सोनिया जी की इच्छा …

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-राजीव दुबे

17 दिन से संसद स्थगित चल रही है। विपक्ष है कि मानता ही नहीं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात ऐसी अटकी कि अब कोई हल ही नहीं दिखता। काँग्रेस को लगता है कि भ्रष्टाचार है तो क्या हुआ, आगे बढ़ो, बड़े-बड़े लोग भारत आ रहे हैं, स्वागत करो, भोज आयोजित करो, और दिल्ली की ठंड का आनंद उठाओ।

ठंड को भगाने की लिये क्या जरूरी है कि भागो दौड़ो और संसद में हंगामा करो? वातानुकीलित कोठी में बैठ कर भी तो सर्दी का मजा लिया जा सकता है। साफ देखा जा सकता है कि संसद रुकने के बावजूद प्रधानमंत्री की ओर से कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा रहा है। वह सामान्यतया चुप ही हैं। शायद सोनिया जी की यही इच्छा है। काँग्रेस पार्टी में सोनिया जी की ही तो चलती है।

एक जमाने में प्रधानमंत्री की अपनी पार्टी में चलती थी। अब पार्टी अध्यक्ष सर्वशक्तिमान है और जवाबदेही सब किसी और पर है। भारत की जनता अब किसे गुहार लगाए कि भाई देश का बुरा हाल हो रहा है, झूठे गुमान में न पड़ जाओ कि देश विकसित हो गया है, संसद चलाओ और विपक्ष की सुनो। भ्रष्टाचार की जाँच कराओ। संयुक्त संसदीय समिति के सामने आओ, छुपो मत।

प्रणव दा लगे हुए हैं, न-न करने में । वह अक्सर बड़े नाराज़ भी लगते हैं जैसे विपक्ष कोई हिमाकत कर रहा हो और बड़े लोग फिर भी उसे माफ कर दे रहे हों। ऐसे । शायद सोनिया जी की यही इच्छा है।

युवराज के नाम से मशहूर काँग्रेस के युवा नेता भी कुछ नहीं बोलते। उन्हें लगता ही नहीं जैसे कि कोई समस्या है । संसद न चले तो क्या, वैसे भी यह तो मनमोहन जी की सरकार है। हमारे पास तो अपने सांसद हैं ही, जब चाहें तब बात कर लेंगे – अलग से, बिना संचार माध्यमों के भी। संसद में बैठ कर बात करना जरूरी है क्या? शायद सोनिया जी की यही इच्छा है।

देश में लोग भूख से मर रहे हैं, विदर्भ में किसान आत्म हत्या कर रहे हैं, महँगाई कम नहीं हो रही, दिल्ली असुरक्षित है, बाकी देश भी असुरक्षा से त्रस्त है, कुछेक राज्यों को छोड़कर बिजली की भारी किल्लत है, और काँग्रेस है कि चिल्लाकर बोलने वाले प्रवक्ताओं के जरिये विरोध का गला दबाने को तत्पर है। शायद सोनिया जी की यही इच्छा है।

3 COMMENTS

  1. श्रीमान दुबे जी बिलकुल सही कह रहे है.
    १७ दिन क्या १७ साल संसद नहीं चले, १७ साल क्या १७० साल संसद नहीं चले, हमारा क्या जाता है. हमारे घर में तो ७०० साल तक मालपुए खाने का राशन है.

  2. भारतके लिए यह स्थिति चिंता जनक है। प्रधान मंत्री ने अगुआई लेनी चाहिए।
    “देश में लोग भूख से मर रहे हैं, विदर्भ में किसान आत्म हत्या कर रहे हैं, महँगाई कम नहीं हो रही, दिल्ली असुरक्षित है, बाकी देश भी असुरक्षा से त्रस्त है, कुछेक राज्यों को छोड़कर बिजली की भारी किल्लत है, और काँग्रेस है कि चिल्लाकर बोलने वाले प्रवक्ताओं के जरिये विरोध का गला दबाने को तत्पर है। शायद सोनिया जी की यही इच्छा है।”
    ॥ सोनियायाः इच्छा बलीयसी॥
    पंगु गिरि भी लांघ सकता है, पर मन मोहन क्या मुरली ही बजाता रहेगा ?
    कठ पुतली को कंठ तो है। क्या सोचता है, यह शासन ? दालमें काला क्या क्या है?या सारी दाल ही काली है?
    शासन करो, दुःशासन ना करो।
    हिटलर शाही इसे ही तो कहते हैं।
    राजीवजी धन्यवाद। लिखते रहिए।

  3. काश यह सोनिया जी पढ़ ले और उन्हें थोड़ी शर्म आ जाय और वो कुछ काम करना शुरू कर दे.या मनमोहन जी को बोलने दे…..और अपनी जनता को देख ले की उसके हाल बहुत बेहाल है.

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