अब वसूली का समय है

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-आलोक कुमार-
inflation

कीमतें बढ़ने के पीछे उत्पादन की कमी, मानसून इत्यादि जैसे कारण तो हैं ही। लेकिन महंगाई की असली वजह यह है कि खेती की उपज के कारोबार पर बड़े व्यापारियों, बिचौलियों और काला-बाज़ारियों का कब्ज़ा है। ये ही जिन्सों के दाम तय करते हैं और जान-बूझ कर बाज़ार में कमी पैदा करके चीज़ों के दाम बढ़ाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कृषि उपज और खुदरा कारोबार के क्षेत्र को बड़ी कम्पनियों के लिए खोल देने से स्थिति और बिगड़ गयी है। अपनी भारी पूंजी और ताक़त के बल पर ये कम्पनियां बाज़ार पर पूरा नियंत्रण कायम कर लेती हैं और मनमानी कीमतें तय करती हैं। हमारे देश में वायदा कारोबार की छूट देकर व्यापारियों को जमाखोरी करने का अच्छा मौका दे दिया गया है। सरकारें ये कह कर अपना पल्ला झाड़ती है कि जमाखोरी के कारण महंगाई बढ़ती है। लेकिन इन जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय केन्द्र की सरकार राज्य सरकारों को कार्रवाई करने की नसीहत देकर खुद को जिम्मेवारी से मुक्त कर लेना चाहती है। लेकिन केन्द्र हो या राज्य सरकारें, जमाखोरी करने वाले व्यापारियों पर कोई हाथ नहीं डालना चाहता। हरेक राजनीतिक दल में इन व्यापारियों की दखल है और सभी इनसे करोड़ों रुपये का चन्दा वसूलती हैं। हाल में हुए चुनावों में भी इन मुनाफाखोरों ने अरबों रुपये का चन्दा पार्टियों को अवश्य ही दिया होगा और अब उसकी वसूली का समय है। सरकारें (केंद्र-राज्य) पीडीएस और सस्ते गल्ले आदि के लिए तो आवंटन घटाती जा रही है लेकिन पूंजीपतियों को सैकड़ों करोड़ की सब्सिडी देने में उसे कोई गुरेज़ नहीं होता।

हमारे देश में गलत नीतियों के कारण अनाजों के उत्पादन में निरंतर कमी आती जा रही है और आज खेती संकट में है। आजादी के सड़सठ सालों के बाद भी कृषि-प्रधान देश में खेती का पिछड़ना और हरेक साल मॉनसून की मार का रोना रोना सरकारों की मंशा पर अनेकों सवालिया निशान खड़ी करती है। उदारीकरण के दौर की नीतियों ने इस समस्या को और गम्भीर बना दिया है। जहां अमीर देशों की सरकारें अपने किसानों को भारी सब्सिडी देकर खेती को मुनाफे का सौदा बनाये हुए हैं, वहीं हमारे देश में सरकारी उपेक्षा, पूंजी की मार और संसाधनों की कमी ने किसानों की कमर तोड़ दी है। एग्री-बिजनेस कम्पनियों, उद्योगपतियों की मुनाफोखोरी और सिंचाई के लिए डीजल पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता से खेती की लागत लगातार बढ़ रही है और किसानों के लिए खेती करके जी पाना मुश्किल होता जा रहा है। इसका सीधा असर देश के खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ रहा है। खेती का कारोबार पूर्णत: कम्पनियों के कब्जे में जाता हुआ दिख रहा है जो खाद-बीज-कीटनाशक और कृषि-उपकरणों जैसे खेती के साधनों से लेकर फसलों के व्यापार तक को नियन्त्रित करती हैं। जब तक कृषि-उत्पादों का उत्पादन और वितरण सिर्फ मुनाफे के लिए होता रहेगा तब तक महंगाई दूर नहीं हो सकती है।

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