वफादारी और ईमानदारी में अंतर होता है-

coal and Manmohan सिद्धार्थ मिश्र “स्‍वतंत्र”

भ्रष्‍टाचार और घपले घोटालों में आकंठ डूबी कांग्रेस पार्टी की विश्‍वसनीयता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है । हांलाकि कांग्रेस अब तक इन सारे आरोपों को सिरे से नकारती रही है । वर्तमान परिप्रेक्ष्‍यों में सरकार का ईमानदारी का मुखौटा उतरता दिख रहा है । ज्ञात हो कि केंद्र सरकार का ये मुखौटा कोई और स्‍वयं हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ही हैं । इन दिनों कोयला घोटाले में उनकी संलिप्‍तता पाये जाने से कहीं न कहीं कांग्रेस का ये छद्म आवरण भी उतरता दिख रहा है ।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले की जांच में सरकार की लीपापोती की कोशिश करने के लिए जमकर फटकार लगाई है । ताजा मामले में सीबीआई द्वारा तैयार रिपोर्ट के न्‍यायालय में पेश होने से पहले ही कानून मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा उसमे संशोधन करने के आरोप ये साबित करते हैं कि सीबीआई निश्चित तौर पर सरकार के दबाव में काम करती है । इस विवाद में केंद्रिय मंत्री एवं प्रधानमंत्री कार्यालय की संलिप्‍तता पाये जाने के कारण ये मामला अब और भी गंभीर होता जा रहा है । ज्ञात हो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह घोटाले के वक्‍त ये मंत्रालय देख रहे थे । ऐसे में बेवजह के आरोप एवं कुतर्कों का प्रश्रय लेकर वे अपराध से मुक्‍त नहीं हो सकते । यहां विचारणीय प्रश्‍न है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी को ये रिपोर्ट देखने का अधिकार किसने दिया ? यदि ऐसा हुआ तो किसकी सहमति से हुआ ? ऐसे में विपक्ष का ये आरोप रिपोर्ट में संशोधन प्रधानमंत्री की शह पर हुआ है बिल्‍कुल जायज लगता है । यदि ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री जवाब दें कि इसका जिम्‍मेदार कौन है ? यहां मनमोहन जी की खामोशी से काम नहीं चलेगा, जवाब तो देना ही पड़ेगा । अभी कुछ दिनों पूर्व ही कर्नाटक में भाजपा को कड़े स्‍वर में कोसने वाले मनमोहन जी अब खामोश क्‍यों हैं ? कभी न्‍यायालय के गरीबों को मुफ्‍त अनाज देने के परामर्श को बेतरह खारिज करने प्रधानमंत्री की नैतिकता अब कहां है ? अथवा अपने शासन काल में घपलों एवं घोटालों के शिखर पुरूष बन चुके मनमोहन जी क्‍या दूसरे को उपदेश देने योग्‍य हैं ?

हजारों अनुत्‍तरित प्रश्‍न हैं जिनका जवाब खामोशी तो कत्‍तई नहीं हो सकती । इस पर कांग्रेसी नेताओं का ये तुर्रा की प्रधानमंत्री ईमानदार हैं,क्‍या मजाक नहीं लगता ? बेशक वे ईमानदार हैं लेकिन राष्‍ट्र के प्रति नहीं बल्कि प्रथम परिवार के प्रति एवं अपने भ्रष्‍ट मंत्रियों के प्रति हैं ।अभी एकाध वर्ष पूर्व ही विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री के इस्तिफे की मांग को मनमोहन जी ने ये कहकर ठुकरा दिया था कि इससे पद की गरिमा गिर जाएगी ? पद की गरिमा की इतनी परवाह करने वाले प्रधानमंत्री पद से जुड़े दायित्‍व कैसे भूल गए ? क्‍या उनके दायित्‍वों में भ्रष्‍टाचारियों पर लगाम लगाना शामिल नहीं था ? क्‍या उनके दायित्‍व में देश के विकास का मुद्दा शामिल नहीं था ?

जहां तक उनके भारत निर्माण के जुमले का प्रश्‍न है तो आम आदमी उनके इस पाखंड से भली भांति परिचित हो गया है । शायद यही वजह है कि लोग अब उनकी ईमानदारी को सिरे से खारिज कर रहे हैं । राष्‍ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटाल,टूजी स्‍पेक्‍ट्रम घोटाला,कोयला घोटाला, नरेगा में हो रही धांधली या हालिया सारधा समूह चिटफंड कंपनी में एक केंद्रिय मंत्री पत्‍नी की संलिप्‍तता निश्चित तौर पर मनमोहन जी की ईमानदारी की पोल खोलने के लिए पर्याप्‍त हैं । इसके अलावा भी ए.राजा को क्‍लीनचिट देने का प्रयास,ओट्टवियो क्‍वात्रोच्चि की तरफदारी के लिए ये देश उन्‍हे कभी भी माफ नहीं कर सकता । मनमोहन जी को अब ये समझना ही होगा कि वफादारी और ईमानदारी में बड़ा अंतर होता है ।

1 COMMENT

  1. खुद बे ईमान न होकर अपने बे ईमान साथियों का क्ष लेना भी बे ईमानी ही है. जो मनमोहन क्र रहेहैं.

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