
—विनय कुमार विनायक
हिन्दू होना,बहुत कुछ होना है
हिन्दू होने में अपार संभावना है,
कभी ईसाई/कभी मुसलमान होने का
हिन्दू होकर हीं फाड़े जा सकते हैं
तुलसीकृत राम चरित मानस के पन्ने
‘सुपच किरात कोल कलवारा
वर्णाधम तेली कुंभकारा’ पढ़कर!
व्यास स्मृति को सुनकर
‘वर्धकी नापित गोप आशाप:
कुंभकारक: वणिक किरात
कायस्थ मालाकार कुटुम्बिन:
एते चान्ये च बहव शूद्रा
भिन्न: स्वकर्मभि:—
एते अंत्यजा समाख्याता ये
चान्ये ते गवाशना:
एषां सम्भाषणात्स्नानं
दर्शनादर्क वीक्षणम। (10,11,12)
पूजे जा सकते हैं
रावण-कंश-दु:शासन-महिषासुर
जलाए जा सकते हैं
राम-कृष्ण-गौतम-गांधी के पुतले
गाई जा सकती है
गजनी,गोरी, खिलजी,
तैमूर-बाबर-औरंगजेब-
अंग्रेज की विरुदावली!
हिन्दू होकर हीं दी जा सकती है
अपने धर्म को चुनौती
कि मैं जन्म से हिन्दू हूं
किन्तु मरूंगा नहीं हिन्दू रहकर!
हिन्दू होकर हीं हो सकते हैं
कट्टर सेकुलर,हिन्दू हित विरोधी,
अतिप्रगतिशील,घोर पलायनवादी!
लगा सकते ईश्वर पर प्रश्न चिह्न
मांग सकते हैं पिता से हिसाब-किताब
बना सकते मां को उपेक्षित/
बहन को अधिकारविहिन
कर सकते हैं हत्या कन्या भ्रूण की!
हिन्दू होकर हीं बन सकता है
कोई स्वायंभुव मसीहा,
देवदूत,खुदा, भगवान भी!