प्रजातंत्र का राजा

एक कहानी बड़ी पुरानी, कहती रहती नानी|

शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी|

कभी शेर ने बकरी को, न घूरा न गुर्राया|

बकरी ने जब भी जी चाहा, उससे हाथ मिलाया|

शेर भाई बकरी दीदी के ,जब तब घर हो आते|

बकरी के बच्चे मामा को, गुड़ की चाय पिलाते|

बकरी भी भाई के घर पर, बड़े शान से जाती|

कभी मुगेड़े भजिये लड्डू, रसगुल्ले खा आती|

किंतु अचानक ही जंगल में, प्रजातंत्र घुस आया|

और प्रजा को मिली शक्तियों ,से अवगत करवाया|

उँच नीच होता क्या होता, छोटा और बड़ा क्या|

जाति धर्म वर्गों में होता, कलह और झगड़ा क्या|

निर्धन और धनी लोगों में ,बड़ा फासला होता|

एक रहा करता महलों में ,एक सड़क पर सोता|

शेर भाई को जैसे ही, यह बात समझ में आई|

तोड़ी बकरी की गर्दन,और बड़े स्वाद से खाई|

जो भी पशु मिलता उसको ,वह उसे मार खा जाता|

जंगल में अब प्रजातंत्र का, वह राजा कहलाता|

प्रजातंत्र का मतलब भी, वह दुनिया को समझाता|

इसी तंत्र में जिसकी ,जो मर्जी हो वह कर पाता|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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