महिला सशक्तिकरण में स्वयंसहायता समूहों की भूमिका

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-राखी रघुवंशी

”पहले हम समूह में केवल बचत की ही बात करते थे, लेकिन अब जब महिलाएं एक साथ समूह की बैठकों में आती हैं, तो बचत के अलावा भी हम गांव और महिलाओं की दिक्कतों के बारे में बात करने लगे हैं।” यह कहना महिला वित्त एवं विकास निगम द्वारा गठित किए गए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का है। पिछले दिनों एक शोध कार्य के सिलसिले में प्रदेश के कुछ ज़िलों में समूह की महिलाओं से मिलने को अवसर मिला। हालांकि सरकार ने पहले केवल बचत कराने के उद्देश्‍य से ही ये समूह बनवाए थे, लेकिन बचत के अलावा अब समूह में कई और मुददों पर चर्चा भी होने लगी है, क्योंकि महिलाओं को समझ में आ रहा है कि बचत पर ही नहीं सिमटा जा सकता है, समूह को नई ऊर्जा और दिशा देने के लिए स्थानीय मुददों को भी शामिल करना जरूरी है।

लेकिन समूह बनाने में भी गांवों में खासी दिक्कतें आईं, क्योंकि घर के पुरूष तो मान जाते हैं, लेकिन गांव के दबंगों का कहना था कि इस तरह तो महिलाऐं हाथ से निकल जाएगी। उन्हें डर था कि इस तरह तो उनकी गांव में बनी सालों की सत्ता हिल जाएगी। इसलिए वे बार बार घर के पुरूष को डराते रहते कि महिलाओं को ज्यादा आजादी देने की ज़रूरत नहीं है। अगर महिलाऐं समूह की बैठकों में आती तो गांव के लोग हंसते और ताने मारते। महिलाओं ने भी कहा कि ‘जब हम बैठकों में आते या फिर प्रशिक्षण के लिए गांव से बाहर जाते तो गावंवाले और दाऊ साहब (गांव में बड़े ज़मींदार) ताना मारते कि नेतननी जा रही हैं। खैर! महिलाओं ने इन सब मुष्किलों को पार किया और समूह को केवल बचत के उद्देश्‍य से 2 साल तक चलाया, लेकिन अब तो बचत भी काफी हो गई तो अब क्या करना चाहिए? तभी इस सोच ने आकार लिया और महिलाओं ने समूह में अन्य मुददों को भी चर्चा का विषय बनाया।

पिछले कुछ सालों से महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया चल रही है। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बचत समूह गठित कर उनके आर्थिक सशक्तिकरण के प्रयास किए जा रहे हैं। किन्तु इन समूहों को महिलाओं के राजनैतिक सशक्तिकरण के रूप में भी देखा जा सकता है। हालांकि पंचायतों में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के फलस्वरूप गांव की सत्ता में महिलाओं को अपनी भागीदारी निभाने का अवसर जरूर मिला है। लेकिन विकास में उनके संगठित प्रयासों की जरूरत महसूस की जाती रही है। इस दशा में महिला समूह एक ऐसे संगठन के रूप में उभर कर आए, जिनमें महिलाएं अपने अर्थिक विकास के साथ-साथ गांव के विकास के बारे में भी सोचने लगी। ऐसे कई उदाहरण सामने आए, जब स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने ग्राम सभा में शामिल होकर अपनी समस्याओं पर पंचायत और प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें हल करने की पहल की।

देश के अन्य राज्यों की भांति मध्यप्रदेश में भी लाखों की तादाद में महिला स्वयं सहायता समूह गठित किए गए। ये समूह सरकारी एजेंसियों के अलावा महिला आर्थिक विकास निगम तथा स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी इन समूहों के माध्यम से महिलाओं को दिया जाता रहा है। जबकि स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा गठित समूहों ने राजनैतिक पहलुओं को भी छूने का प्रयास किया है। पिछले कुछ सालों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई, जब महिला समूहों ने जल संकट जैसी कई समस्याओं के निदान के लिए ग्रामसभा में न सिर्फ अपनी आवाज बुलंद की, बल्कि उसके समाधान के प्रयास भी किए। इसके अलावा गांव में स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान की मॉनिटरिंग भी इन समूहों की महिलाओं ने की, जिससे गांव की सार्वजनिक सेवाएं ज्यादा उत्तरदायी हो सकी।

सत्ता और विकास में जन भागीदारी के इस दौर में महिला स्वयं सहायता समूह ज्यादा बेहतर भूमिका निभा सकते हैं। यह देखा गया है कि इन समूहों के माध्यम से महिलाओं को आपस में मिल बैठने का अवसर मिला, जो न सिर्फ आर्थिक बचत और आपसी सुख-दुख बांटने तक सीमित रहा, बल्कि इससे विकास में उनकी भागीदारी के लिए भी अनुकूल वातावरण बना। समता, सामाजिक न्याय और पंचायत के उत्तरदायित्व जैसे मामलों में भी इन समूहों की भूमिका है।

भारतीय संविधान में देश के सभी नागरिकों को उन्नति के समान अवसर दिए जाने की बात कही गई है। संविधान की यह भावना पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज व्यवस्था में भी परिलक्षित होती है, जिसमें समाज के निचले तबकों और महिलाओं की भागीदारी जरूरी मानी गई है। यह देखा गया है कि स्वयं सहायता समूहों के कारण सत्ता और विकास में महिलाओं की भागीदारी संभव हो पाई है। कई स्थानों पर महिलाओं ने श्रमदान के जरिये गांव के विकास में अपनी भूमिका निभाई, तो कई महिलाओं ने गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, आंगनबाड़ी और राशन दुकान जैसी सेवाओं के लिए आवाज उठाई। हरदा जिले के ग्राम छुरीखाल की महिलाओं ने तो आंगनबाड़ी नियमित संचालित करने के मुद्दे पर ग्रामसभा में आवाज उठाई और आज ये महिलाएं खुद आंगनबाड़ी का निरीक्षण कर रही है। कहा जाता है कि उनमें यह आत्मविश्वास समूह में इकठ्ठे होने की वजह से आया। इस तरह और भी कई उदाहरण है, जहां स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने विकास की मिसाल कायम करने में सफलता हासिल की है।

चूंकि स्वयं सहायता समूहों का गठन महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए किया जाता रहा है। किन्तु अब ये समूह उनके राजनैतिक सशक्तिकरण के माध्यम बनते नजर आ रहे हैं। इसके जरिए महिला समता और सामाजिक न्याय की एक नई संभावना तलाशी जा सकती है।

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