चिंतन

सत्य की राह कठिन जरूर है,

सत्य की राह कठिन जरूर है,

पर है असली आनंद देने वाली

डॉ. दीपक आचार्य

सत्य जीवन का सर्वोपरि कारक है जिसका आश्रय ग्रहण कर लिए जाने पर धर्म और सत्य हमारे जीवन के लिए संरक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाते हैं और पूरी जिन्दगी इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे प्रत्येक कर्म पर तो पड़ता ही है, हमारा समूचा आभामण्डल ही प्रभावोत्पादक और शुभ्र परिवेश का निर्माण कर देता है।

धर्म और सत्य ऐसे महानतम कारक हैं जो अवलम्बन करने वाले की हर प्रकार से रक्षा करते हैं और उन्नति के लिए ऊर्जा का संचरण करते रहते हैं। इतने प्रभावी होने के बावजूद इसका आश्रय लोग या तो ले नहीं पाते अथवा अपनी क्षुद्र कामनाओं के वशीभूत होकर इनसे दूरी ही बनाए रखते हैं।

जीवन में एक किनारे पर धर्म, सत्य और आनंद रहते हैं जो सत्यं शिवं सुन्दरं का वरदान प्रदान करते हैं। दूसरी ओर अधर्म, असत्य और पाप का डेरा होता है जो क्षणिक आत्मतुष्टि प्रदान करता है और यह कभी शाश्वत नहीं रह पाती है। इसके साथ ही यह अलक्ष्मी, भय और उद्विग्नता साथ लेकर आती है।

सत्य की जड़ें बहुत गहरी होती हैं और उन्हें जमने में समय लगता है और इस कारण इसका फलन भी खूब लंबे समय बाद होता है जबकि असत्य की जड़ें छिछली होती हैं और इस कारण यह पानी हो या जमीन पर, हर कहीं जल्दी ही फलित लगती हैं और हर आदमी चाहता है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक फायदा मिल जाए। इसलिए आम लोगों का रुझान दूसरे मार्ग की ओर होता है।

असत्य हमेशा कभी अकेला नहीं आता, और न ही अकेला रहता है। असत्य की परछायी दूर-दूर तक पसरी हुई रहती है। एक बार असत्य का आश्रय पा लेने के बाद यह फफूंद या संक्रमण की तरह फैलने लगता है।

असत्य हमेशा पूरी की पूरी श्रृंखला लेकर चलता है। और यही कारण है कि किसी भी मामले में एक झूठ को छिपाने के लिए एक के बाद एक झूठों का सहारा लेना पड़ता है और फिर झूठ बोलने वाले लोगों के जीवन में झूठ की कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाती है तथा आदमी को लगता है जैसे वह असत्य की कई-कई जंजीरों के बेरिकेडिंग में मकड़जाल की तरह फंसता ही चला जा रहा है। एक बार झूठ के जाल में शरण ले लिये जाने पर झूठ के तानों-बानों में उलझता हुआ आदमी मकड़ी ही होकर रह जाता है।

जो लोग झूठ का सहारा लेते हैं उन्हें अपने झूठ को छिपाने के लिए हमेशा एक पर एक झूठ बोलने को विवश होना पड़ता है और ऐसे में आदमी खुद झूठ का पुलिंदा होकर रह जाता है। जिसकी वाणी में झूठ प्रवेश कर जाता है उसके पूरे शरीर और जीवन में झूठ का समावेश इस प्रकार हो जाता है कि व्यक्ति को कभी यह अहसास नहीं होता कि वह झूठ बोल रहा है क्योंकि सच और झूठ में फर्क करने और परिणाम के बारे में चिंतन करने वाली उसकी विवेक बुद्धि अंधकार की छाया से ग्रसित हो जाती है और ऐसे में उसे लगता है कि झूठ का संरक्षण ही उसे बचा सकता है।

जो लोग बात-बात पर झूठ बोलते हैं वे पुरुषार्थहीन, निर्वीर्य, कायर, नपुसंक और भयग्रस्त होने के साथ ही उनके जीवन में हमेशा अपराधबोध और आत्महीनता की भावना बनी रहती है। यही कारण है कि ऐसे लोगों को अपने अस्तित्व की रक्षा करने अथवा साबित करने के लिए झूठी बातों का सहारा लेना पड़ता है।

अपने इलाके में ऐसे खूब सारे झूठे लोग हैं जो रोजाना हमारे संपर्क में आते हैं अथवा हमारे आस-पास ही विहार करते रहते हैं। अपने क्षेत्र में झूठों की कई किस्में हैं। झूठ भी ईश्वर कहें या भ्रष्टाचार, इनकी ही तरह सर्वव्याप्त है। झूठ के लिए कहीं कोई भेदभाव नहीं है। हर आकार-प्रकार और विचार का, हर किस्म का व्यक्ति झूठ का दामन थाम सकता है।

झूठे लोग कल्पनाओं और ख्वाबों में जीने के आदी होते हैं। ये लोग अपनी वाहवाही के लिए चाहे जितना झूठ बोल सकते हैं। कोई भी आदमी एक बार झूठ बोलना शुरू कर दे तो फिरन उसे झूठ में दक्षता पाने के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं लेना पड़ता। ऐसा व्यक्ति उत्तरोत्तर झूठी बातों का बादशाह बन जाता है।

दुनिया में सबसे ज्यादा अविश्वासी, विश्वासघाती और महादुष्ट यदि कोई है तो वह है झूठा आदमी। ऐसे लोग अपने छोटे-मोटे स्वार्थ के लिए झूठ बोलने से लेकर किसी का काम तमाम कर सकने तक की सारी योग्यताएं रखते हैं। क्योंकि इनके लिए अपने झूठ के कवच के सामने सारे नियम-कानून और हथियार बेकार हैं।

एक बार जो झूठ का सहारा ले लेता है उसके लिए हर प्रकार का अपराध करना खेल जैसा ही हो जाता है। हो भी क्यों न। उसे झूठ बोलकर ही तो बचाव कर लेना है। फिर आजकल झूठे लोगों को संरक्षण देने वाले उनके भाईबंद दूसरे झूठे लोगों के कई-कई गिरोह प्रतिष्ठित हैं जो हमेशा ऐसे लोगों के बचाव की मुद्रा में रहा करते हैं। झूठों की दोस्ती झूठों से होना स्वाभाविक भी हैं क्योंकि खच्चरों को अपने स्वजातिजनों से विशेष प्रेम होता है। ये खच्चर मैदानी इलाकों से लेकर पहाड़ों के शिखर तक परिभ्रमण कर रहे हैं। और वह भी इस भावना के साथ कि सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं।

झूठे लोग भले ही झूठ और फरेब तथा षड्यंत्रों के सहारे पैसा बना लें, आलीशान भवन खड़े कर दें, अनाप-शनाप धन-दौलत जमा कर लें और प्रतिष्ठा के शिखरों को चूम लें, ये लोग न खुद को संतुष्ट रख सकते हैं, न औरों को। फिर झूठे लोगों पर न और झूठे लोग विश्वास करते हैं, न सज्जन लोग। झूठों की स्थिति ताजिन्दगी धोबी के कुत्ते जैसे होती है। इनकी मौत भी झूठ के साये में होती है।

जीवन का असली आनंद सत्य संभाषण, सत्य श्रवण और सत्य मनन में ही है और यही व्यक्ति को झूठ से बचाने में समर्थ है। एक बार सत्य का आश्रय ले लिये जाने पर जीवन भर के लिए निरपेक्षता, निर्भयता और प्रसन्नता अपने आप आ जाती है।

अपने आस-पास झूठे लोगों के होने पर इसका दुष्प्रभाव हम पर भी पड़ता है और हमारा आभामण्डल भी काला पड़ने लगता है। इसलिए जो लोग झूठ बोलते हैं उनसे हाथ मिलाना, उन्हें हाथ जोड़ना या उनसे सम्पर्क तक करना छोड़ देना चाहिए। इन झूठों की छाया तक भी देखना आत्मघाती है।

ऐसे झूठे लोगों से किसी भी प्रकार का व्यवहार करने वाले व्यक्त के पुण्यों का क्षय हो जाता है और खराब ग्रह और अधिक अनिष्टकारी व कुपित हो जाते हैं। झूठे लोगों से मैत्री और सम्पर्क रखने वाले लोगों का पितृदोष, कुलदोष भी घातक स्तर पाप लेता है और ऐसे लोगों में आधिभौतिक, आधिदैविक और आधिदैहिक तापों का असर ज्यादा देखने को मिलता है।

किसी भी सज्जन व्यक्ति के जीवन में समस्याएं बनी रहती हों तो ऐसे लोगों को झूठ का आश्रय छोड़ देना चाहिए। ये झूठे लोग जब तक अपने आस-पास रहते हैं तब तक दैवीय कृपा हमसे दूर रहती है और हमारे मामूली कामों तक में अवरोध आते रहते हैं। इसके साथ ही उनके मित्रों, कुटुम्बियों या परिजनों में झूठे लोग हों तो इनसे थोड़ी दूर बनाकर देखियें, अपने आप समस्याओं का समाधान होता चला जाएगा।