गजल

फिर गांव को शहर में बदलने की सोचना….

         hindu-muslimइक़बाल हिंदुस्तानी

नफ़रत से दूसरों को ना नीचे दिखाइये,

गर हो सके तो खुद को ही ऊंचा उठाइये।

औरों को चोट देने में घायल ना आप हों,

पागल के हाथ में ना यूं पत्थर थमाइये।

 

फिर गांव को शहर में बदलने की सोचना,

पहले शहर को प्यार से जीना सिखाइये ।

 

इंसानियत को पायेंगे हर शै से आप अज़ीम,

आंखांे से पहले तंगनज़र चश्मा हटाइये।

   काश समझ लेते हम धर्मों के असली के सार को…..

कब तक रोक सकेगा कोई आती हुई बहार को,

आखि़र गिरना ही होगा नफ़रत की दीवार को।

 

इतना खून बहाकर मंदिर मस्जिद का करना क्या,

काश समझ लेते हम सब धर्मों के असली सार को।

 

उनके हाथ भी जल जायेंगे हम तुमको दिखलादेंगे,

जो निकले हैं आग लगाने इस सारे संसार को।

सोने की थाली में तो हम भी खाना खा सकते हैं,

लेकिन कैसे बेचके आयें हम अपने किरदार को।।

नोट-अज़ीम-महान, तंगनज़र-संकीर्ण,सार-संदेश, किरदार-चरित्र।।