डॉ. बालमुकुंद पांडेय
भारत का पूर्वी देश बांग्लादेश 1971 में बना था। तत्कालीन नवोदित राष्ट्र (विकासशील राज्य) के रूप में बांग्लादेश ‘ धर्मनिरपेक्ष’ राज्य ( देश ) था लेकिन 1975 में तत्कालीन बांग्लादेश की सरकार( सरकार पर कट्टरपंथियों का प्रत्यक्ष एवं सेना का भी प्रभुत्व था) ने ‘ धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को विलोपित करके उसमें कुरान की आयतों को सम्मिलित किया . इसी के साथ यह’ इस्लामिक देश’ बन गया। बांग्लादेश में इस्लामिक अतिवादी तत्व ,चरमपंथी एवं वहां सेना एवं अराजक तत्वों द्वारा प्रायोजित राज्येत्तर कर्ता ( Non state actor ) प्रत्येक दिन हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों पर अत्याचार एवं क्रूर यातनाएं दे रहे हैं । ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अब्दुल बरकत जी की हालिया प्रतिवेदन के अनुसार, विगत चार दशकों में 230612 लोगों ने पलायन किया है, उसमें ज्यादातर हिंदू अल्पसंख्यक हैं। प्रतिवेदन में यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि पलायन की यही रफ्तार रही तो अगले 30 सालों में बांग्लादेश में कोई हिंदू नहीं बचेगा ! इसके प्रति उत्तरदाई कारण धार्मिक उन्माद यातना एवं दहशतगर्दी की घटनाएं हैं
बांग्लादेश के गठन के समय 1971 में बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार हुआ था। आधिकारिक प्रतिवेदन के अनुसार वह मानवीय इतिहास एवं सभ्य नागरिक समाज का भयावह एवं डरावना समय था। इस दौरान व्यक्ति अपने जीवन, संपत्ति एवं सुरक्षा (प्राकृतिक अधिकार) के लिए प्राकृतिक अवस्था की स्थिति में थे। तत्कालीन विस्थापन के समय लगभग – लगभग 30 लाख लोगों का नरसंहार हुआ था और लगभग – लगभग 20 लाख महिलाओं के साथ यौन हिंसा और अमानवीय व्यवहार की घटना घटित हुई थीं । इस अमानवीय एवं निर्शंस व्यवहार के प्रति पाकिस्तान सरकार की चुप्पी घटना के प्रति संवेदनहीनता का प्रमाण था। न्यायमूर्ति रहमान के नेतृत्व में 1972 में एक तथ्यन्वेषक समिति( फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) बनाई गई थी. इस कमेटी की एक प्रति पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंपी गई थी जिसे उन्होंने कूड़ेदान में फेंकवा दिया था ।(21 अगस्त, 2000 को इंडिया टुडे पृष्ठ 8 से 10 तक)।
इस अमानवीय नरसंहार के पश्चात बांग्लादेश में ‘ धर्मनिरपेक्षता’ का वातावरण बना था। कट्टरपंथियों की धर्मजनित एवं दबावजनित राजनीति के कारण 1977 में संविधान से ‘ धर्मनिरपेक्षता’ को संशोधित कर के ‘इस्लामिक राज्य’ को प्राथमिकता प्रदान किया गया था । 1988 में इस्लाम धर्म बांग्लादेश का मौलिक धर्म एवं संवैधानिक धर्म बन चुका था।
कट्टरपंथियों, इस्लामवादियों और रजाकारों द्वारा हिंदुओं और बौद्ध अल्पसंख्यकों पर अत्याचार ,प्रताड़ना और उत्पीड़न किया जाता हैं । 2016 में इस निंदा के आरोपों में हिंसा में 15 मंदिरों को काफी हानि पहुंचाया गया था। 2017 में BJHM के प्रतिवेदन के अनुसार ,हिंदू समुदाय से कम से कम 170 लोग मारे गए थे और 31 लोगों को जबरन पलायित किया गया था । 782 हिंदुओं को देश छोड़ने के लिए बाध्य किया गया था, 23 लोगों को अन्य धर्म में जबरन बनाकर धर्मांतरित किया गया था। इस दौरान 25 हिंदू लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। 2017 में हिंदू समुदाय के साथ हुए अत्याचारों की संख्या 6474 थी। 2019 के आम चुनाव के दौरान मात्र ठाकुरगांव में हिंदू परिवारों के आठ घरों में आग लगा दी गई थी।
बांग्लादेश में भारत विरोधी वातावरण तैयार किया जा रहा हैं । वहां पर हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाओं पर भारत की तमाम चिताओं के बावजूद कार्यवाहक सरकार गंभीरता नहीं दिख रही हैं । एक अन्य चिंता यह है कि बांग्लादेश को कट्टरपंथी, जिहादी एवं दहशतगर्द ताकतों को सहयोग, समर्थन और संरक्षण दिया जा रहा हैं । अंतरिम सह कार्यवाहक सरकार के मुखिया की भूमिका में मोहम्मद यूनुस ने कई कट्टरपंथी और कट्टरपंथी संगठनों से प्रतिबंध हटाए हैं और आतंकी गतिविधियों में संलिप्त नेताओं पर से प्रतिबंध भी हटाए हैं और उनको कारागार से रिहा भी किया हैं। वर्तमान में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और पाकिस्तान सरकार के बीच में मधुर संबंध है और बांग्लादेश में पाकिस्तान का प्रभाव भी बहुत मात्रा में बढ़ रहा है।
बांग्लादेश में हिंदू विरोध को भारत विरोध बनाने की कोशिश की जा रही हैं। बांग्लादेश की वर्तमान हिंदू विरोध के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पाकिस्तान के “डीप स्टेट” की भूमिका को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता । बांग्लादेश में हिंदुओं को गरिमा एवं शांति के साथ जीवन जीने के लिए भारत सरकार के साथ-साथ सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और पूरी दुनिया में रहने वाले हिंदुओं को आगे आना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्णय लेने वाली सर्वोच्च निकाय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचारों पर चिंता जताई हैं और भविष्य में इस विषय पर आवश्यक प्रयासों की रूपरेखा तय की गई है ।
बांग्लादेश की 2022 की जनगणना के अनुसार, बांग्लादेश में सर्वाधिक आबादी बांग्लादेशी मुसलमानों की 91.04% हैं. इसके पश्चात हिंदुओं की संख्या 7.95 % हैं । बांग्लादेश में सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व हैं । वैश्विक स्तर पर बांग्लादेश स्वतंत्रता के पश्चात से कुल प्रजनन दर (TFR) दो तिहाई से भी कम हैं । बांग्लादेश में वर्तमान TFR 2.3 है, जिसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्थापन स्तर की ओर बढ़नी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है।
बांग्लादेश के संदर्भ में निम्न कदम उठाने की आवश्यकता हैं:
1. हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के लिए एक शांति और अहिंसक जन आंदोलन की आवश्यकता हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं को शांति और गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए भारत सरकार के साथ-साथ सभी वैश्विक संस्थाओं और पूरी दुनिया के हिंदुओं को एक स्वर में आवाज उठाने की आवश्यकता हैं. भारत को बांग्लादेश सरकार से सुनिश्चित करना चाहिए कि बांग्लादेश के हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों की रक्षा हों और वहां पर सक्रिय भारत विरोधी तत्वों पर संवैधानिक नियंत्रण हो। भारत हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की सरकार से बात करें. हिंदू, हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति के प्रति सजग पहल करने की आवश्यकता है।
डॉ. बालमुकुंद पांडेय