कविता

देवों से वंदन पाना ………….

देवों से वंदन पाना ………….

अब होते अत्याचारों पर

मिलकर ये हुँकार भरो

कहाँ छिपे हो घर मैं बेठे

निकलो और संहार करो

आतंकी अफजल , कसाब को

और नहीं जीने दो अब

घुस जाओ जेलों मैं मित्रो

आओ मिलकर वार करो

कोन है हिटलर ? कोन है हुस्नी ?

किसका नाम है गद्दाफी ?

दुष्टों को बस मोत सुना दो

देना नहीं कोई माफ़ी ….

कि जो कोई साथ दे उनका ,

बजाय हुक्म माली सा ,

सजाय मोत दो उनको

रूप हो , रोद्र काली सा .

जेलों मैं बिरयानी खाते

धंधे अड्डे वहीँ जमाते

सरकारी मेहमान वन जाते

वीच चोराहे मारो लाकर

उनका पर्दाफाश करो

जो इनको देते सुख सारे

( संसद पर हुए हमले मैं

शहीद हुए पुलिस विभाग के

वीरों से माफ़ी के साथ )

करते जेवों के न्यारे -वारे

उन वर्दी धारी गुंडों का

अब न कोई खोफ करो

चमड़ी खींच नमक भर दो अब

मारो और हलाल करो -२

वो जो इनकी फांसी पर

राजनीति करने वाले

सफेदपोश दिखते ऊपर से

अन्दर जिनके मन काले

ऐसे नेताओं का अब

जनता से वनवास करो

मुंह काला कर दो उनका अब

पूरा सत्यानाश करो …२

उनने जाने कितने राही

चलती राहों पर मारे

उनके जुल्मो और सितम

जग जाहिर कर दो अब सारे

अब भी रहे मोन साथी तो

कुछ भी न कर पाओगे

वेवस आहों और दर्दों के

अपराधी कहलाओगे

आहों से लपटें निकल रहीं

दीन दुखी जन सांसों से

भस्म-भूत होगा अब सब कुछ

आर्तनाद की आहों से

महाकाल की आहट को

अब अपना संबल जानो

कृष्ण सारथी बन जायेंगे

अर्जुन बन अब तुम ठानो

प्रलय मचा दो इन दुष्टों पर

इनको माफ़ नहीं करना

उनकी सोचो जिन बहिनों का

अब सिंदूर नहीं भरना

पूछो उस माँ से जिसने

रण मैं इकलोता खोया है

अश्क आँख से सूख गए

उसने ऐसा क्या बोया है….?

बिटिया को लगता है अब भी

उसके पापा आयेंगे

प्यार करेंगे गोदी लेकर

लोरी नई सुनायेंगे

उस बिटिया को पता नहीं है

अब पापा न आयेंगे

उसके लोरी के सपने

अब झूठे पड़ जायेंगे

ऐसे गद्दारों की रक्षा

जेलों मैं क्यों होती है ?

और कुटिल सरकार निकम्मी

उनके चरणों को धोती है

मंदिर मस्जिद से उठने दो

हक़ की अब आवाजों को

पहिचानो गुरुद्वारा गिरिजा

से उठते अब साजों को

ऋषि दधीचि से बज्री वन तुम

ऐसा रण संहार करो

ख़ाक मिटा दो हत्यारों की

मिलकर आज प्रहार करो

ऐसा कर के पक्का मानो

स्वर्ग लोक तुम जाओगे

देव करेंगे अभिबादन

तुम महावीर कहलाओगे -२

भगत सिंह सुखदेव राजगुरु

और आजाद से वीरों को

पूजित वन्दनीय ये जंगी

क्या पूजें धनी – अमीरों को ?

लिखता नहीं गीत मैं मित्रों

गुंजा गोरी के गालों पर

न्योछावर जीवन ये सारा

मानवता के लालों पर

महा काल की आहट को

अब आया तुम सब जानो

आतंकी तहस नहस होंगे

संकल्प यही पक्का मानो

मुट्ठी बांधे आये जग मैं

खाली हाथ हमें जाना

शर्म शार न हो भारत माँ

गर्वित हो गोरव पाना

दुर्योधन की मांद से अच्छे

अभिमन्यु तुम बन जाना

बलिदानी हो जाना रण मैं

देवों से वंदन पाना …

संतों से वंदन पाना …

गुरुओं से वंदन पाना…

जन जन अभिनन्दन पाना ….

भारत माता की जय

( देश के वीरों को समर्पित कविता )