टिन ट्रूडो ने राजनीतिक दबाव एवं स्वार्थ के चलते भारत से ऐतिहासिक संबंधों को धुंधलाया, जिसका खामियाजा उन्होंने भुगता भी है। लेकिन अब नई सरकार के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने नये जोश, आत्मीयता एवं संवेदनाओं के साथ भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों, व्यापारिक अवसरों के विस्तार और नई आर्थिक-रणनीतिक जरूरतों ने दोनों पक्षों को यह अहसास कराया कि रिश्तों का ठहराव किसी भी तरह से फायदेमंद नहीं है। इसी समझ ने दोनों देशों को संवाद के नये पुल बनाने और पुराने अवरोधों को पीछे छोड़ने की दिशा में आगे बढ़ाया।
नरेंद्र मोदी और मार्क कार्नी की जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात इस बदलाव का एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई। यह मुलाकात भले ही मुख्य सत्रों के इतर हुई, लेकिन उसका संदेश अत्यंत गहरा और दूरगामी था। यहां दोनों नेताओं ने व्यापार, निवेश और टेक्नोलॉजी इनोवेशन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की। भारत और कनाड़ा के पास डिफेंस, स्पेस, क्रिटिकल मिनरल्स, एनर्जी और एजुकेशन समस्त कई क्षेत्रों में सहयोग एवं सहमति बढ़ाने के मौके हैं। यह सहमति केवल औपचारिकता नहीं बल्कि रिश्तों को एक नए मोड़ पर लाने का संकेत थी। कनाडा एक उभरती हुई टेक्नोलॉजी शक्ति है और भारत विश्व की सबसे बड़ी तकनीकी प्रतिभा का केंद्र बन चुका है। ऐसे में दोनों देशों के बीच टेक्नोलॉजी, इनोवेशन, स्टार्टअप्स, ऊर्जा और शिक्षा के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं जिनकी दिशा अब खोली जा रही है। वैसे भी भारत के स्टूूडेंट्स के लिये अब भी कनाड़ा सबसे पसंदीदा जगहों में एक हैं। कनाडा अपने नागरिकता कानून में भी बदलाव करने जा रहा है, उससे भी भारतीयों को फायदा होने की व्यापक संभावनाएं है।
पीयूष गोयल के वक्तव्य में दिखती आर्थिक साझेदारी की दृष्टि इस बात का परिचायक है कि भारत और कनाडा अब केवल राजनीतिक संवाद से आगे बढ़कर व्यावहारिक सहयोग के नए आधार बना रहे हैं। 50 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी है, लेकिन यह उन आर्थिक संभावनाओं का वास्तविक अनुमान भी है जो दोनों देशों की नीतियों, संसाधनों और क्षमताओं में मौजूद है। भारत कनाडा के लिए एक विशाल बाजार है और कनाडा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा, खनिज, कृषि और तकनीकी साझेदार। इसी परस्पर निर्भरता और जरूरत ने दोनों देशों को फिर से एक-दूसरे की ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। अब जरूरी है कि विभिन्न स्तरों पर बातचीत जारी रखते हुए जल्द समझौते तक पहुंचा जाये।
हाल के वर्षों में दुनिया बहुधू्रवीय स्वरूप की ओर बढ़ रही है। अमेरिका, यूरोप, चीन, रूस और पश्चिम एशिया जैसे शक्ति केंद्रों के बीच उभर रही नई अनिश्चितताओं ने मध्यम और उभरती शक्तियों को नए साझेदार तलाशने के लिए विवश किया है। भारत और कनाडा इस वैश्विक संरचना में ऐसे दो देश हैं जिनके पास जनसांख्यिकीय शक्ति, आर्थिक संसाधन, शिक्षा-तकनीक की क्षमता और लोकतांत्रिक मूल्यों का साझा आधार मौजूद है। ऐसे में इन दोनों का साथ आना न केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिए आवश्यक है बल्कि एक नई वैश्विक संरचना के निर्माण में भी उपयोगी हो सकता है। यह संरचना सहयोग, नवाचार, जलवायु न्याय, हरित तकनीकों और स्थायी विकास पर आधारित हो सकती है। कनाडा में भारतीय मूल की बड़ी आबादी दोनों देशों के रिश्तों को मानवीय और सामाजिक आधार भी देती है। जब भी रिश्तों में तनाव आया, प्रवासी भारतीय समुदाय उसके बीच पुल की तरह खड़ा दिखाई दिया है। यही समुदाय आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं व्यावसायिक रिश्तों को नई दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यह समुदाय न केवल कनाडा के आर्थिक विकास का हिस्सा है बल्कि भारत-कनाडा संबंधों की गहरी कड़ी भी है। यही कारण है कि दोनों सरकारों ने इस सामाजिक संबंध को और मजबूत करने का प्रयास शुरू किया है जिससे गलतफहमियाँ कम हों, लोगों के बीच भरोसा बढ़े और राजनीतिक विवादों का असर द्विपक्षीय रिश्तों पर सीमित रहे।
वर्तमान दौर में भारत की वैश्विक छवि एक निर्णायक, प्रभावशाली और विश्व-हितैषी शक्ति के रूप में उभर रही है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक शैली, वैश्विक मंचों पर सक्रियता और विकास-शांति आधारित विदेश नीति ने भारत की स्थिति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। दूसरी ओर कनाडा भी एक स्थिर लोकतंत्र और बहुसांस्कृतिक देश के रूप में वैश्विक स्तर पर अपनी भूमिका को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। दोनों देशों की यह समान सोच और नई वैश्विक चुनौतियों के प्रति साझा दृष्टिकोण अब आपसी सहयोग के लिए अधिक अनुकूल अवसर पैदा कर रहा है। समीक्षा के इस चरण में यह स्पष्ट है कि भारत-कनाडा संबंधों में आया यह सकारात्मक मोड़ केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि गहरे आर्थिक, सामाजिक और रणनीतिक हितों पर आधारित है। मार्क कार्नी सरकार को भी यह समझ आ रही है कि भारत जैसे मजबूत साझेदार से दूरी कनाडा की आर्थिक और वैश्विक भूमिका के लिए सही नहीं। वहीं भारत भी उन देशों के साथ संबंधों का विस्तार चाहता है जो तकनीक, शिक्षा, कृषि, ऊर्जा और नवाचार के क्षेत्रों में मूल्यवान साझेदारी दे सकते हैं। यही वजह है कि दोनों देश अब नयी समझ विकसित करते हुए एक ऐसे दौर की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें संवाद, सहयोग और परस्पर सम्मान केंद्रीय भूमिका निभाएंगे।
अंततः यह कहा जा सकता है कि भारत और कनाडा के रिश्तों में शुरू हुई यह नई गर्माहट एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह बदलाव न केवल आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देगा बल्कि वैश्विक शांति, नई तकनीक, हरित विकास और सामाजिक सौहार्द की दिशा में भी नई संभावनाएँ खोलेगा। दोनों देश यदि इसी सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ते रहे तो यह केवल द्विपक्षीय संबंधों को नई मजबूती नहीं देगा, बल्कि एक नई विश्व संरचना के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।