गौरैया की विलुप्ति की त्रासदी चिंताजनक

0
100

विश्व गौरैया दिवस- 20 मार्च, 2024
-ललित गर्ग-

विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को दुनियाभर में मनाने का उद्देश्य गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति को बचाना है। पेड़ों की अंधाधुंध होती कटाई, आधुनिक शहरीकरण और लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से गौरैया पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। इस दिवस की थीम पिछले कुछ वर्षों से एक ही रही है कि, ‘आई लव स्पैरोज’ ( गौरैया )। यह थीम इस दुनिया को पक्षियों, जानवरों और मनुष्यों के लिए एक बेहतर जगह बनाने के सपने एवं उनके संरक्षण से प्रेरित है। एक वक्त था जब गौरैया की चीं-चीं की आवाज से ही लोगों की नींद खुला करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह एक ऐसी पक्षी है जो मनुष्य के इर्द-गिर्द रहना पसंद करती है। गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार कमी एक चेतावनी है कि प्रदूषण और रेडिएशन प्रकृति और मानव के ऊपर क्या प्रभाव डाल रहा है। गौरैया पृथ्वी पर सबसे आम और सबसे पुरानी पक्षी प्रजातियों में से एक है। ये छोटे, मनमोहक एवं शांति देने वाले पक्षी सदियों से हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं और प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दिन, हम उनकी सुंदरता एवं उपयोगिता की सराहना करने के लिए कुछ समय निकाल सकते हैं और सीख सकते हैं कि हम उनकी सुरक्षा में कैसे मदद कर सकते हैं।
भारत और दुनियाभर में गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार कमी आ रही है। दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी यह पक्षी देखने को नहीं मिलता, इसलिए वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया था। गौरैया की लुप्त होती प्रजाति और कम होती आबादी बेहद चिंता का विषय है। दुनिया भर की कई संस्कृतियों में, गौरैया सादगी, खुशी और सुरक्षा का प्रतीक है। यह उनकी पारिस्थितिक भूमिका के अलावा हमारी साझा मानव संस्कृति और लोककथाओं में भी उनके महत्व को दर्शाता है। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत एवं शांतिपूर्ण पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते हुए बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती। इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए ही पिछले कुछ सालों से विश्व गौरैया दिवस मनाते आ रहे हैं। गौरैया देशी पौधों वाले क्षेत्रों में पनपती है, तो क्यों न हम अपने बगीचे में कुछ पौधे लगाकर गौरैया को नया जीवन देने का उपक्रम करें।
पहली बार यह दिवस नेचर फॉरएवर सोसाइटी द्वारा भारत में गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों की घटती आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ मनाया गया था। नासिक निवासी मोहम्मद दिलावर ने घरेलू गौरैया पक्षियों की सहायता हेतु नेचर फोरेवर सोसाइटी की स्थापना की थी। इनके इस कार्य को देखते हुए टाइम ने 2008 में इन्हें हिरोज ऑफ दी एनवायरमेंट नाम दिया था। पर्यावरण के संरक्षण और इस कार्य में मदद की सराहना करने हेतु एनएफएस ने 20 मार्च 2011 में गुजरात के अहमदाबाद शहर में गौरैया पुरस्कार की शुरुआत की थी। गौरैया के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा मानवता पर भी एक प्रश्नचिह्न भी है। गौरेया जैसे बेजुबान पक्षियों का बड़ी संख्या में विलुप्त होना पर्यावरण संतुलन के लिये तो बड़ा खतरा है ही लेकिन इसका असर मानव जीवन पर भी होगा। यह धरती केवल इंसानों के लिये नहीं है, बल्कि वन्य जीवों के लिये भी है, इसलिये पक्षियों का विलुप्त होना या मरना हमारे लिये चिन्ता का बड़ा कारण बनना चाहिए। पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के अनुसार गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास का प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह हृ्रास ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
गौरैया का भौगोलिक दायरा बहुत बड़ा है। वे अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप के मूल निवासी हैं और विभिन्न जलवायु और वातावरण में रहने के लिए अनुकूलित हैं। लेकिन गौरेया पक्षी मानवीय लोभ की भेंट तो चढ़ ही रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए पक्षियों का शिकार एवं अवैध व्यापार जारी है। गौरैया जैसे पक्षी विभिन्न रसायनों और जहरीले पदार्थों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन या फिर पक्षियों की त्वचा के माध्यम से शरीर में पहुंचकर उनकी मौत का कारण बनते हैं। भोजन की कमी होने, घोंसलों के लिए उचित जगह न मिलने तथा माइक्रोवेव प्रदूषण जैसे कारण इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। जन्म के शुरुआती पंद्रह दिनों में गौरैया के बच्चों का भोजन कीट-पतंग होते हैं। पर आजकल हमारे बगीचों में विदेशी पौधे ज्यादा उगाते हैं, जो कीट-पतंगों को आकर्षित नहीं कर पाते। जीवन के अनेकानेक सुख, संतोष एवं रोमांच में से एक यह भी है कि हम कुछ समय पक्षियों के साथ बिताने में लगाते रहे हैं, अब ऐसा क्यों नहीं कर पाते? क्यों हमारी सोच एवं जीवनशैली का प्रकृति-प्रेम विलुप्त हो रहा है? मनुष्य के हाथों से रचे कृत्रिम संसार की परिधि में प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव-जंगल एवं पक्षियों का कलरव एवं जीवन-ऊर्जा का लगातार खत्म होते जाना जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ने का संकेत है।
खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ्राँस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहाँ तेजी से गिर रही है, तो नीदरलैंड में तो इन्हें ‘दुर्लभ प्रजाति’ के वर्ग में रखा गया है। मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है। इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं, जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें।
मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा, वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। हमें पक्षियों के स्वास्थ्य के प्रति भी सजग होना चाहिए। सरकारों को भी पक्षियों के इलाज एवं जीवन-सुरक्षा के पुख्ते प्रबंध करने चाहिए। भारत की संस्कृति में पक्षियों को दाना एवं पानी डालने की व्यवस्था जीवनशैली का अंग रहा है, इन वर्षों में हमारी यह संस्कृति लुप्त हो रही है, जो गौरेया के विलुप्त होने का बड़ा कारण है। मनुष्य का लोभ एवं संवेदनहीनता भी त्रासदी की हद तक बढ़ी है, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश का बड़ा सबब बना है। ऐसे में इस दिन को मनाने के बारे में सोचना वाकई गौरैया और दूसरे गायब होते पक्षियों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए सराहनीय कदम है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,270 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress