घाटी में सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता एवं संवेदनशीलता

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-ः ललित गर्ग:-

पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती इलाके में एक बार फिर आतंकी हमला हुआ है, यह संविधान के अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किया गया पहला बड़ा आतंकवादी हमला है। यह हमला जहां आतंकियों की हताशा को दर्शा रहा, वही ऐसी संभावनाएं भी पूरजोर उजागर कर रहा है  आतंकी तत्व ऐसी और वारदात को अंजाम देने की कोशिश करेंगे। घाटी में शांति एवं विकास को बाधित करने की आतंकवादियों की कुचेष्ठाओं को निष्फल करने के लिये सुरक्षाकर्मियों को अपनी तैयारी को अधिक मजबूत, पारदर्शी एवं संवेदनशील करना होगा। विशेषतः सुरक्षाकर्मियों को मनोबल एवं आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ घाटी के लोगों के लिये संवेदनशील होना होगा ताकि घाटी में आतंक एवं अशांति फैलाने के मनसूबे सफल न हो सके। हालांकि आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो इसमें संदेह नहीं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में कमी आई है, लेकिन यह भी सच है कि ऐसे कई हमले पिछले कुछ अर्से में हुए हैं। अब कश्मीर भारत की इज्जत एवं प्रतिष्ठा का प्रश्न है, नाक है।
पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती इलाके आतंकी गढ़ बने हुए हैं, इन क्षेत्रों के घने जंगलों के कारण आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में सुविधा रहती है। यही कारण है कि इन्हीं क्षेत्रों में बार-बार आतंकवादी घटनाएं हो रही है। इसी इलाके में इस साल अप्रैल में सेना के वाहनों पर हुए ऐसे ही हमले में पांच जवान शहीद हुए थे। इसके अगले महीने मई में यहीं एक आतंक विरोधी अभियान के दौरान सेना पर हमला हुआ, जिसमें पांच जवानों की जान गई। यही नहीं, अक्टूबर महीने में फिर यहीं आतंकी हमला हुआ, जिसमें नौ जवान शहीद हुए। अब विगत गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पाक घुसपैठियों ने घुसकर भारतीय सीमाओं की रक्षा कर रहे चार सुरक्षा सैनिकों की हत्या कर डाली, जो असहनीय है। इसकी गंभीरता को देखते हुए पूछताछ के लिए उठाए गए आठ लोगों में से तीन लोगों का मृत पाया जाना अधिक गंभीर था।
बेशक 370 हटने से माहौल बदला है मगर इसका मतलब यह भी नहीं है कि नागरिकों के सन्दर्भ में सेना की किसी भी कोताही को सेना का खुद का तन्त्र और सरकार बर्दाश्त कर सकती है। हर नागरिक का न्याय पाना भी मौलिक अधिकार होता है। इसी वजह से सेना खुद तीन नागरिकों की मृत्यु के बारे में बहुत संजीदा एवं संवेदनशील नजर आई है और दुनिया को यह सन्देश देना चाहती है कि भारत की सेनाएं केवल विश्व के विभिन्न अशान्त क्षेत्रों में ही शान्ति कायम करने के लिए नहीं बुलाई जाती है बल्कि अपने देश में भी वह पूरी संवेदनशीलता एवं मानवीयता के साथ इस पर अमल करती हैं। इसीलिये सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे का सोमवार को खुद जम्मू के राजौरी और पुंछ सेक्टर पहुंचे। उनके द्वारा सुरक्षा स्थितियों का जायजा लेना और सेना के ब्रिगेडियर सहित तीन अफसरों को हटाते हुए तत्काल पूरे मामले की तत्परता से जांच शुरू करना बताता है कि सर्वोच्च सैन्य नेतृत्व की दृष्टि में घाटी की आतंकवादी घटनाएं एवं उनके खिलाफ खड़े सैन्य अधिकारियों की थोड़ी भी चूक कितनी गंभीर है। यह सर्वोच्च सैन्य नेतृत्व की संवेदनशीलता एवं इंसानियत का प्रेरक उदाहरण है। बार-बार जंग का मैदान देख चुके कश्मीर को बुलट की जगह बैलेट की ओर लाने के लिये सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता एवं संवेदनशीलता जरूरी है। भले ही आतंकी घटनाओं का रह-रह कर रंग दिखाना एक अघोषित जंग ही है, जंग कोई भी हो खतरा तो उठाना ही पड़ता है। जंग कैसी भी हो, लड़ता पूरा राष्ट्र है।
यह जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में सैन्य बलों को बेहद मुश्किल हालात में अपना काम करना होता है। और जितनी कुशलता से वे अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, जिन संकटों एवं खतरों का सामना कर रहे है, वह सराहनीय है। लेकिन पिछले सप्ताह की घटनाओं को देखें तो ऐसा लगता है कि इस बार उनसे कुछ चूक हुई है। ऐसी लापरवाही या गैर जिम्मेदाराना रवैया हमारे कश्मीर-संकल्प को धुंधलाते हैं। हमें बहुत सावधानी एवं सतर्कता से अपने लक्ष्यों को हासिल करना है, इस दृष्टि से सेनाध्यक्ष ने जो तत्परता दिखाई है, वह वक्त की नजाकत को देखते हुए जरूरी थी। उन्होंने न केवल जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए जहां सभी चुनौतियों से दृढ़ता से निपटने के उनके जज्बे की तारीफ की, वहीं यह हिदायत भी दी कि वे सैन्य कार्रवाई के दौरान सेना के आदर्श को सामने रखे।
पिछले करीब एक साल की घटनाएं बताती हैं कि इस इलाके में आतंकवादियों की सक्रियता बढ़ी है। ऐसा लगता है कि आतंकवादियों ने इस इलाके में अपनी आतंकी घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिये पूरा तंत्र विकसित कर लिया है। विशेषतः आतंकवादियों को यहां रहने वाले कुछ लोगों की प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद मिलना अधिक चिन्ता का विषय है। जबकि अनुच्छेद 370 के इतिहास का हिस्सा बन जाने के बाद से घाटी में शांति एवं अमन का, विकास एवं सौहार्द का एक नया दौर शुरू हुआ है। स्थानीय व्यापार ने तरक्की के नये शिखर प्राप्त किये हैं, पयर्टकों की बढ़ती संख्या जहां लोकल इकॉनमी को बढ़ावा दे रही है, वहीं नौजवानों को रोजगार के मौके भी मुहैया करा रही है। ऐसे में आतंकवादी तत्व बेसब्री से आतंक, अशांति, असंतोष एवं उन्माद फैलाने का मौका तलाश रहे हैं। पडोसी देश पाकिस्तान आतंकवाद को पनपाने के लिये हर तरह से सहयोग कर रहा है।
पाकिस्तान के कारण ही घाटी दोषी एवं निर्दोष लोगों के खून की हल्दीघाटी बना रहा है, उसने न केवल घाटी में बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ जहर उगलना जारी किए हुए है। हालांकि अब पूरी दुनिया के सामने यह साफ हो चुका है कि पाकिस्तान ही पूरी दुनिया में ऐसा मुल्क है जिसे दहशतगर्दों एवं आतंकवादियों की उर्वरा जमीन कहा जाता है परन्तु दुर्भाग्य से पूर्व में भारत के भीतर भी कुछ गैर सरकारी संगठन एवं घाटी की राजनैतिक शक्तियों ने कश्मीर में सेना द्वारा मानवीय अधिकारों के उल्लंघन का मसला उठाने की कोशिश करते रहे हैं जिसका जवाब भी पूर्व में ही हमारी सेना के भीतरी न्यायिक तन्त्र द्वारा बखूबी दिया जाता रहा है और किसी भी दोषी को बचाने की मेहरबानी कभी नहीं की गई है लेकिन इसके साथ यह भी हकीकत है कि कश्मीर में ही कुछ पाक समर्थक माने जाने वाली शक्तियां हमारे सैनिकों को खलनायक के तौर पर पेश करने तक से भी बाज नहीं आती रही हैं। इस चुनौतीपूर्ण दौर में सैन्य अधिकारियों को अधिक सतर्कता एवं सावधानी से आगे बढ़ना होगा एवं आतंकवाद को निस्तेज करना होगा।
कश्मीर में असली जंग अब है। घाटी के लोगांे को बन्दूक से सन्दूक तक लाना बेशक कठिन एवं पेचीदा काम है, लेकिन इस वक्त राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता संबंधी कौनसा कार्य पेचीदा और कठिन नहीं है? निश्चित ही घाटी में शांतिपूर्ण मतदान कराने तक का समय अधिक चुनौतीपूर्ण है। चीन एवं पाकिस्तान ऐसा न हो, इसके लिये सभी तरह के हथकंड़े अपनायेंगे, साजिश एवं षड़यंत्र करेंगे। वैसे भी अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हो या पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता या फिर गाजा में हमास और इस्राइल की जंग- कश्मीर की सुरक्षा स्थिति पर इन सबका प्रभाव पड़ता है। वजह यह है कि यहां से कट्टरपंथी धाराओं का प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। चूंकि भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी ढाल कश्मीर के लोग ही हैं, इसलिए लोगों का विश्वास बनाए रखते हुए ही आगे बढ़ना होगा चाहे सवाल सैन्य कार्रवाई की पारदर्शिता का हो या चुनावी प्रक्रिया की बहाली का। इसके लिये कश्मीरी लोगों का विश्वास जीतना सबसे बड़ी चुनौती है।

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