कविता

तीन भाई सबसे जुदा

अपने ही घर में, एक कमरे में है बूढ़े माता पिता

एक बेटे ने, नौकरी लगते ही उन्हे छोड़ दिया

एक बेटे ने, घर की मर्यादा के लिए उन्हे छोड़ दिया

दोनों निठल्लों के रहते, एक ने माँ बाप को छोड़ दिया ॥

एक भाई सुखी है, तमाम उम्मीदों के साथ

एक भाई दुखी है, खुद की बुनी उलझनों में

एक भाई विवश है, अपनी ही लाचारियों में

वे न एक दूसरे से पूछते हैं, और न बताते हैं।।

तीनों को बराबरी से, बनाकर दिया भव्य भवन

माता पिता एक कमरे मे, झेल रहे है बुढ़ापी तपन

शरीर हुआ दर्द का गुब्बारा, रोते खूब दबाते शोर है

गज़ब के बेटे हैं, वे सुनते देखते नहीं इस ओर है ॥

आस लगाए नजरे गढ़ाए, वे बेटों को देख रहे हैं

पहले जैसे नहीं रहे बेटे, अब वे खुदकी सेक रहे हैं

कहती माता- उसी तरह नहीं आते, जैसे पहले आते

माँ कितनी भोली है, वे आते हैं पर अनदेखा कर जाते ॥

देखे बिना अनदेखा करना, क्या है बेटों की मजबूरी

कठोर हुए क्यों बेटे इतने, क्यों बनाई इतनी दूरी

पीव बेटा देकर बेटी ली, पर बेटी ने बेटों से दूर किया

छीन लिए बेटे, निष्पाप मात-पिता का श्राप लिया ॥

जो अपने ही घर में, रूखी सुखी को मोहताज रहे

उस माता-पिता की तस्वीर, रोज पूजते हैं बेटे

बड़े संस्कारी है बेटे, ससुराल के वे सरताज जो है

माँ बाप कल मरते हो, आज मर जाये ! इतना इनका प्यार

ससुराल में पशु भी छीके, बेटे उथल पुथल कर देंगे संसार ॥

आत्‍माराम यादव पीव