विविधा

संस्कृतियों को बचाने के लिए संयुक्त परिवार जरूरी

आदर्श तिवारी-

panchayatमहान समाजशास्त्री लूसी मेयर ने परिवार को परिभाषित करते हुए बताया कि परिवार गृहस्थ्य समूह है. जिसमें माता –पिता और संतान साथ –साथ रहते है. इसके मूल रूप में दम्पति और उसकी संतान रहती है. मगर ये विडंबना ही है कि, आज के इस परिवेश में दम्पति तो साथ रह रहें, लेकिन इस भागते समय और अपनी व्यस्तताओं में हम अपने माता –पिता को पीछे छोड़ रहे हैं. आज के इस आधुनिकीकरण के युग में अपने इतने स्वार्थी हो चलें है कि केवल हमें अपने बच्चे और पत्नीं को ही अपने परिवार के रूप में देखते है, अब परिवार अधिनायकवादी आदर्शों से प्रजातांत्रिक आदर्शों की ओर बढ़ रहे हैं, अब पिता परिवार में निरंकुश शासक के रूप में नहीं रहा है. परिवार से सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णय केवल पिता के द्वारा नहींं लिए जातें. अब ऐसे निर्णयों में पत्नी और बच्चों को तवज्जों दी जा रही, ज्यादा नहींं अगर हम अपने आप को बीस साल पीछे ले जाएँ हो हालत बहुत अच्छे थे. तब संयुक्त परिवार का चलन था. साथ –साथ रहना, खाना –पीना पसंद करते थें, परिवार के मुखिया द्वारा लिया गया निर्णय सर्वमान्य होता था, संयुक्त परिवार के अनेकानेक लाभ थे. मसलन हमें हम अपनी संस्कार, रीति –रिवाज़, प्रथाओं, रूढ़ियों एवं संस्कृति का अच्छा ज्ञान परिवार के बुजूर्गों द्वारा प्राप्त हो जाता था. जिससे हमारी बौद्धिकता, समाजिकता को बढ़ावा मिलता था, जो हम पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते चले आए हैं, मगर अब इसकी जगह एकल परिवार में हम रहना पसंद करते हैं. जिससे हमारा सबसे अधिक नुक़सान हमारी आने वाली पीढ़ियों को है. न तो अपनी भारतीय संस्कृति के परिचित हो पाएंगी और न ही समाज में हो रहें भारतीय संस्कारों को जान पाएंगे. इन सभी के बीच एक सुखद बात सामने निकल कर आयीं है. वो है परिवार महिलाओं की बढ़ती भागीदारी अब परिवार में स्त्री को भारस्वरूप नहींं समझा जाता. वर्तमान में परिवार की संपत्ति में स्त्रियों के संपत्तिक अधिकार बढ़ें हैं. अब इन्हें नौकरी या व्यापार करने की स्वतंत्रता है, इससे स्त्रियों के आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ी है. अब वें परिवार पर भार या पुरुषों की कृपा पर आश्रित नहीं है. इससे परिवार में स्त्रियों का महत्व भी बढ़ा है. जिसके साथ स्त्रियों का दायित्व और भी बढ़ गया है. गौरतलब है कि एक स्त्री को बेटी, बहन, पत्नी तथा माँ इन सभी दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है और इन सभी रूपों में हम इनसे ज्यादा ही अपेक्षा करतें है ये इस अपेक्षाओं पर खरा भी उतरती है. बहरहाल आज परिवार दिवस के मौके पर हमें एक ऐसे परिवार में रहने का संकल्प करना चाहिए. जिसमे माँ का दुलार हो, पिता का प्यार हो बच्चों तथा पत्नी का साथ हो. कभी -कभी नौकरी आदि के दौरान हमें कुछ दिक्कतें आ जाती हैं पर हम उन सभी का सामना करने लिए अनुभव की आवश्यकता चाहिए जो हमें पिता से मिल सकता है. हमें अपनी संस्कृतियों से दूर नहींं वरन और पास आना चाहिए, जुड़े रहना चाहियें. जिससे हम तथा हमारी आने वाली वाली पीढीयों के उपर पश्चिमी सभ्यता का असर न पड़े. संयुक्त परिवार हमें अपने संस्कृतियों तथा भारतीय सभ्यताओं से परिचय करती है एवं मिलजुल कर रहना सिखाती है.