
अनिल अनूप
प्रश्न गंभीर है कि राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में ‘तबलीगी’ जमात के इज्तमा (समागम) को मिली इजाजत महाराष्ट्र के ‘वसई इज्तमा’ की तर्ज पर भारत में ‘कोरोना’ की दस्तक देने के बावजूद क्यों नहीं खारिज की गयी? दिल्ली में अभी तक जितने भी कुल 384 मामले कोरोना वायरस के हैं उनमें से 259 तबलीगी जमात से जाकर जुड़ते हैं और दिल्ली में जो कुल पांच लोग इस बीमारी से मरे हैं उनमें से एक का तार तबलीग से जुड़ता है। इस पांचवें व्यक्ति की मौत कल ही हुई है। यह आंकड़ा दिल्ली की सरकार का है जिसे खुद मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने खोला है। हालांकि पूरे भारत में कोरोना से मरने वाले लोगों में तबलीग से जुड़े लोगों की संख्या 25 प्रतिशत के आसपास मानी जा रही है। निजामुद्दीन का ‘तबलीगी इज्तमा’ 13 मार्च से शुरू हुआ था। मैं याद दिला रहा हूं कि 10 मार्च की होली थी। इस बार होली का त्यौहार लोगों ने कोरोना की वजह से दूर-दूर रह कर डर-डर कर मनाया था कि कहीं कोरोना का असर न हो जाये। होली वाले दिन ‘वीर’ ज्योतिरादित्य सिन्धिया कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये। इधर दिल्ली में ही ‘तबलीगी इज्तमा’ चलता रहा और भारत के विभिन्न राज्यों से लोग इसमें शिरकत करने आते रहे और वापस भी जाते रहे और उन 1300 के लगभग विदेशी दानिशमन्दों से मिलते-जुलते रहे जो इसमें शिरकत करने पहले से ही निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज में आये हुए थे। ये इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, सऊदी अरब, फिलीपींस आदि देशों से आये थे और अपने साथ कोरोना की ‘सौगात’ भी लाये थे। ये सब पर्यटक वीजा पर हिन्दोस्तान तशरीफ लाये थे इसलिए इज्तमा में भी शिरकत करते रहे और भारत के अलग-अलग शहरों की सैर करने भी जाते रहे। 22 मार्च को ‘लाॅकडाऊन’ की घोषणा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने की तो इस इज्तमा के आयोजकों को इसका पालन करना भारी लगने लगा और वे मरकज में ही ठहरे रहे। जब कोराना फैलने के पीछे मरकज में शामिल लोगों की खबरें आनी शुरू हुईं तो इज्तमा में हिस्सा लेने वाले भारतीय शहरियों की खोज खबर शुरू हुई और पाया गया कि उनमें कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत बड़ी संख्या में होने का अन्देशा है। यह अन्देशा ही होता तो ठीक था मगर पिछले चार दिनों में जिस तरह संक्रमणग्रस्त लोगों की संख्या एक हजार से बढ़ कर दो हजार तक पहुंची उनमें से 558 लोग इज्तमा में शिरकत करने वाले ही निकले। अब मरकज को इनसे खाली कराना भी भारी होने लगा तो स्वयं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को कमान संभालनी पड़ी लेकिन क्या सितम हुआ कि इन लोगों ने अस्पतालों में पहुंच कर खिदमतगार डाक्टरों व दूसरे साथ के कर्मचारियों के मुंह पर थूकने की नीच हरकत की और अस्पताल में गन्दगी तक फैलाने की हरकतें की। दरअसल यह बताता है कि हम मजहब के तास्सुब में किस हद तक गिर सकते हैं, लेकिन भारत वह देश है जिसमें धार्मिक कट्टरता को यहां के लोग ही अस्वीकार कर देते हैं। स्वतन्त्र भारत में न आज कहीं मुस्लिम लीग है और न हिन्दू महासभा। ‘सर्वधर्म समभाव’ हर हिन्दोस्तानी के रक्त में ‘समागम’ की तरह दौड़ता है। क्या तबलीगी जमात ने उन्हें यही सीख और संस्कार दिए हैं? देश के सबसे स्वच्छ शहर के तौर पर लगातार तीन बार राष्ट्रीय सम्मान पाने वाले इंदौर में एक भीड़ ने डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों पर थूका ही नहीं, गालियां ही नहीं दीं, बल्कि उन्हें मारने-पीटने को भी दौड़ी थी। गाजियाबाद के अस्पताल में क्वारंटीन को रखे गए कुछ गुंडों ने नर्सों के साथ अश्लील, अभद्र व्यवहार किया था। बीड़ी-सिगरेट की मांग की थी। कपड़े उतारने की शर्मनाक हरकत पर उतर आए थे। उप्र के बस्ती अस्पताल में कोरोना संक्रमितों ने बिरयानी और अंडों की मांग की थी। अलीगढ़ में पुलिस पर ही हमला कर दिया गया। केरल के कोच्चि अस्पताल में जमातियों ने वार्ड में गंदगी ही फैला दी। एक अस्पताल में जमाती क्वारंटीन को तैयार जरूर हुए, लेकिन सामूहिक नमाज पढ़ने पर आमादा हो गए। ऐसे हुड़दंगियों और अराजक तत्त्वों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि देश के लिए कोरोना महामारी का यह संकटकाल है, क्या उसके दौरान भी ऐसे लोग अपनी कट्टरपंथी सोच पर अड़े रहेंगे और देशव्यापी अभियान को ध्वस्त करने की कोशिशें करते रहेंगे? हास्यास्पद् है कि इन गुंडे, बदमाशों का मानना है कि कोरोना हिंदुओं और यहूदियों का ही विनाश करेगा। डाक्टर और नर्स जांच करने नहीं, उन्हें कोरोना का इंजेक्शन देने आते हैं ,ताकि उन्हें संक्रमण हो सके और वे मर जाएं। आश्चर्य है कि इन तमाम अभद्र, अनैतिक, असभ्य और देश-विरोधी हरकतों के पीछे एक ही समुदाय-मुसलमान-के चेहरे सामने क्यों आए हैं? क्या वे कोरोना वायरस के खिलाफ देश की लड़ाई को कुंद करने पर आमादा हैं? इसे दिल्ली मरकज की तबलीगी जमात के संदर्भ में समझने की कोशिश करें। स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को ब्रीफ किया था कि जमातियों और उनके संपर्क में आने वाले करीब 22,000 लोगों को क्वारंटीन में भेजा गया है। उनमें से कितने संक्रमित हैं, अभी यह आंकड़ा सार्वजनिक होना है। अभी तक देश में संक्रमितों की जो संख्या 3000 के पार जा चुकी है, उनमें से 1023 कोरोना संक्रमित हैं। यानी कोरोना संक्रमण के 30-35 फीसदी मामले एक ही जमात से आ रहे हैं। क्या यह खतरनाक संकेत नहीं है? भारत ने अभी तक जो भी टेस्ट किए हैं, उनके अनुपात में कोरोना मरीजों की संख्या बेहद सीमित रही है। यदि ऐसी ही हरकतें सामने आती रहीं, तो हम शून्य पर पहुंच सकते हैं। करीब 138 करोड़ की आबादी वाले देश में ऐसी लापरवाहियां बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। फिलहाल 17 राज्यों के ही आंकड़े उपलब्ध हैं, जिनमें साफ है कि तबलीगी जमात ने कोरोना संक्रमण के खिलाफ हमारी लड़ाई को कमजोर किया है। अभी तो कहा जा रहा है कि सामुदायिक संक्रमण की शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन जमात किस हकीकत की ओर इशारा कर रही है। बताया गया है कि इस संदर्भ में कुछ वीडियो वायरल पर आधारित एक रपट गृह मंत्रालय को सौंपी गई है। उसे खुफिया ब्यूरो को सम्यक जांच के लिए दिया गया है। करीब 30,000 वीडियो वायरल हुए हैं, जिन्हें करोड़ों लोग देख-सुन चुके हैं। उनमें अजीब भ्रम फैलाने की साजिश सामने आई है। मसलन-मुसलमानों को कोरोना नहीं हो सकता। मास्क लगाना इस्लाम के खिलाफ है। मुसलमान गले मिलते रहें, उससे बीमारी दूर होती है। क्वारंटीन का मतलब है-जेल भेज देना। बताया गया है कि ये वीडियो पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात में बनाए गए। बाद में संपादित करके भारतीय सोशल मीडिया पर चलाए गए हैं। सवाल है कि यह कैसे पता चलेगा कि वीडियो का मूल स्रोत कौन है? मूल अकाउंट किसका है? क्योंकि भारत में आने से पहले मूल अकाउंट को डिलीट कर दिया गया है। सवाल यह भी है कि क्या मुसलमानों के बीच इस भ्रम को फैलाया गया है? संदेह यूं होता है कि कुछ ‘काली भेड़ें’ टीवी चैनलों पर बैठकर जमात का बचाव कर रहे हैं और अपनी गलतियों पर माफी भी मांगने को तैयार नहीं हैं। क्या ऐसी जमात को ‘देशद्रोही’ करार न दिया जाए? जमात के लोगों ने कई राज्यों के गणित बिगाड़ दिए हैं। यदि इसी आधार पर मामले सामुदायिक संक्रमण के तीसरे चरण तक पहुंच गए, तो देश के हालात क्या होंगे? भारत के पास अमरीका, इटली, स्पेन, ब्रिटेन सरीखे संसाधन भी नहीं हैं। हम बुनियादी तौर पर एक गरीब देश हैं, जहां करीब 30 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा के तले जीने को मजबूर हैं। सिर्फ एक जमात के कारण देश को ताक पर नहीं रखा जा सकता, लिहाजा सरकार को कोई कठोर निर्णय लेना ही होगा।