आध्यात्मिकता की भगीरथी ठहर गयी

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ब्रह्माकुमारी दादी जानकी का निधन
-ः ललित गर्ग:-
संसार के प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संगठन ब्रह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका, आध्यात्मिक गुरु और स्वच्छ भारत मिशन की ब्रांड एंबेसेडर राजयोगिनी दादी जानकी का निधन हो गया है, वे देह से विदेह हो गयी। वे 104 साल की थीं। उन्होंने माउंट आबू के ग्लोबल हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। एक संभावनाओं भरा आध्यात्मिक सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल ब्रह्माकुमारी संस्था के लिये बल्कि समूची दुनिया के आध्यात्मिक जगत के लिये एक गहर आघात है, अपूरणीय क्षति है। वे अध्यात्म जगत में हमेशा एक सितारे की तरह टिमटिमाती रहेंगी। इंसान के आत्म-उत्थान एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिए उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनका जीवन सफर उच्च आदर्शों एवं आध्यात्मिकता की ऊंची मीनार हंै। उनका निधन एक युग की समाप्ति है।
विभिन्न धर्म, संस्कृति, वर्ग, भाषा और समुदाय के लोगों को दादी जानकी ने अपने जीवन से प्रेरित किया और उनमें बेहतर विश्व निर्माण एवं मानव उत्थान के व्यापक एवं प्रभावी उपक्रम किये। उन्होंने न केवल अपने बल्कि सम्पूर्ण मानवता के आत्म-कल्याण के लिये अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाया। उनकी ज्ञानयुक्त गहरी और व्यावहारिक बातों को सुनना और देखना अभूतपूर्व आनन्द के क्षण होते थे। वे अंतर्राष्ट्रीय शांतिदूत थी, वे अध्यात्म की उच्चतम परंपराओं, संस्कारों और महत जीवन-मूल्यों से प्रतिबद्ध एक महान व्यक्तित्व थी। उनमें त्याग, तपस्या, तितिक्षा और तेजस्विता का अप्रतिम समन्वय था। उनकी सत्यनिष्ठा, चरित्रनिष्ठा, सिद्धांतनिष्ठा और अध्यात्मनिष्ठा अद्भुत थीं। उनकी वैचारिक उदात्तता, ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजनधर्मिता, अप्रमत्तता और विनम्रता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती हैं। उन्होंने एक सफल आध्यात्मिक गुरु, प्रखर प्रवक्ता और आध्यात्मिक वक्ता एवं शिक्षिका के रूप में अध्यात्मजगत में सुनाम अर्जित किया था।
राजयोगिनी दादी जानकी को मोस्ट स्टेबल माइंड इन वल्र्ड का खिताब मिल चुका है। दुनियाभर में दादी के नाम से मशहूर राजयोगिनी दादी जानकी का जन्म आजादी के पहले भारत के हैदराबाद सिंध प्रांत में 1 जनवरी 1916 को हुआ था जो अब पाकिस्तान में चला गया है। दादी जानकी ने 21 साल की छोटी अवस्था में ही सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक पथ पर चलने का निर्णय ले लिया था। दादी जानकी ने मात्र चैथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। बचपन से भक्ति भाव के संस्कार में पली बढ़ी दादी ने योग के जरिए विश्व के 140 से अधिक देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और इन देशों में ब्रह्माकुमारी केंद्रों की स्थापना की। वे 1974 से लंदन में थी और इन 40 वर्षों में आपने वहीं से अपनी गतिविधियों को विस्तारित किया। ब्रह्माकुमारी संस्था के साथ वो 1937 में जुड़ी थीं। साल 1970 में उन्होंने भारतीय संस्कृति, मानवीय मूल्यों और राजयोग का संदेश देने के लिए पश्चिमी देशों का रुख किया था। इस दौरान उन्होंने करोड़ांे लोगों के अंदर आध्यात्मिक चिंतन की इच्छा, उन्नत मानव जीवन का प्रकल्प और मानव संस्कार के बीज बोए। अपनी अचल प्रतिबद्धता के साथ अनेकों की सेवा करते हुए वो अपने आपको किसी भी प्रकार के सीमा में बांधना पसन्द नहीं करती। उनमें 104 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसी ताजगी, लगन एवं सक्रियता उनके विरल व्यक्तित्व की द्योतक थी।
ब्रह्माकुमारीज विश्व भर में फैला हुआ एक ऐसा आध्यात्मिक संस्थान है जो व्यक्तिगत परिवर्तन और विश्व नवनिर्माण के लिए समर्पित है। सन् 1937 में दादा लेखराज ने इसकी स्थापना की लेकिन इसके विस्तार एवं प्रभाव स्थापित करने में राजयोगिनी दादी जानकी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। उनके चमत्कारी एवं प्रभावी नेतृत्व में इस संस्था का इस समय विश्व के 140 देशों में 9000 से अधिक शाखाओं के रूप में विस्तार हो चुका है। इन शाखाओं में लाखों विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। हालांकि उनकी वास्तविक प्रतिबद्धता व्यक्ति को अपने दृष्टिकोण में भौतिक से आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करने को प्रेरित करना था। इससे शान्ति की गहरी सामूहिक चेतना और व्यक्तिगत गरिमा के निर्माण करने में हरेक आत्मा को मदद मिलती थी। इन कार्यों में दादी जानकी का योगदान अनूठा रहा है।
ब्रह्माकुमारीज का अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय भारत के राजस्थान प्रांत के माउण्ट आबू में स्थित है जो ब्रह्माकुमारीज महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाली विश्व में सबसे बड़ी आध्यात्मिक संस्था है। इस संस्था के संस्थापक प्रजापिता दादा लेखराज ब्रह्मा बाबा ने माताओं और बहनों को शुरू से ही आगे रखने का फैसला लिया, राजयोगिनी दादी जानकी को इसका मुख्य दायित्व सौंपा और उनकी अलौकिक क्षमताओं एवं आध्यात्मिक जिजीविषा के कारण ही यह संगठन विश्व की अन्य सभी आध्यात्मिक और धार्मिक संस्थानों के बीच में अपना अलग अस्तित्व बनाया है। पिछले 80 वर्षों से दादी जानकी के नेतृत्व ने लगातार हिम्मत, क्षमा करने की क्षमता और एकता के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता को साबित किया है।
ब्रह्माकुमारी दादी जानकी केवल पद की दृष्टि से ही सैकड़ों ब्रह्माकुमारी का ही नेतृत्व नहीं किया है अपितु वे चतुर्मुखी विकास तथा सफलता के हर पायेदान पर अग्रिम पंक्ति पर भी खड़ी दिखाई देती रही हैं। इसका कारण उनका प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापित सिद्धांतों और मान्यताओं पर दृढ़ आस्थाशील, समर्पित एवं संकल्पशील होना हैं। वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज की एक ऐसी असाधारण उपलब्धि हैं जहां तक पहुंचना हर किसी के लिए शक्य नहीं है। वे सौम्यता, शुचिता, सहिष्णुता, सृजनशीलता, श्रद्धा, समर्पण, स्फुरणा और सकारात्मक सोच की एक मिशाल थी।
ब्रह्माकुमारी दादी जानकी ने भी अनुद्विग्न रहते हुए अपने सम्यक नियोजित सतत पुरुषार्थ द्वारा सफलता की महती मंजिलें तय की थी। यह निश्चित है कि अपनी शक्ति का प्रस्फोट करनेवाला, चेतना के पंखों से अनंत आकाश की यात्रा कर लेता है। सफलता के नए क्षितिजों का स्पर्श कर लेता है। उनके जीवन को, व्यक्तित्व, कर्तृत्व और नेतृत्व को किसी भी कोण से, किसी भी क्षण देखें वह एक प्रकाशगृह (लाइट हाउस) जैसा प्रतीत होता है। उससे निकलने वाली प्रखर रोशनी सघन तिमिर को चीर कर दूर-दूर तक पहुंचती रही है और अनेकों को नई दृष्टि, नई दिशा प्रदान करती हुई ज्योतिर्मय भविष्य का निर्माण करती रही है और युग-युगों तक करती रहेगी।
धरती पर दादी जानकी जैसे कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो असाधारण और विलक्षण होते हैं। ऐसा लगता है, वे बिना किसी खास प्रयत्न के निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। ऊपर चढ़ रहे हैं। हर कोई उनसे प्रभावित होता है। उनके साथ रहना, जीना और काम करना अच्छा लगता है। गौरव की अनुभूति होती है। ऐसे व्यक्तित्व अपने जीवन में प्रायः स्वस्थ, संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं। उनमें चुनौतियों को झेलने का मादा होता है। ये कठिन परिस्थितियों में भी अविचलित और संतुलित रहते हैं। उनके पास किसी भी व्यक्ति या कार्य के लिए समय होता है। बीजी रहते हुए भी उनकी लाइफ ईजी होती है। वे स्वयं में ही खोये हुए नहीं रहते, बल्कि दूसरों में भी अभिरुचि लेते हैं। अपनी इन्हीं विशिष्टताओं के कारण वे अन्यों के लिए आदर्श के स्रोत बन जाते हैं, दादी जानकी इसी तरह ऐसे ही असंख्य लोगों की प्रेरणास्रोत बनी।
ब्रह्माकुमारी दादी जानकी का व्यक्तित्व एक दीप्तिमान व्यक्तित्व था। वे ग्रहणशील थी, जहां भी कुछ उत्कृष्ट नजर आता, उसे ग्रहण कर लेती थी और स्वयं को समृद्ध बनाते हुए जन-जन को समृद्ध बनाने को तत्पर हो जाती थीं। कहा है, आंखें खुली हो तो पूरा जीवन ही विद्यालय है- जिसमें सीखने की तड़प है, वह प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक घटना से सीख लेता है। जिसमें यह कला है, उसके लिए कुछ भी पाना या सीखना असंभव नहीं है। इमर्सन ने कहा था- ‘‘हर शख्स, जिससे मैं मिलता हूं, किसी न किसी बात में मुझसे बढ़कर है, वही मैं उससे सीखता हूं।’ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु, यह सनातन धर्मं के प्रमुख मन्त्रों में से एक है, जिसका अर्थ होता है, इस संसार के सभी प्राणी प्रसन्न और शांतिपूर्ण रहें।’ इस मंत्र की भावना को ही दादी जानकी ने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था और उस पर निरन्तर गतिमान रही। उनकी इच्छा रहती कि उनके सभी शिष्य एवं धर्मप्रेमी भाई-बहिनें इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें। वे कहती थीं ‘गरीबों तथा पीड़ितों के लिए सच्ची करुणा ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति है।’  
दादी जानकी की विनम्रता एवं सादगी अनूठी एवं प्रेरक हैं। केन ब्लेंचार्ड का भी मानना है कि ‘विनय का मतलब यह नहीं है कि आप अपने को कम करके आंकों। बल्कि इसका आशय यह है कि आप अपने बारे में कम सोचो।’ दादी जानकी की सफलता और विकास का रहस्य यही है कि वे न तो अपनी महानता को लादे फिरती थी और न ही अपने बारे में विशेष सोचती थी। उनकी महानता की आधारशिला है समर्पण, सेवा, सादगी और विनय। वे समर्पण की प्रतिमूर्ति थी, विनय का पर्याय थी। सब कुछ करते हुए भी वे इस भाषा में कभी नहीं सोचती थी कि मैं कर रही हूं। इस अकर्ता भाव ने उनकी कार्यक्षमता को और अधिक निखारा था, पखारा था।
छोटी-छोटी बातों में भी विराट संदेश छुपे हुए होते हैं, जो उन्हें उघाड़ना जानता है, वह ज्ञान को उपलब्ध होता है, जीवन में सजग बन कर चलने से प्रत्येक अनुभव प्रज्ञा बन जाता है। जो अचेत बने रहते हैं, वे द्वार पर आए आलोक को भी वापस लौटा देते हैं। दादी जानकी की प्रज्ञामयी, ज्योतिर्मयी चेतना ही उनके व्यक्तित्व की असाधारणता है। उन्होंने दादा लेखराज के जीवन से सब कुछ सीखा। उनके आध्यात्मिक अनुभवों से अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जगाया। उत्तरोत्तर सब दिशाओं में विकास करते हुए अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाया था। दादी जानकी की अनेक उपलब्ध्यिां हैं, जिनके आलोक में नयी मानवता का अभ्युदय हुआ और युगों तक उनकी आध्यात्मिक रश्मियां यह आलोक बिखेरती रहेगी, उन्हें नमन।

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