गजल

अपनी भाषा और अपनी आन को लड़ते रहे उनके हिस्से लाठियों की मार है इस देश में ?

shyam rudra pathak

राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्मान के लिये आन्दोलन करने वाले श्याम रूद्र पाठक के साथ पुलिस ने लगातार अभद्रता की पुलिसिया हरकत बताती हैकि इस देश में लोक तंत्र की असलियत क्या है. लोकतंत्र के पतन पर एक ग़ज़ल पेश है .

कौन कहता है मेरी सरकार है इस देश में
आम है जो आदमी लाचार है इस देश में

जीतने का जश्न अब शातिर मानते हैं यहाँ
जो हैं सच्चे उनकी केवल हार है इस देश में

जिसने बोला सत्य उसको जेल में ठूंसा गया
इस तरह जनता पे यह उपकार है देश में

काट लेती है जुबां कुर्सी अगर सच बोलिए
किनको अब जम्हूरियत से प्यार है इस देश में

अपनी भाषा और अपनी आन को लड़ते रहे
उनके हिस्से लाठियों की मार है इस देश में

नेता, अफसर और अपनी ये पुलिस अपनी कहाँ
सारा सिस्टम आजकल बीमार है इस देश में

क्रांतिकारी लोग थे उनको मिले अब गालियाँ
ऐसे लोगों की तो अब भरमार है इस देश में

जिसको हम नायक समझते थे वही पापी मिला
अब शरीफों का ही बंटाढार  है इस देश में

थी गुलामी तब तो बाहर के लुटेरे थे यहाँ
जो था अपना अब वही गद्दार है इस देश में

देश जैसे चल रही दूकान कोई सेठ की
हम कदम पर लूट का बाज़ार है इस देश में

गिरीश पंकज