डा. विनोद बब्बर
समय की सत्ता अखंड और अनंत है। वही सम्पूर्ण सृष्टि का, सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सर्जक है, नियामक भी है। वह न कभी शुरू हुआ, न कभी खत्म होगा। वह न चलता है, न रुकता है, न जाता है, न आता है। वही सर्जक है, पालनहार है और उसी के भीतर सब कुछ है,। उसकी अपनी लय है। असम्भव को सम्भव करने की शक्ति है। पर मनुष्य की दृष्टि सीमित है। कालचक्र के प्रवाह को समझने के लिये मनुष्य समय की हदबंदी में बांटकर देखने में सुविधा अनुभव करता है। उसने समय को भूत, वर्तमान और भविष्य में बांटा लेकिन जब उससे भी बात नहीं बनी तो फिर उसका और विभाजन कर छोटी इकाइयां बनाई। पल-पल से शुरु हुई कालचक्र की यह यात्रा घंटा, दिन, सप्ताह, माह, वर्ष, दशक, शती और इसी तरह युग-युगाब्द की कल्पना तक जा पहुंची। वर्ष मनुष्य के जीवन को मापने का सबसे महत्वपूर्ण मानक मान लिया गया। इसी अर्थ में हर नया वर्ष किसी भी समाज, राष्ट्र अथवा विश्व को अपनी पिछले वर्ष की कामयाबियों, नाकामयाबियों के बारे में मूल्यांकन और भविष्य के नये लक्ष्य निश्चित करने का मौका देता है। सम्भवतः इसी नजरिये ने आदमी को नववर्ष मनाने की प्रेरणा दी होगी।
यह परम्परा प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है। दुनिया भर के तमाम समाजों, जातियों और समुदायों, सम्प्रदायों में अलग-अलग ढंग से, अलग-अलग तिथियों, महीनों में नववर्ष मनाने की परम्परा है। सांस्कृतिक दृष्टि से पृथक-पृथक समूहों में नववर्ष के महत्व को लेकर अनेक मिथकीय कथायें प्रचलित हैं। सदियों से चले आ रहे कुछ विश्वास भी हैं और कुछ अन्धविश्वास भी। यद्यपि दुनिया के एक हिस्से में नये साल की शुरुआत एक जनवरी से मानी जाती है लेकिन इसके बावजूद अनेक देशों और जातीय अस्मिताओं वाले समाजों में आज भी वर्ष के अलग-अलग महीनों में नववर्ष मनाने की परम्परा है। स्थानीय किंतु प्राचीन परम्पराओं और विश्वासों में सदियों से बँधे होने के कारण वे ऐसा करते हैं। ईरानी और बहावी नववर्ष 21 मार्च को, नेपाली, सिंहल और थाई 14 अप्रैल को, पारसी 23 अप्रैल को, मोरक्कन 3 अक्टूबर को, वियतनामी 17 जनवरी को, केल्टिक 21 जनवरी को और मिस्र में यह 7 जनवरी को मनाया जाता है। इस्लामी देश इस्लामी कैलेंडर के अनुसार अपना नया साल मुहर्रम माह की पहली तिथि को मनाते हैं। इसी तरह भारतीय नववर्ष चैत्र माह के प्रथम दिन हो़ता है। पारम्परिक भारतीय कैलेंडर विक्रमी सम्वत के अनुसार चलता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल से होता है। यह सृष्टि के आरम्भ का दिन भी है। यह वैज्ञानिक तथा शास्त्रशुद्ध गणना है। ठिठुरती ठंड मे पड़ने वाले ईसाई नववर्ष पहली जनवरी से भारतवंशियों का कोई सम्बन्ध नहीं है। भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का पोषक है जो प्रकृति और विज्ञान का ऐसा विलक्षण उदाहरण है। सत्य तो यह है कि भारतीय नववर्ष उसी नवीनता के साथ देखा जाता है. नए अन्न किसानों के घर में पहुंच जाते हैं, वृक्ष में नए पल्लव यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपना स्वरूप नए प्रकार से परिवर्तित कर लेते हैं. होलिका दहन से बीते हुए वर्ष को विदा कहकर नवीन संकल्प के साथ वाणिज्य व विकास की योजनायें प्रारंभ हो जाती है।
हमारे महापुरुषों का भी कथन है कि निज गौरव को खोना आत्मघाती होता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले प्रतीकों को महिमा मंडित करने से आत्म सम्मान नष्ट होता है।’ इसी प्रकार महात्मा गांधी ने 1944 में अपनी पत्रिका में लिखा था, ‘स्वराज का अर्थ है स्वसंस्कृति, स्वधर्म एवं स्वपरम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना। पराया धन और परायी परम्परा को अपनाने वाला न तो ईमानदार कहलाता है और न ही आस्थावान।’ जहां तक भारत का प्रश्न है, ‘अनेकता में एकता’ का मंत्र लिये हमारे देश में नववर्ष दिवस भी अनेक हैं जो अपनी -अपनी समृद्ध परम्पराओं से जुड़े हुए हैं। असम में बीहू, केरल और तमिलनाडु में विशु के नाम से, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से और पंजाब में बैसाखी के नाम से मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह नयी फसल के त्योहार के रूप में आता है। गुजरात और पश्चिम बंगाल दीवाली को नया साल मनाते हैं। बौद्ध और जैन मतावलम्बी क्रमशः बुद्ध पूर्णिमा और भगवान महावीर की मोक्ष तिथि को मनाते हैं। विडम्बना यह है कि आज तक अवैज्ञानिक, अप्राकृतिक अंग्रेजी नववर्ष का कोई औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सका है परंतु हम भेड़चाल का शिकार होकर ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की धुन पर नाचने लगे हैं।
आज जब ठिठुरन, जकड़न, धुंध, अंधेरा, आलस्य अपने चरम पर है तो क्यों न हम भी इस कर्मकांड को पूरा करने की रस्म अदायगी करते हुए वर्ष 2025 का समीक्षा करें। यह वर्ष चुनौतियों पर विजय का रहा। एक ओर अमेरिकी टैरिफ दबाव तो दूसरी ओर आतंकवाद का दंश झेलते हुए हमने दोनों का धैर्य और साहस से सामना करते हुए विश्व को अचंभित किया। इस वर्ष भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, खेल और राष्ट्रीय विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की गईं।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 200 से अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं, जिसमें पहला ऑन-ऑर्बिट डॉकिंग प्रयोग (SPADEX) और आदित्य-L1 मिशन से डेटा जारी करना शामिल है। शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले भारतीय बने।
भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना। हमारा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) $4 ट्रिलियन तक पहुंचा। हमारी डिजिटल भुगतान प्रणाली UPI के बढ़ते कदम यूएई, नेपाल, भूटान, सिंगापुर, मॉरीशस, फ्रांस और श्रीलंका तक पहुंचे। अर्थव्यवस्था के उठान का परिणाम है कि इस वर्ष आयकर छूट सीमा आशा से बढ़कर 12 लाख की गई।
आतंकवाद का जवाब देते हुए हमारी सेना ने कुछ मिनटों में पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। पाक की गुहार पर भारत ने युद्ध विराम स्वीकार किया तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से लेने को आतुर हुए लेकिन भारत में दृढ़ता से अमेरिकी हस्तक्षेप को दृढ़ता से अस्वीकार किया। भारत में अनेक अति आधुनिक हथियारों का न केवल सफल परीक्षण किया अपितु उत्पादन को भी तेजी से आगे बढ़ाया है। आज विश्व में भारतीय मिसाइलों तथा अन्य हथियारों की मांग बढ़ी है। संक्षेप में कहे तो विश्व मंच पर भारत का महत्व बढ़ा है इसीलिए विश्व शांति के प्रयासों में भारत की भूमिका बढ़ी है।
36 से घटकर अब 3 जिलों तक सीमित हो चुका नक्सलवाद अंतिम सांस से गिन रहा है तो दशकों अशांत रहा कश्मीर अपेक्षाकृत शांति से लोकतंत्र की राह पर बढ़ रहा है। पूरे देश में आधुनिकतम सड़कों, रेल मार्गों और हवाई अड्डों का विस्तार पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है लेकिन विपक्ष किसी उपलब्धि को मानने को तैयार नहीं । आशा है कालचक्र के नए पड़ाव अर्थात वर्ष 2026 में किसान, श्रमिक की खुशहाली और छात्रों के प्रतिभा विस्तार से पूरा भारत गौरवांवित अनुभव करेगा । देश के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, यातायात, संचार, आवास की विश्व स्तरीय सुविधाएं प्राप्त होगी।
इतिहास के पन्नों में सिमट रहे वर्ष 2025 में विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी शताब्दी पूर्ण की। वर्ष के अंतिम चरण में जब भाजपा के नए अध्यक्ष के लिए अनेक नामों की अटकलें लगाई जा रही थी अचानक लो प्रोफाइल युवा श्री नीतिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व मिला तो सौ वर्ष से अधिक की हो चुकी कांग्रेस का नेतृत्व लगातार असफल हो रहे राहुल से अघोषित रूप से प्रियंका की ओर खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है। पक्ष-विपक्ष के अनावश्यक टकराव के कारण संसद का बहुमूल्य समय नष्ट हुआ। आशा है वर्ष 2026 भारतीय लोकतंत्र को और परिपक्वता प्रदान करते हुए संसद को पुनः संवाद के मंच के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए आम सहमति का मार्ग प्रशस्त करेगा। इसी से शांत, सुरक्षित, संवेदनशील और प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ते भारत का देश की कोटि-कोटि जनता का स्वप्न साकार होगा। इस नए वर्ष में भारत की ज्ञान परंपरा की वैश्विक स्वीकार्यता तभी बढ़ सकती है जब हम विदेशी भाषा की गुलामी छोड़ प्रशासन से न्याय व्यवस्था तक, लोक व्यवहार से शिक्षा तक हर क्षेत्र में भारतीय भाषाओं का अधिकाधिक उपयोग हो।
डा. विनोद बब्बर