चलना जीवन सार !!

0
213


समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !
छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार !!

पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक !
जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक !!

पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव !
कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव !!

रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष !
नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष !!

दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात !
सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात !!

चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार !
चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार !!

काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार !
तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार !!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here