दोहे

तब हर पल होली कहलाता है।

जब घुप्प अमावस के द्वारे

कुछ किरणें दस्तक देती हैं,

सब संग मिल लोहा लेती हैं,

कुछ शब्द, सूरज बन जाते हैं,

तब नई सुबह हो जाती है,

नन्ही कलियां मुसकाती हैं,

हर पल नूतन हो जाता है,

हर पल उत्कर्ष मनाता है,

तब मेरे मन की कुंज गलिन में

इक भौंरा रसिया गाता है,

पल-छिन फाग सुनाता है,

बिन फाग गुलाल उङाता है,

दिल बाग-बाग हो जाता है,

जो अपने हैं, सो अपने हैं,

वैरी भी अपना हो जाता है,

मन मयूर खिल जाता है,

तब हर पल होली कहलाता है।
!! होली मंगलमय!!
अबकी होरी, मोरे संग होइयो हमजोरी।

डरियों इतनो रंग कि मनवा अनेक, एक होई जाय।