श्रद्धा से जुड़ती है आत्मा – पितृ पक्ष का संदेश !

हमारी भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं में से एक मानी जाती है। इसमें धर्म, दर्शन, जीवन मूल्य, सामाजिक संरचना, पारिवारिक संबंध और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का विशेष स्थान है। भारतीय समाज में परिवार और पूर्वजों के प्रति आदर और कृतज्ञता को बहुत महत्व दिया जाता है। इन्हीं मूल्यों का प्रतिबिंब हमें श्राद्ध(पितृ पक्ष) जैसे अनुष्ठानों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा जितनी महत्वपूर्ण मानी जाती है, उतनी ही श्रद्धा पूर्वजों यानी पितरों की आराधना को भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि पितर हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। हर साल श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के 16 दिनों के दौरान, पितृलोक से पितर धरती पर अपने वंशजों से तर्पण और श्रद्धा की अपेक्षा लेकर आते हैं। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और दान के माध्यम से उन्हें संतुष्ट किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे आशीर्वाद स्वरूप अपने वंशजों को उन्नति का वरदान देते हैं। पाठक जानते होंगे कि इस साल पितृ पक्ष(श्राद्ध पक्ष) की शुरुआत 7 सितंबर 2025, रविवार से हो चुकी है। इस दिन पूर्णिमा श्राद्ध मनाया जाएगा तो वहीं पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध यानी प्रतिपदा श्राद्ध 8 सितंबर को पड़ेगा और महालया श्राद्ध 21 सितंबर(सर्व पितृ अमावस्या) को रहेगा। पाठकों को बताता चलूं कि हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक 16 दिनों का यह काल पितरों को समर्पित होता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे कनागत भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय सूर्य कन्या राशि में संचार करते हैं। इस वर्ष पितृ पक्ष 15 दिन का होगा।पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष माना जाता है, पर इसका आरम्भ भाद्रपद पूर्णिमा से ही होता है।वास्तव में, श्राद्ध एक धार्मिक अनुष्ठान है जो विशेष रूप से पूर्वजों (पितरों) की आत्मा की शांति और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किया जाता है। यह हिन्दू धर्म की परंपरा है, जिसमें पितरों के प्रति श्रद्धा (श्रद्धा भाव) प्रकट कर उन्हें तर्पण, भोजन, दान और प्रार्थना अर्पित की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध स्वीकार करते हैं। पितृ वास्तव में श्रद्धा के भूखे होते हैं, इसलिए इन दिनों पूरी निष्ठा से अर्पण करना चाहिए। तामसिक आहार, विवाद, क्रोध और अपमान से बचना चाहिए तथा सात्विक आचरण के साथ पितरों का स्मरण करना चाहिए। जानकारी के अनुसार पितृ पक्ष में प्रतिदिन स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को जल अर्घ्य देना चाहिए और जीवन के मंगल की प्रार्थना करनी चाहिए। वास्तव में, जल का तर्पण अत्यंत फलदायी माना गया है। कहते हैं कि श्रद्धापूर्वक किए गए श्रद्ध से पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को सुख-समृद्धि और मंगल का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष में सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए तथा घर को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। पिंडदान (यदि संभव हो) चावल, तिल, घी, शहद और दूध से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करना चाहिए। पाठकों को बताता चलूं कि पितृ पक्ष में पिंडदान में अन्न का विशेष महत्व है। पिंडों में चावल, जौ, तिल और शहद का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है कि ये तत्व पंचमहाभूतों से संबंधित हैं और आत्मा को स्थिरता प्रदान करते हैं।ज्योतिष में माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष है, तो उसके जीवन में मानसिक तनाव, विवाह में विलंब, संतान सुख में बाधा या आर्थिक परेशानियाँ आ सकती हैं। श्राद्ध कर्म से इसे दूर करने की परंपरा है। पितृ तर्पण के लिए तांबे/पीतल के पात्र में जल, काले तिल, कुश, अक्षत और फूल डालने चाहिए और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, कुश हाथ में लेकर जल अर्पित करना चाहिए। ‘ॐ पितृदेवाय नमः’ कहते हुए तर्पण करना चाहिए।पितृ मंत्र का जैसे ‘ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः’ का जप करना चाहिए तथा पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। पाठकों को बताता चलूं कि पितृपक्ष में मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन का प्रयोग वर्जित माना जाता है तथा किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए तथा भोजन का कुछ भाग कौवे, कुते और गाय को अर्पित करना चाहिए। पाठकों को बताता चलूं कि कौवे को पितरों का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि यदि कौवा भोजन स्वीकार कर ले, तो इसका अर्थ है कि पितरों ने तृप्ति प्राप्त कर ली है। दान विशेष रूप से अन्न, वस्त्र, तिल, घी और जल का होता है। माना जाता है कि यह दान पितरों तक सीधे पहुँचता है और उनके लिए शुभ फल प्रदान करता है। कहा गया है कि यह समय(पितृ पक्ष) व्यक्ति को अपने कर्मों का विश्लेषण कर जीवन की दिशा सुधारने का अवसर देता है। सच तो यह है कि पितृ पक्ष आत्म-चिंतन का भी समय है‌। बहरहाल, श्राद्ध के उद्देश्यों की यदि हम यहां पर बात करें तो यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता, आध्यात्मिक शांति, परिवार की एकता,धार्मिक अनुशासन और हमारी सामाजिक परंपराओं को निभाकर समाज में सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखने पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में पितरों का आशीर्वाद वंश के सुख-समृद्धि का कारण माना जाता है। कहते हैं कि श्राद्ध से मन व आत्मा की शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है। दान और अन्न अर्पण से पितरों की आत्मा संतुष्ट होकर परिवार का कल्याण करती है। वास्तव में, यह अनुष्ठान मृत्यु के दुख को आध्यात्मिक दृष्टि से स्वीकार कर जीवन में संतुलन बनाने में मदद करता है। श्राद्ध यह सिखाता है कि जीवन केवल व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं है, बल्कि हम अपने पूर्वजों की विरासत का हिस्सा हैं। यह केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहरे दार्शनिक अर्थ जीवन और मृत्यु का स्वीकार, आत्मा की यात्रा का सम्मान,परंपरा के प्रति निष्ठा, सेवा और समर्पण का भाव आदि को उजागर करता है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत एक खास खगोलीय घटना के साथ हुई है। साल का अंतिम चंद्र ग्रहण भी ठीक उसी दिन पड़ रहा है, यानी 7 सितंबर को। यह एक पूर्ण चंद्र ग्रहण था, जो भारत सहित कई देशों में साफ़ दिखाई दिया। ऐसे में यह संयोग धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया। अंत में, यही कहूंगा कि पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि जीवन का ऐसा पर्व है जो हमें अपने अतीत से जोड़ता है। यह हमारे अंदर कृतज्ञता का भाव जगाता है, परिवार की परंपरा और संस्कार को सुदृढ़ करता है, और आत्मा की शांति का मार्ग प्रदान करता है। यह पर्व स्मरण, सेवा, दान और आत्मचिंतन का समग्र साधन है।

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