राजनीति

ये ‘आप’ की समझी हुई ना-समझी है

राजीव रंजन   aap

किस्से बनेंगे अब तो, बरस भी कमाल के / पिछला बरस गया है, कलेजा निकाल के…

जगजीत सिंह की आवाज में यह गजल आज की राजनीतिक गतिविधियों को परिलक्षित करने के लिए काफी है। पिछला बरस तो सचमुच यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार और महंगाई से आम जनता का कलेजा निकाल बाहर रख दिया, तो वहीं केजरीवाल के किस्से धूम मचा रहे हैं। लेकिन एक दूरदर्शी इशारा इंगित करता है कि केजरीवाल अभी राजनीति में नवोदित हैं और राजनीति का विज्ञान नहीं सीख पाए हैं। हल्कापन है। भाषाओं और कदमों पर नियंत्रण नहीं है। भगवान दास रोड पर डुप्लैक्स मिलने पर वह इतने खुश हुए कि उनके शिफ्ट करने से पहले सगे-संबंधी व मीडिया उसकी फिनिशिंग दिखाने में मशगूल हो गई। दूसरी तरफ मीडिया वाले ये दिखाने लगे कि बदल रहे हैं केजरीवाल… 9 हजार स्क्वायर फीट के बंगले में रहेंगे केजरीवाल.. वगैरह, वगैरह… केजरीवाल ने पलटी मारी और मना कर दिया। तो क्या ये मनाही केजरीवाल ने दिल से किया या यह पॉलिटिकल स्टंट है ? असल में आआपा के संजय सिंह और प्रशांत भूषण चार जनवरी को ही लोकसभा चुनाव पर अहम नीतियां बना रहे थे। ऐसे में जब केजरीवाल ने पूरी जानकारी ली तो उनके विश्वस्तों ने उन्हें कहा कि हम लोकसभा चुनाव पर मीडिया कॉन्फ्रेंस तो करने जा रहे हैं, लेकिन मीडिया में आपके मुख्यमंत्री द्वारा आवास लेने की खबर को जो तोड़-मरोड़ दिखाया जा रहा है, उसका क्या करेंगे, तो केजरीवाल ने झट से मारी यू-टर्न और कहा- मकान नहीं चाहिए। असल में ऐसा नहीं है कि केजरीवाल इसे लेने से इनकार कर रहे हैं, केजरीवाल सब कुछ स्वीकार करेंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव में जनता को मूर्ख बनाकर।

आपको याद दिला दें कि इसी दिल्ली के सीएम ने अपने बच्चों की कसम तक खा डाली थी। बार-बार पूछे जाने पर केजरीवाल ने बस यही कहा था कि “नहीं भैया जोड़-तोड़ न करने और सरकार का विरोध करने के कारण ही जनता ने हमें चुना। हम न समर्थन लेंगे और न देंगे। बाद में केजरीवाल पलटे और उसी कांग्रेस की गोद में जा बैठे जिसपर वो लांछन लगाते आए थे। ये रहा केजरीवाल का झूठ नंबर वन! हालांकि बढ़ते विरोध को देखते हुए एक विडियो मैसेज जनता के सामने कई भाषाओं में लाया गया जिसमें केजरीवाल जनता को सफाई दे रहे थे कि वो सरकार क्यूं बना रहे हैं। केजरीवाल बस यही नहीं समझा पाये की वो पलटू हैं और हर सवाल का उनके पास पहले से ही जवाब तैयार होता है। हो भी क्यूं न, आईआईटी के स्टूडेंट रहे हैं तो तैयारी के साथ ही मैदान में उतरेंगे। लेकिन कोई भी तर्क देकर वो जनता को ज्यादा दिन बेवकूफ नहीं बना सकते।

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाबी तो हासिल कर ली है लेकिन कई मौकों पर उसके विधायकों और मंत्रियों की अनुभवहीनता भी देखने को मिल रही है। सरकार बनने के बाद केजरीवाल एंड पार्टी ने ऐलान किया कि 3 महीने तक 700 लीटर पानी पर कोई बिल नहीं लगेगा, लेकिन अगर एक लीटर भी ज्यादा खर्च हो गया तो लोगों को पूरा चार्ज देना होगा। इस पर मुझे बचपन का गली क्रिकेट मतलब की गलियों में खेले जाने वाले क्रिकेट की याद आती है। इस खेल का नियम ये होता था कि दीवार पर उड़ते-उड़ते गेंद लगी तो छक्का और पार गयी तो आउट। यही खेल केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के साथ खेला। सोचने वाली बात ये भी है कि राजधानी में कितने लोग हैं जिनके घरों में मीटर लगा है? जवाब है बहुत ही कम। तो फिर केजरीवाल जी की यह सोच, बहादुरी और ईमानदारी के लिए क्या उन्हें इनाम दिया जाए ये भी सोचनीय है। केजरीवाल ने हमेशा की तरह बंद कमरे में ये फैसला ले लिया लेकिन उन्होंने जनता को ये नहीं बताया कि उनके इस फैसले से राज्य के खजाने पर हर महीने कितने करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा? केजरीवाल ने बहुत चतुराई से जहां मुफ्त पानी दिये जाने का नाटक कर जनता को बहुत ही सफाई से बेवकूफ बनाने का काम किया, वहीं जनता को इस बात से भी भ्रमित कर दिया कि अंततः नुकसान आम आदमी का ही होना है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘झूठे वादे’ कर जनता को गुमराह करने का काम किया है। घोषणापत्र में किए गए वादे पूरे नहीं हुए हैं जिसमें बिजली, पानी को लेकर अधूरी घोषणाओं और जन लोकपाल शामिल है। केजरीवाल के खिलाफ एक जनहित याचिका भी दाखिल की जा चुकी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सत्ता में आकर फायदा उठाने के मकसद से आम आदमी पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में झूठे वादे किए और जनता को गुमराह किया। आम आदमी का संबंध सत्ता से है और सत्ता में बैठने वाले तथाकथित आम आदमी भी अब आम नहीं प्रतीत होते। ये राजनीति है और यहां सब के कपड़े सफ़ेद हो जाते हैं, बाकी दाग अच्छे हैं। वो लगते रहेंगे और छूटते भी रहेंगे। तो क्या हम ‘आप’ को माफ कर दें!

आम आदमी का बोझ कब हल्का हुआ? क्या राहत मिली? राहत रातों-रात नहीं मिलती। खैर बोझ कम तो नहीं हो रहा लेकिन मूल्यों में बढ़ोतरी ज़रूर की जा रही है। डीज़ल-पेट्रोल का दाम बढ़ चुके है, दूध का भी दाम बढ़ा दिया गया है। सवाल है कि आम आदमी को राहत किस स्तर पर दी जा रही है। कुछ दाम घटे तो आम आदमी भी खुश हो जाए, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं …

मेट्रो का किराया वही, ऑटो का किराया वही, बस का किराया वही, पानी आने का टाइम वही, पानी जाने का टाइम वही, गैस सिलिंडर का भाव वही, ऑफिस जाने का टाइम वही, स्कूल से आने का टाइम वही, मकान मालिक वही किरायदार वही, आईटीओ पर रेलम रेल वही, आम आदमी से पुलिस का बर्ताव वही, नेताओं का मान वही, नारियों को सम्मान वही! ये गलियां, चौक-चौबारे और मुर्दों का श्मशान वही… दिल्ली वही दिलवाले वही.. जो आज बदल गया वो केजरीवाल वही।“