राजनीति

“बांटों और राज करों” की नीति और झाड़ू-पंजा प्रेम संबंध

imagesबधाई हो! झाड़ू-हाथ हुए अब एक साथ! ढेर सारे तमाशे करने के बाद अंततः झाड़ू
और हाथ के अवैध प्रेम संबंधों को नई ऊँचाई मिल ही गई. लंबी जुदाई और
लुका-छुपी के बाद दोनों ने अब खुल्लमखुल्ला प्यार का इजहार कर दिया है
जिसके उपहार स्वरूप दिल्ली में जन समर्थन न होने के बाद भी सरकार बन गई.
वैसे भी समलैंगिक संबंधों को लेकर जबसे दोनों ने एक राय बनाई है, ऐसे
गठबंधन बनने की संभावनाएं मजबूत हो गई थी. बस मुहर लगनी बाकी थी, जिसे
आआपाई अंदाज में धमाकेदार नौटंकी करके मुहर लगा दी गई. अब दोनों नई पारी
खेलने को तैयार है. जो कट्टर लेकिन सीधे-साधे कांग्रेसी लोग भ्रमवश आआपा
को कांग्रेस विरोधी मान विधवा विलाप किया करते थे, अब वे हाथ को मिले
झाड़ू के साथ से बहुत खुश दिखाई दे रहे है. ख़ुश हो भी क्यूँ न! लगातार
सत्ता सुख भोगने का मौका जो मिल रहा है.

वैसे आआपा वाले भी बड़े खुश है. फेसबुक-ट्विटर पर खुशियाँ मनाते अपने
“आआपा” वाले परसों ऐसे झूम रहे थे, मानो केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री
नही, बल्कि अमेरिका को पछाड़ के तृतीय विश्व युद्ध जित विश्व नायक का
ख़िताब पा गए हो!

लोगों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाकर दिल्ली को आंठवी, दसवीं और
बारहवी पास विधायक दिलाने वाली उच्च शिक्षित पार्टी आआपा आनेवालें दिनों
में क्या करेगी, यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन फिलहाल कांग्रेस का
मोदिविरोधी “मिशन आआपा” सफल दिखाई दे रहा है. जबसे आआपा आई है, कांग्रेस
के भ्रष्टाचार की काली धुआं छटती दिखाई दे रही है. जाहिर है, झाड़ू और हाथ
के इस खुल्लमखुल्ला मिलन से भाजपा, विशेषकर मोदी विरोधी खेमें में भी
अत्यधिक प्रसन्नता महसूस की जा रही है. दिल्ली में कांग्रेस-नक्सल
समर्थकों की सरकार बनने से कई बुद्धिजीवी तो कुछ ज्यादा ही खुश है और इस
ख़ुशी में कुछ ज्यादा ही लाल दिखाई दे रहे है. जो काम सांप-छछुंदर के नाम
पर रखे खोजी वेबसाईटों ने नही किया, उसे साल भर में पोल पर चढ़कर तार
काटने और जोड़ने वाले लोगों ने कर दिखाया. यह अलग बात है कि किसी ने आजतक
पूछने की जहमत नही उठाई कि आखिर सरकारी कामों में अनावश्यक हस्तक्षेप
करनेवाले महाशय के खिलाफ़ किस मज़बूरी में कांग्रेस ने कोई कड़ी कारवाई नही
की?

सत्यवादी कलयुगी हरिश्चन्द्र और उन्हीं के शब्दों में महाभ्रष्ट कांग्रेस
की मिलीजुली सरकार- क्या अद्भुत दृश्य है दिल्ली में सरकार का.कांग्रेस 8
सिट जीतकर कर भी 70 सदस्यीय विधानमंडल में सरकार बनाने की स्थिति में आ
जाएगी, इसका भरोसा आम दिल्लीवाशियों को कभी नही था. आमतौर पर राजनीति से
चुनाव में वोट गिराने तक का संबंध रखनेवाले लोग ठगे से महसूस कर रहे है.
कांग्रेस के कुशासन से आजिज जनता ने जिस भरोसे के साथ आआपा को समर्थन
किया था, वह तार-तार हो गया. सत्ता पाने की भूखी आआपा लाख कुतर्कों और
नौटंकियों से भ्रष्ट कांग्रेस से किए अपने गठजोड़ को उचित ठहराए, लेकिन
उसने जन-भावनाओं को नकार कर येन-केन-प्रकारेण सत्ता सत्ता हथियाई है,
इससे कोई इनकार नही कर सकता. कांग्रेस-भाजपा से समर्थन “न लेंगे, न
देंगे” और अपने बेटे की कसम खाकर कांग्रस से गठबंधन न करने की बात कहकर
वोट लेने वालो की असलियत अब बेनकाब हो गई है! जनता देख रही है कि कैसे
टोपीधारी कार्यकर्ताओं को जुटाकर तथाकथित जनसभाएं की गई और अपने ही लोगों
की राय को जनता की राय मानकर सरकार बना ली गई. आआपा के किसी भी जनसभा की
विडियो उठाकर देख लीजिए, अगर गौर से उस जनसभा में बैठे लोगों को देखने की
कोशिश करे तो मालूम चलेगा कि अधिकांश लोग आआपा के समर्थक थे, न की वे आम
लोग, जिन्होंने कांग्रेस के खिलाफ वोट दिया था.

आआपा का गठन सही मायनों में कांग्रेस के उसी सदियों पुरानी “बांटों और
राज करो” नीति का नया रूप है, जहाँ पंजा अपने पाप से पीड़ित जनता के वोटो
का बटवारा कर देश पर राज करती रही है. वैसे तो दर्जनों उदाहरण गिनाए जा
सकते है, लेकिन ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(MNS) का है. शिव
सेना के उग्र हिंदुत्ववादी छवि और मराठी मानुष के नाम पर जमाए प्रभुत्व
को कम करने के लिए कांग्रेस ने मनसे की गुंडागर्दी को संरक्षण दिया.
खुलेआम उत्तर भारतीय पिटते रहे और कांग्रेस चुपचाप मुहं देखती रही.
परिणाम यह हुआ कि शहरी मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति बनी और कांग्रेस
विरोधी वोट शिव सेना और मनसे में बंट गई और कांग्रेस दुबारा सत्ता में आ
गई. मनसे और आआपा की राजनीति में कुछ खास फर्क नही है. एक खुलेआम लोगों
को पिटती है, दूसरी भारतीय लोकतंत्र में जनमत की भावनाओं को.

वैसे दिल्ली वासियों को थोड़ी देर के लिए ख़ुशी मिली है दिल्ली की सत्ता अब
ज्यादा देर तक अनाथ नही रहेगी. लेकिन भारी चिंता भी सता रही है कि
आनेवाले दिनों में दिल्ली का नाम बदलकर ड्रामा प्रदेश न कही हो जाए, जहाँ
नित्य नए नौटंकियाँ देखने को मिलेगी. लोगों को यह भी डर है कि ड्रामा
प्रदेश में ड्रामा सिखने के लिए नही, ड्रामा देखने-समझने वाला एक कोर्स
करना पड़ेगा. फिलहाल शहरी मतदाताओं के अन्दर कांग्रेसी विरोधी वोटो का
बंटवारा होता देख सोनिया दरबार में ख़ुशी की लहर है. अब वे उम्मीद लगाए
बैठे है कि कुछ ऐसा ही लोकसभा चुनावों के समय हो जाए और सेक्युलर गिरोह
बनाकर फिर से सरकार बनाने में कामयाब हो जाए.