पाकिस्तान के नापाक इतिहास से सबक लेने का समय!

डॉ. बालमुकुंद पांडेय 

मूल प्रश्न यह है कि पाकिस्तान आखिर क्यों गलत नीतियों का चयन करता है?

पाकिस्तान क्यों सभ्य राष्ट्र – राज्यों  के मौलिक सिद्धांतों का पालन नहीं करता है? कौन से आधारभूत तत्व हैं जो पाकिस्तान द्वारा गलत नीतियों  एवं विकल्पों के चयन के लिए उत्तरदाई है ? किसी भी राष्ट्र – राज्य की राष्ट्रीय पहचान उसके राष्ट्रीय व्यवहार ,राष्ट्रीय प्राथमिकताओं ,सफल कूटनीति, स्थिर सरकार एवं उसे राष्ट्र – राज्य के वैश्विक दृष्टिकोण को आकार देने वाला महत्वपूर्ण कारक है। 1930 में मुस्लिम लीग ने अपने इलाहाबाद अधिवेशन में मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का विचार रखा था लेकिन इस प्रत्यय को ठोस आकार देने का श्रेय रहमत अली चौधरी को जाता हैं जिन्होंने 1933 में लंदन में जारी एक ‘ पंपलेट’ में” पाकिस्तान” शब्द का प्रयोग करके उसकी स्थापना की अपील की थी ।”मैं भारत की पांच उत्तरी इकाइयों पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश (अफगान), कश्मीर, सिंध  एवं बलूचिस्तान में निवास कर रहे पाकिस्तान के 30 मिलियन मुसलमानों की ओर से अपील  करता हूँ “। इसमें उनकी राष्ट्रीय मान्यता की मांग सम्मिलित है जो भारत में निवास कर रहे अन्य निवासियों से अलग हैं एवं उसको सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक आधार पर स्थापित करना चाहिए। कालांतर में  मोहम्मद अली जिन्ना ने इस विचार को ग्रहण कर लिया एवं अपने पाकिस्तान की मांग को एक राजनीतिक कार्यक्रम में बदल दिया ।

पाकिस्तान के लिए सेना  एवं धार्मिक कट्टरता जीवित संस्था हैं । तमाम नकारात्मक परिणामों के बावजूद इन दोनों की पाकिस्तान के परिदृश्य में उपयोगिता बनी हुई हैं । देश अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए सेना का गठन करते हैं लेकिन, पाकिस्तान की सेना  की भूमिका सीमाओं की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि आंतरिक विप्लव में भूमिका सराहनीय है । पाकिस्तान के आवाम में  सेना और सरकार से असंतोष का उत्पन होता हैं तो युद्ध,उन्माद , दहशतगर्दी और  सीमा पार उन्मादी कार्य प्रारंभ हो जाता हैं। पाकिस्तान की भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत आत्मपरीक्षण  एवं आत्ममूल्यांकन की क्षमता का लोप हो चुका है। इसका तात्पर्य है कि भविष्य में सुधार की संभावना नहीं है। राजनीतिक  विश्लेषकों  का मानना हैं कि पाकिस्तान एक असफल राज्य नहीं हैं बल्कि एक असुरक्षित राज्य है, जो गलत पड़ोसी की नीतियों का चयन करता है, आंतरिक स्तर पर अस्थिर तत्वों से प्रभावित रहता है। पाकिस्तान सभ्य  राष्ट्र – राज्यों के राजनीतिक एवं कूटनीतिक  शिष्टाचार को भूल चुका है।

23 अक्टूबर ,1947 को तत्कालीन आर्मी प्रमुख जनरल अकबर खान के नेतृत्व में पाकिस्तानी   कबायलियों (सेना के सहयोग से) ने कश्मीर पर बलात आक्रमण किए थे । ब्रिटिश कमांडरों ने कश्मीर के खिलाफ विद्रोह किया और ‘ गिलगित’ को पाकिस्तान को सौंप दिया गया था। इस युद्ध विराम समझौते का परिणाम यह हुआ कि जम्मू- कश्मीर रियासत भारत के साथ विलय हुआ था। तत्कालीन जम्मू – कश्मीर रियासत के विलय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंचालक गोलवलकर जी की महत्वपूर्ण भूमिका  थी। इस युद्ध का परिणाम अनिर्णायक था हालांकि सबसे तटस्थ मूल्यांकन इस बात से सहमति है कि भारत युद्ध का विजेता था क्योंकि यह कश्मीर घाटी, जम्मू एवं लद्दाख सहित कश्मीर के दो – तिहाई हिस्से का सफलतापूर्वक बचाव करने में सक्षम हुआ था।

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध को “दूसरे भारत पाकिस्तान युद्ध ” के रूप में जाना जाता हैं । पाकिस्तान एवं भारत के बीच अगस्त, 1965 से सितंबर, 1965 तक सशस्त्र युद्ध हुआ था। युद्ध पाकिस्तान के असफल “ऑपरेशन जिब्राल्टर”  के पश्चात हुआ जिसे भारत सरकार  के विरुद्ध विद्रोह को तेज करने के लिए जम्मू और कश्मीर में  पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ करने के लिए खाका तैयार किया था। 17 दिवसीय भीषण युद्ध में भारत और पाकिस्तान के हजारों लोग हताहत हुए ।तत्कालीन सोवियत संघ (दूसरी दुनिया) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका( प्रथम दुनिया) द्वारा ‘ कूटनीतिक वार्ता ‘ एवं ‘ ताशकंद घोषणा पत्र’ के पश्चात दोनों देशों के मध्य युद्ध समाप्त हुआ था।

1971 में भारत एवं पाकिस्तान के मध्य युद्ध का मुख्य कारण ‘ बांग्लादेश मुक्ति युद्ध’ था जो बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र करने के लिए लड़ा जा रहा था। इस युद्ध ने भारत को दक्षिण एशिया एवं वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की भू – राजनीतिक प्रभाव में उन्नयन हुआ था।

 6 एवं 7 मई ,2025 की आधी रात्रि को भारत ने आतंकवाद के गढ़ ‘ पाकिस्तान ‘ में सटीक, संयमित,  और नैतिक प्रतिशोध का परिचय दिया था। “ऑपरेशन सिंदूर “एक सैन्य अभियान के साथ भारत की चेतना, राष्ट्रीयता, राष्ट्रभाव, और संस्कृति पर आघात का वैचारिक उत्तर था। भारत का राष्ट्रीयता की भावना सीमाओं के साथ ,मां की वंदना , स्त्रीत्व  का गौरव और सभ्यता की अस्मिता की रक्षा का भाव है। धर्म पूछ कर आतंकवादियों द्वारा आघात करना भारत की संस्कृति, सहिष्णुता एवं सामूहिक चेतना पर दुस्साहसी आघात था । सेना की कार्रवाई भारत के सम्मान को सर्वोपरि रखने वाली वैचारिक स्पष्टता है।

पाकिस्तान अधिकृत  ‘ POJK ‘ में मौजूद जैश – ए  – मोहम्मद एवं लश्कर- ए- तैयबा के आतंकी शिविर, पाकिस्तान पंजाब के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र , मस्जिदों एवं मदरसों की आड़ में चल रही जिहादी प्रशिक्षण शिविर को भारत ने चिन्हित कर सटीकता से ध्वस्त किया था। 2016 में “उरी सर्जिकल स्ट्राइक” और 2019 में “बालाकोट एयर स्ट्राइक” के पश्चात यह  स्पष्ट हो गया है कि भारत के संयम एवं धैर्य को कमजोरी मानने वाले को सुधारने का तरीका समझ लिया है। 2025 में “ऑपरेशन सिंदूर “संयम  से शक्ति का अगला सोपान है। आतंकवाद के विरुद्ध ‘ संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता’ हों या ‘ जेनेवा कन्वेंशन ‘ के विभिन्न विषय, भारत ने सभी के अनुरूप इस  अभियान में पालन किया हैं । भारत ने अपनी सैनिक क्षमता का अनुप्रयोग मर्यादित एवं नैतिकता की सीमाओं में किया हैं।

मानवाधिकारों को संतुलित कर रखते हुए आतंकवाद के विरुद्ध जोरदार तरीके से बढ़ने की प्रक्रिया हैं जो वैश्विक स्तर पर भारत का नैतिक आधिपत्य की स्थापना करता है । यह  अभियान प्रमाणित करता हैं कि भारत में ‘ न्यायोचित शक्ति’ का प्रयोग किया है । समकालीन में भारत क्षेत्रीय शक्ति नहीं बल्कि इतिहास ,मानवता, संविधान एवं  संस्कृति का संरक्षक है। वैश्विक स्तर पर एवं सुरक्षा परिषद (चीन को छोड़कर) यह  युद्ध सभ्यता बनाम बर्बरता का संघर्ष हैं । पाकिस्तान  एक ऐसा कबीलाई जम्हूरियत हैं ,जहां पर बाल – विवाह, भीड़ द्वारा हत्या, अल्पसंख्यकों को प्रताड़ना एवं उत्पीड़ित करके एवं  स्त्रियों के अधिकारों को बलात तरीके से कुचलना ही धर्म है। यह  संघर्ष भारत बनाम पाकिस्तान नहीं बल्कि सभ्यता बनाम बर्बरता का युद्ध हैं । भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया हैं कि वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने प्रत्येक नागरिक की अस्मिता एवं जीवन की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत एवं पाकिस्तान के संबंध जटिल एवं तनावपूर्ण हैं जो विभाजन के बाद से चले आ रहे हैं। दोनों के बीच जम्मू – कश्मीर, सीमा पार आतंकवाद, मानव तस्करी, जल बटवारा एवं अन्य क्षेत्रीय विवादों के मुद्दे संबंधों में तनाव पैदा करते हैं।

भारत एवं पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए कूटनीति, सफल राजनय, विश्वास निर्माण यांत्रिकी, आर्थिक सहयोग एवं क्षेत्रीय संबंधों में विश्वास बहाली के उपाय हैं.

डॉ. बालमुकुंद पांडेय

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