गजल

रहबर सुनेगा बात ज़रा सब्र तो करो…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

बीतेगी काली रात ज़रा सब्र तो करो,

बदलेंगे ये हालात ज़रा सब्र तो करो।

 

जिनके दिमाग़ हैं आजकल आसमान पर,

कल को पड़ेगी लात ज़रा सब्र तो करो ।

 

नौसीखिये हैं चाल तो चल बैठें हैं लेकिन,

खानी पड़ेगी मात ज़रा सब्र तो करो।

 

वोटर जो अपने वोट की क़ीमत समझ गये,

रहबर सुनेगा बात ज़रा सब्र तो करो।

 

बरसों के दुश्मनों को लम्हों में सिखा दिया,

होंगे ना फ़सादात ज़रा सब्र तो करो।

 

रहबर पचास साल में करते भी क्या भला,

आये हैं बयानात ज़रा सब्र तो करो।

 

जितनी इधर लगी है उधर भी लगेगी आग,

तब होगी मुलाक़ात ज़रा सब्र तो करो।

 

मुश्किल से आई वस्ल की शब मौज लीजिये,

कर लेना सवालात ज़रा सब्र तो करो।।

 

नोट-मातः हार, रहबरः नेता, फ़सादातः दंगे, वस्ल की शबः मिलन की रात