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ईश्वर के अस्तित्व की मीमांसा: दर्शन और तकनीक की कसौटी पर

पंकज जायसवाल
 
अभी हाल ही में एक चैनल पर जावेद अख्तर और मुफ़्ती शमाइल नदवी द्वारा क्या ईश्वर विद्यमान है? विषय पर बहस किया गया है और यह विमर्श वैचारिक स्तर पर रोलर कोस्टर की तरह ऊपर नीचे होता रहा. उसी के नेपथ्य में मैं नीचे अपना विमर्श प्रस्तुत कर रहा हूं जो यह ढूंढने की कोशिश करेगा कि क्या ईश्वर है? और यदि है तो किस रूप में है?  

ईश्वर के अस्तित्व को समझने में अद्वैतवाद दर्शन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सहायक दृष्टि प्रदान करता है। अद्वैतवाद दर्शन जीव और ब्रह्म को दो अलग-अलग सत्ता नहीं मानता बल्कि उन्हें एक ही सत्य के रूप में स्वीकार करता है। इसका मूल ब्रह्मसूत्र है “अहं ब्रह्मास्मि” और इसका सिद्धांत “तत्त्वमसि” अर्थात तुम वही हो और मैं भी वही ब्रह्म हूँ। इस दर्शन के अनुसार यह पूरा जीव जगत ब्रह्म की माया है जिसे आधुनिक संदर्भ में हम एक प्रकार के मेटावर्स या इल्यूजन के रूप में भी समझ सकते हैं।

अद्वैत कहता है  जगत् माया है, जीव मिथ्या है और मोक्ष निष्काम है, जहाँ जगत, जीव और जीवन तीनों का अंततः ब्रह्म में विलय हो जाना है। अब प्रश्न उठता है कि यह ब्रह्म क्या है? तो उत्तर है कि ब्रह्म वही दिव्य ऊर्जा है, जो एक सुपर नेचुरल इंटेलिजेंस को धारण किए हुए है। इसी दिव्य चेतना को हम अलग-अलग परंपराओं, संस्कृतियों और विश्वास प्रणालियों में अपने-अपने ईश्वर के रूप में स्वीकार करते हैं। जब मनुष्य ईश्वर की पूजा करता है, तो वह वास्तव में अपने प्रार्थना भाव के माध्यम से इसी दिव्य ऊर्जा से संवाद स्थापित करने का प्रयास करता है।

चूँकि ज्ञात और अज्ञात पूरा ब्रह्मांड एक ही मूल पदार्थ तरंगों से निर्मित है, इसलिए मनुष्य की प्रार्थना भी उन्हीं तरंगों के माध्यम से पृथ्वी और ब्रह्मांड को संचालित करने वाली चेतना तक पहुँचने का प्रयास करती है ताकि वह इसे सुन सके और संकेत भेज सके या परिस्थितियों में बदलाव कर सके। आधुनिक विज्ञान भी अब धीरे-धीरे इसी दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है। न्यूटन से लेकर आइंस्टीन, हाइजेनबर्ग से लेकर स्टीफन हॉकिंग तक की खोजों ने विज्ञान को अध्यात्म से जोड़ने का ही कार्य किया है। इन वैज्ञानिकों के शोध यह संकेत देते हैं कि केवल पदार्थ ही अंतिम सत्य नहीं है बल्कि उसके पीछे कोई गहरी चेतना कार्य कर रही है।

आधुनिक मेटा-फिजिक्स भी अद्वैत वेदांत के इस वैज्ञानिक दर्शन के समानांतर विचारधारा पर चलती दिखाई देती है। मेटा-भौतिकी के नवीन सिद्धांत यह संकेत करते हैं कि ब्रह्मांड का मूल कारण पदार्थ नहीं बल्कि उसमें व्याप्त चेतना है। इसी चेतना को अद्वैत वेदांत ब्रह्म कहता है जबकि आधुनिक भौतिकी इसे अंतरिक्ष में व्याप्त तरंग, ऊर्जा या वेव के रूप में समझने का प्रयास करती है। यही तरंग, ऊर्जा या वेव का समुच्चय परमात्मा है जिसे हम भिन्न भिन्न रूपों में ईश्वर मानते हैं, और कण-कण में व्याप्त इसकी सूक्ष्म इकाई को हम ब्रह्म से जुड़ा हुआ प्राण या आत्मा कहते हैं। इसीलिए कण कण में ईश्वर की बात कही भी जाती है ऐसा नहीं कि ईश्वर यूनिवर्स से परे कहीं जाकर बैठा हुआ है.

मैक्स प्लांक, आइंस्टीन, नील्स बोहर और हाइजेनबर्ग जैसे वैज्ञानिकों ने क्वांटम भौतिकी में अनेक ऐसे विमर्श प्रस्तुत किए जिनके कारण मेटा-भौतिकी को संभावना का विज्ञान भी कहा जाने लगा। इसके बाद आया ऑब्ज़र्वर इफेक्ट का सिद्धांत, जिसके अनुसार किसी क्वांटम तरंग को मापे जाने पर वह कण की तरह व्यवहार करती है जबकि न देखे जाने पर वह एक ही समय में कई स्थानों पर मौजूद हो सकती है जिसे सुपरपोज़ीशन कहा जाता है। जॉन व्हीलर ने इसे और गहराई से कहा  “यदि देखने वाला न हो तो जगत केवल ऊर्जा है”.

आइंस्टीन के ऊर्जा सूत्र ने जहाँ पदार्थ और ऊर्जा के अंतर्संबंध को स्पष्ट किया, वहीं सापेक्षता और ऑब्ज़र्वर इफेक्ट ने भौतिकी को उस बिंदु पर ला खड़ा किया जहाँ ब्रह्मांड को समझने के लिए चेतना का अध्ययन अनिवार्य हो गया। पूरा पारिस्थितिकी तंत्र जिस सुपर नेचुरल इंटेलिजेंस से संचालित हो रहा है, वही ब्रह्म ऊर्जा है। जैसे किसी जीव में प्राण-ऊर्जा की आपूर्ति रुकने पर कोशिकाएँ बिखरने लगती हैं, अंग-तंत्रों का संतुलन टूट जाता है और मृत्यु की अवस्था आती है वैसे ही यदि इस ब्रह्म-ऊर्जा की आपूर्ति रुक जाए तो पूरी कायनात के विघटन और ऊर्जा में विलीन हो जाने की संभावना बन सकती है। ऐसे में केवल जीव ही नहीं बल्कि जगत भी ब्रह्म में विलीन हो सकता है। शायद इसी कारण विभिन्न धर्मों में ईश्वर की पूजा मूलतः एक थैंक्सगिविंग और उस दिव्य चेतना से संवाद का प्रयास है।

ईश्वर या ब्रह्म कैसे कार्य करता है, इसे हम इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग (IoE) के एक सरल उदाहरण से समझ सकते हैं एक स्मार्ट सड़क के माध्यम से। IoT स्तर पर सड़क पर कारें, बसें, बाइक, ट्रैफिक लाइट और कैमरे जुड़े होते हैं लेकिन वे खंडित और अलग-अलग सिस्टम के रूप में काम करते हैं लेकिन IoE स्तर पर वही सड़क एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बन जाती है। वाहन, चालक, पैदल यात्री, ट्रैफिक सिग्नल, मौसम, एम्बुलेंस, नजदीकी अस्पताल, हेलमेट और बीमा प्रणाली सब कुछ आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के माध्यम से आपस में संवाद करता है।

यदि कोई दुर्घटना होती है तो हेलमेट का सेंसर उसे पहचान लेता है, एम्बुलेंस स्वतः सक्रिय हो जाती है, ट्रैफिक लाइट ग्रीन कॉरिडोर बना देती है, अस्पताल पहले से तैयारी कर लेता है और डॉक्टर को मरीज का डेटा तुरंत मिल जाता है। यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी मानवीय आदेश के स्वतः घटित हो सकती है।


अब प्रश्न उठता है क्या यह किसी “तीसरी आँख” जैसा ही नहीं है जो देख भी रही है, समझ भी रही है और आवश्यक कार्रवाई भी कर रही है? ईश्वर के आस्तित्व के दर्शन में ईश्वर को सर्वत्र विद्यमान, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और नियंत्रक कहा गया है। इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग हमें पहली बार तकनीकी स्तर पर यह कल्पना करने की क्षमता देता है कि कैसे सब कुछ आपस में जुड़ा हो सकता है, कैसे कोई शक्ति सब कुछ देख भी रही हो, होने भी दे रही हो और आवश्यकता पड़ने पर सीमित हस्तक्षेप भी कर सकती हो। इस प्रकार, इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग ईश्वर का विकल्प नहीं बल्कि ईश्वर की अवधारणा की एक तकनीकी झलक मात्र है, उसे समझने का एक आधुनिक माध्यम।

जैसे IoE सिस्टम सामान्यतः स्वतः चलता है लेकिन आपात स्थिति में हस्तक्षेप करता है वैसे ही जीवन और प्रकृति अपने नियमों से चलती है, पर कभी-कभी दैवीय हस्तक्षेप की अनुभूति होती है। चूँकि वह चेतना पृथ्वी के समय से परे है, संभव है कि उसके हस्तक्षेप को हम अपने सीमित जीवनकाल में न देख सकें लेकिन दीर्घकाल में वही सुपर नेचुरल इंटेलिजेंस पृथ्वी और जीव-जगत के अस्तित्व की निरंतरता को संचालित करती रहती है।



पंकज जायसवाल