के. रहमान और शिक्षा का विषाक्तीकरण-डॉ. मनोज चतुर्वेदी

संप्रग-1 तथा संप्रग-2 ने आपने नए-नए कारनामों से भारतीय राजनीति तथा शिक्षा को विषाक्त करने का प्रयास किया है। सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह सरकार के नए-नए कारनामों की शुरूआत आते-आते ही कर दिया है। उनका यह कहना है कि देश भर में 5 नए अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय तथा 93 नए अल्पसंख्यक विद्यालय अल्पसंख्यक बहुल जिलों में खोले जाऐंगे। यह कौन सी योजना है? क्या इस प्रकार के सांप्रदायिक निर्णय सांप्रदायिक सद्भाव में बाधक नहीं है?क्या वह भारत को फिर विभाजित करना चाहते हैं? भारतीय सरकार की यह नीतियाँ राष्ट्रीय एकता एवं सांप्रदायिक सदभाव में किस प्रकार की भूमिका अदा कर रही है जबकि केन्द्र सरकार ने पहले ही रंगनाथ मिश्र आयोग ,सच्चर समिति तथा जातिय आधार पर जनगणना द्वारा भारतियों को बाँटने का कार्य किया है। मुस्लिम बहुल जिलों में मुस्लिम थानेदारों की नियुक्ति तथा हाल ही में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में होने वाले दंगो ने यह साबित कर दिया है कि सामाजिक समरसता में मुस्लिम समाज किसी भी तरह की भागीदारी करने को तैयार नहीं है। वह मुस्लिम मानसिकता के वशीभूत होकर हर जगह दंगों के लिए उतारू हो जाता हैं।यह ठीक है कि महामना मदनमोहन मालवीय ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।तथा 1920 में सर सैय्यद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित किया। महामना एक राष्ट्र ऋषि थे जिन्होने शिक्षा में संप्रदायिकता को कभी भी स्थान नहीं दिया।वे मूल्यपरक शिक्षा के हिमायती थे तथा उनका जीवन ही एक दर्शन था। उन्होने भारतीय संस्कृति के नींव पर ज्ञान-विज्ञान को स्थापित करने का प्रयास किया। वे एक समाज सुधारक थे,पत्रकार थे और संपादक भी थे।पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तथा जामिया मिलिया तो मिनी पाकिस्तान है। यहाँ से छद्म धर्मनिरपेक्षता का प्रचार किया जाता है।अलीगढ़ में नरेन्द्र मोदी को लेकर दिए गए वक्तव्य ने किस प्रकार बवंडर खड़ा किया था ये बाते हमें सोचने के लिए विवश करती है कि हम शिक्षा जैसे पवित्र स्थलों में सांप्रदायिकता के बीज क्यों बो रहे हैं? के. रहमान भी इसी कड़ी में खड़े हैं। उनके मन में सांप्रदायिक दुराग्रह तथा छद्म धर्मनिरपेक्षता है कि देश के शैक्षणिक संस्थानों के साथ अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक आधार पर विभाजित किए जाते हैं जो राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से ठीक नहीं है। देश के विभिन्न भागों मे जो जाति, धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर संस्थान खोले जा रहे हैं वह राष्ट्र के लिए प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं।यदि के रहमान अल्पसंख्यक स्थानों विद्यालय-विश्वविद्यालय पर खोलने की बातें कर रहें हैं तो देशभक्त जनता तथा विरोधी दलों का यह दायित्व बनता है कि वे कहें कि आप हिन्दु,जैन,सिक्ख,बौद्ध इत्यादि स्थानों पर भी इसी प्रकार विश्वविद्यालय तथा विद्यालय खोलो। बल्कि इसके स्थान पर प्रबुद्धजनों को कहना चाहिए कि धर्म, जाति और भाषा को आधार न बनाकर,जहाँ आवश्यकता हो उन-उन स्थानों पर विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, Technical college, Acadmic staff college,Ayurvedic,medical college,सैनिक स्कूल खोलें। जिसमें इन शैक्षणिक संस्थानों से नीति तथा नैतिकता की सुवासित वायु चहुओर बहे तथा फैले। यह ठीक है कि भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा संस्कृति तथा जीवन शैली को सुदृढ़ करने के लिए संस्थान खोलने की मान्यता दी है लेकिन 1947 तथा 2012 में आकाश- पाताल का अंतर हो गया है।आज मुस्लिम समाज हिन्दु समाज के बाद दूसरे स्थान पर है। देश की कुल आबादी में लगभग 22-25 करोड़ मुस्लिम हो चुके हैं। आज तो जैन और बौद्ध ही अल्पसंख्यक कहे जाएंगे। जबकि जैन-बौद्ध अनुयायी स्वयं को भारतीय कहने में गर्भ अनुभव करते हैं।लेकिन मुस्लिम-इसाई मानसिकता अलगाववाद से प्रेरित है यदि मानव संसाधन विकास मंत्री अल्पसंख्यक समाज को उनका जीवन स्तर तथा शिक्षा स्तर से लेना-देना है तो वे इस प्रकार के निर्णय को टाल दें तथा आवश्यकतानुसार क्षेत्रों का चयन जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से उठकर करें

1 COMMENT

  1. शिक्षा को किसी भी सम्प्रदाय की खूंटी से बांधकर ज्ञान नहीं प्राप्त होगा|
    गुरुओं और आचार्यों की तटस्थता तभी सुनिश्चित होगी जब वे किसी भी राजनीतिद्न्यो के और सम्प्रदायों के प्रभाव से अलिप्त हो.
    जो आचार्य विद्या देते हैं, उन्हें आदर्श जीवन जीना होता है. उनपर कोई बंधन नहीं होना चाहिए.
    इतिहास साक्षी है, की आदर्श आचार्य को सांसारिक-राजनैतिक-क्षुद्र साम्प्रदायिक-मज़हबी-वैचारिक खूंटी से कभी बांधा नहीं गया था. वह समाज से दूर रहकर तटस्थ वातावरण में रहकर, वैराग्य की भावना से अनुप्राणित हो, एकाग्र चिंतन द्वारा ज्ञान देता था.
    किसी भी आर्थिक प्रलोभन से मुक्त, समाज एक कर्तव्य भाव से, उनकी जीविका की आवश्यकताओं की साधारण पूर्ति करता था.
    तभी तो पाणिनि, पतंजलि, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त,इत्यादि तेज:पुंज पैदा होते थे.
    अब “भ्रष्टाचार्य”–पैदा हो रहें हैं|
    हमने हमारी परम्पराओं को नष्ट किया, और अब यही पाप हमें नष्ट कर के रहेगा.

    जो ज्ञान लेने-देने में ही मुक्त नहीं, वह क्या ख़ाक पढ़ाएगा ?

    सा विद्या या विमुक्तये|
    { विद्या वही है, जो मुक्त करती है|}

    न ही ज्ञानेन सदृश्यं, पवित्रं इह विद्यते|
    {इस धरती पर ज्ञान जैसी पवित्र कोई और वास्तु नहीं.}
    लेखक को धन्यवाद.

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