चुनावों से पहले सरकार की सक्रियता पर सवाल

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-आदर्श तिवारी-   India Parliament Mayhem

बीते कुछ दिनों से सरकार की सक्रियता से संसद में जो हो रहा है, वो हम भारतीयों को शर्मिंदा करने के लिए बहुत है। बुधवार को आंध्र प्रदेश  के बटवारे के लिए संसद में जो हुआ उससे हमारा लोकतंत्र जितना शर्मसार हुआ, उतना शायद इससे पहले कभी न हुआ हो. तेलंगाना विधेयक को पास कराने के लिए कांग्रेस ने जो रवैया अपनाया, उसके गहरे निहितार्थ है. एक बात तो स्पष्ट है सरकार ने ठान लिया था कि चाहे जो हो जिस प्रकार हो, आंध्र प्रदेश का बंटवारा करना है, अर्थात तेलंगाना विधेयक को पारित करवाना ही है और वैसा ही हुआ. इस प्रकार तो सरकार जो चाहे वो बिल पास करवा सकती है बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि सरकार इच्छाशक्ति  तब ही दिखाती है जब उसे राजनीतिक लाभ होता दिख रहा हो. अगर जनहित के मुद्दे पर भी सरकार इसी तरह सक्रिय रहती तो आज ये हालत नहीं होती.

तेलंगाना कोई आज का मुददा नहीं है, करीब साठ साल पुराना मुद्दा है. कांग्रेस भी अलग तेलंगाना के लिए करीब दस साल पहले ही वायदा कर चुकी हैं पर अब इतने दिनों के बाद, लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अपना राजनीतिक फायदे के लिए कांग्रेस ने इस विधेयक को पारित करवाया. पहला सवाल ये उठता है कि क्या जब सभी पार्टियां इस गठन पर राजी थीं तो सरकार उस समय क्या कर रही थी? और ठीक चुनाव से पहले सरकार की सक्रियता पर गंभीर सवाल उठने लाजमी है? क्या कोई भी विधेयक सरकार केवल और केवल राजनीतिक लाभ के लिए ही पास करवाती है. पहले सवाल की तह में जाएं तो इतना विरोध संसद में हुआ, मिर्चस्प्रे  से लेके तमाम तरह के हंगामों को देखते हुए भी सरकार ने यह विधेयक पारित करवाया ,पर दुर्भाग्य की बात है कि देश के एक बड़े राज्य का बंटवारा करके एक नये राज्य की नींव रखे जाने वाले विधेयक पर लोकसभा में कोई बहस या चर्चा नहीं होती है और कैबिनेट की तरह इतना बड़ा फैसला बंद कमरे के भीतर ध्वनिमत  से पारित करा दिया जाता है. जिस फैसले से लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं, ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक पर बिना चर्चा मोहर लगाना इस बात का प्रमाण है. लोकसभा टीवी का प्रसारण रुकवा दिया गया था हालांकि सरकार कि तरफ से दलील दी जा रही थी कि ऐसा तकनीकी खराबियों के कारण हुआ, लेकिन इस बहाने को कौन मानेगा ! दूसरा सवाल तो उठना लाजमी है कि कांग्रेस चुनाव से पहले ही इतनी सक्रिय क्यों हो जाती है क्या सरकार को  जनता सिर्फ चुनाव के ठीक पहले याद आती है. अभी चुनाव में लगभग सौ दिन बाकी है कुछ बड़े फैसले सुनने को मिले है,जैसे कि गैस सिलेंडरों की संख्या में बढ़ोतरी करना हो या मोबाइल, टीवी और गाड़ियों आदि पर वैट कम करना हो, तेलंगाना जैसे  इतने पुराने और अहम बिधेयक को पारित करवाना हो, अनेक उदाहरण देखने को मिले और आगे भी ठीक चुनावों से पहले देखने को मिलेंगे, पर इससे पहले बीते चुनावों की समीक्षा करे तो एक बात तो साफ है कि कांग्रेस चुनाव के ठीक पहले ज्यादा ही सक्रिय नजर आती है। बीते चुनाव में किसानो का ऋण माफ करना तो कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया ! चूंकि  इस फैसले का सीधे एक आम आदमी को फायदा हुआ जो किसान खेती के लिए ऋण लिया था उसकी माने तो इस फैसले ने उसे दो साल आगे ला दिया. आखिर ये फैसले चुनाव के ठीक पहले लेकर कांग्रेस ने एक बात तो साफ कर दिया है कि हमें जनता केवल चुनाव से पहले ही याद आती है.

2 COMMENTS

  1. इन दिनों कांग्रेस के फैसले चुनाव आधारित ही हैं,दस साल सोने के बाद अब वह इतनी जल्दी में है कि अब तक बकाया सभी बिल लागू कर देना चाहती है चाहे उसका कोई परिणाम हो.अपने आका राहुल को खुश करने, उन्हे सिहांसन पर बैठने के लिए वह किसी हहि हद तक जा सकती है.अब बकाया बिल महिला आरक्षण , भ्रस्टाचार विरोधी व और कई बिल अध्ूादेश के द्वारा लागू करना चाहती है.व कर भी देगी.दस साल सहमति न बन ने या स्वयं पक्षधर न होने से महिला आरक्षण बिल पास नहीं किया जिन लोगों ने विरोध किया कांग्रेस ने अपने स्वार्थ के बिलो पर तो सहमति बना ली पर इन पर नहीं.अपने शासन काल में जम के भ्रस्टाचार करने वाली घोटालों की सरताज सरकार को अब उसका अंत करने की सूझी.,अब देश के जन मानस को भांप कर उसे यह सब सूझ रहा है.पर जनता कितनी इनके आश्वासनों आएगी यह तो मतपेटियों के खुलने पर ही पता चलेगा.अभी के सर्वे तो उसका साथ नहीं दे रहे.

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