आज जब बादल छाए

कैसे होगा बादल कभी और नीचे

और बरस जायेगा ,

फुहारों और छोटी बड़ी बूंदों के बीच

मैं याद करूँगा तुम्हे

और तुम भी बरस जाना .

.(२)……………………………………………..

कुछ बूंदों पर लिखी थी तुम्हारी यादें

जो अब बरस रही है ,

सहेज कर रखी इन बूंदों पर से

नहीं धुली तुम्हारी स्मृतियाँ

न ही नमी भी आई उन पर ,

यादें तुम्हारी अब भी

उष्णता और उर्जा को लिये बहती है

और मैं उसमे नाव चला लेता हूँ .

(३)…………………………………………

बरसात अभी कहीं होने को है ,

हवा बता रही है .

यह भी पता चला है

कि

तुमने गूंथी हुई चोटी खोल ली है

तुम्हारी .

(४)……………………………………………

भूमि अभी कड़क है

नहीं  पड़ रहे पैरों के निशान अभी .

कि

इसलिए ही तुम अभी कहीं न जाना ,

मुझे आना है

इस बार वर्षा में तुम्हारे पीछे .

(५)………………………………………………..

नहीं होती है उतनी अप्रतिम ज्ञान कि अभिलाषा भी

कि जितनी पहली वर्षा की बूंदों की चिंता .

मेरी प्रज्ञा में

डूबते उतरती  तुम्हारी गंध

बसी ही होंगी अबके बारिश कि बूंदों में .

प्रवीण गुगनानी

1 COMMENT

  1. अति सुन्दर! …. अति सुन्दर!
    बधाई।
    विजय निकोर

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