ये मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर

—विनय कुमार विनायक
मैं ढूँढ रहा हूँ अपनों में अपनापन
इंसान में इंसानियत आदमी में आदमियत
कि आज मानव से मानवता हो गई लापता!

मैं सोच नहीं पाता हूँ कि किसने की खता
मैं रहता हूँ मौन मैं करता नहीं किसी को फोन
मैं खोजता हूँ अपनों के बीच वैसा ही रिश्ता
जो बगैर फोन का बन जाया करता था फरिश्ता!

मैं सोचता हूँ जब नहीं था मोबाइल
तब मानव का दिल इतना नहीं था घायल
मानव में इतनी संवेदना होती थी जीवित
कि आसानी से मिल जाता था हर मंजिल!

जब मोबाइल की ईजाद नहीं हुई थी
तब मानव की जिंदादिली भी गुमशुदा नहीं थी
अब मोबाइल ने मन में भर दी ऐसी पेचीदगी
कि अपनों में अपनापन नहीं सिर्फ दगा दगी!

मैं खोजता हूँ वैसा कोई सगा
जिसने किसी रिश्ते को कभी नहीं हो ठगा
जो कभी देते नहीं किसी को दगा
कि मैं भी हूँ कुछ ऐसा ही आदमी अभागा!

आज फिर से चाहिए वैसा इंसानी कारिंदा
जो बिना फोन के भी रह सके जिंदा
मैं तलाशता हू उन पहले जैसे संबंधों को
जो संबंध निभाए या नहीं निभाए
पर खुद के बचाव मे दूसरे की ना करे निंदा!

जो नेकनीयत औ’ सीधा साधा हो बंदा
जो गलत किए पर हो सके शर्मिंदा
जो करता नहीं गलत-सलत गोरखधंधा
जो समझे नहीं भले आदमी को गंदा
जो पापी को कह सके पापी और दरिंदा!

मैं चाहता सबको मिले संबंधी वैसा
जो चले कंधे से मिला कर कंधा
जो संबंध को समझे नहीं बंधन या फंदा!

मैं खोजता हूँ उन बड़े लोगों को
जो छोटे को आशीर्वाद देना गए नहीं हो भूल
मैं खोजता हूँ उन छोटे लोगों को
जो बड़े से आशीष लेने का भूले नहीं हो उसूल!

अब खोजने से भी क्या फायदे वैसे रिश्ते
जो जानबूझ कर हो गए बेगाने
आज आदमी आदत से हो गया है मजबूर
ये मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर!

ले देकर आठोयाम रह गया एक ही बेकार काम
दूसरे के भले बुरे विचारों का वाट्सएप पर आदान प्रदान
जिसमें अपना कुछ नहीं रहता दिमागी योगदान
अब बड़े मतलबी हो गए आदमी बहुत बदल गए इंसान!

हर चीज मौजूद है इस मोबाइल में
मगर कुछ भी संवेदना नहीं आदमी के दिल में
अब किसी का घर नहीं आना जाना
अब झूठ फरेब का है जमाना बहाना ही बहाना!

अब सारे रिश्तेदार न्योता विजय लितहार
एकसाथ सभी निमंत्रण मोबाइल से भेज देते है यार
एक पैसे का खर्चा नहीं सुख दुख की भी चर्चा नहीं
किसकी कैसी आर्थिक स्थिति कैसा है घर का इंतजाम
एक दूसरे का घर आए गए बिना होता नहीं अनुमान!

अब तो रील बनाने और चैटिंग करने में लोग मशगूल
अपनों के प्रति कर्तव्य निभाना नहीं रिश्तेदार को कबूल
अब पराए लोगों को इम्प्रेस करना अपनों से दूरी बनाना
यही इस मोबाइल युग की हकीकत और यही अफ़साना!
—विनय कुमार विनायक

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