आर्थिकी

रक्षा बजट का सच – हिमांशु शेखर

raksha-budgetयूपीए सरकार की ओर से अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्रालय का काम संभाल रहे प्रणब मुखर्जी ने यह घोषणा किया कि सरकार ने इस साल के रक्षा बजट में पैंतीस फीसद की बढ़ोतरी की है। प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा कि इस साल रक्षा के मद में 1,41,703 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। जबकि पिछले साल यह रकम एक लाख छप्पन हजार करोड़ थी। दादा ने सरकार के इस फैसले को सही ठहराते हुए अपने बजटिया भाषण में कहा कि रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला देश की मौजूदा सुरक्षा हालात को देखते हुए लिया गया है। उन्होंने कहा कि देश कठिन समय से गुजर रहा है और मुंबई हमलों ने सीमा पार के आतंकवाद को पूरी तरह से नया आयाम दे दिया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह ऐलान किया कि इस साल रक्षा क्षेत्र के लिए बढ़ा हुआ योजना खर्च 86,879 करोड़ रुपए होगा। जबकि पिछले साल यह रकम 73,600 करोड़ रुपए थी।
दरअसल, रक्षा बजट के बढ़ाए जाने के असली कारणों पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। रक्षा बजट के बढ़ाए जाने को अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जोड़ कर देखने की जरूरत है। जब अमेरिका के साथ परमाणु करार को आगे बढ़ाया जा रहा था तो उस वक्त अमेरिका में हथियारों के उत्पादन से जुड़ी लाॅबी इस करार को अमली जामा पहनवाने में लगी हुई थी। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में हथियार उत्पादन का उद्योग बहुत बड़ा है। वहां का यह उद्योग इतना बड़ा हो गया है कि इसे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए नए-नए बाजार चाहिए। वहां का रक्षा उद्योग वहां के चुनावों में सियासी दलों को भी काफी मोटा चंदा देता है। पिछले साल दुनिया भर में गहराई आर्थिक मंदी से दुनिया का शायद ही कोई उद्योग बचा हो। आर्थिक मंदी की मार से वहां का यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उसका संकट और भी गहरा गया है। इसलिए इस उद्योग को नए बाजार की तलाश थी और भारत में यह संभावना उसे सबसे ज्यादा दिख रही थी। सारी दुनिया जानती है कि हथियार और पुनर्निर्माण का खेल अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार है। इसके लिए वह अमेरिका ऐसी परिस्थितियां तैयार करता है कि उसके रक्षा उद्योग के उत्पादों की खपत बढ़े।
बहरहाल, परमाणु करार की प्रक्रिया जब आगे बढ़ रही थी तो उस वक्त अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव विलियम कोहेन ने जो बयान दिया था उससे रक्षा के खेल को आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि अमेरिकी रक्षा उद्योग ने कांग्रेस के कानून निर्माताओं के भारत को परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दिलाने के लिए यानी परमाणु करार कराने के लिए लाॅबिंग की है। अब इस उद्योग को मालदार ठके चाहिए। उन्होंने जब यह बयान दिया तो उस वक्त तक रक्षा ठेका पाने के लिए लाॅकहीड मार्टिन, बोईंग, राथेयन, नार्थरोप ग्रुमन और हानीवेल जैसी पचास से ज्यादा कंपनियां रक्षा ठेका पाने के लिए भारत में अपना कार्यालय चलाने लगी थीं। अमेरिकी रक्षा उद्योग की कोशिशें रंग लाईं और करार हो गया। इसके बाद इस साल के शुरुआत में ही भारत और अमेरिका के बीच अब तक का सबसे बड़ा रक्षा समझौता हुआ।
जनवरी के पहले सप्ताह में ही भारत में अमेरिका के साथ पचासी सौ करोड़ रुपए के रक्षा समझौते पर दस्तखत किया। इसके तहत भारत आठ बोईंग पी-81 खरीद रहा है। समझौते के तहत भारत को पहला पी-81 2012 के अंत तक या फिर 2013 के शुरूआत में मिलेगा और इस आपूर्ति को 2015-16 तक पूरा कर दिया जाएगा। इस समझौते को अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार में दोनों पक्षों के बीच सहमति का ही विस्तार माना जाना चाहिए। संभव है इस साल भी अमेरिका के साथ कुछ बड़े रक्षा सौदे देखने को मिल जाएं। क्योंकि आखिरकार रक्षा बजट बढ़ाकर तो यह सरकार अमेरिका से किया गया अपना वायदा ही निभा रही है। यह बात अलग है कि यह सब सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की आड़ में हो रहा है।
रक्षा के मोर्चे पर बढे़ बजट को लेकर भी प्रणब दादा जो दावे कर रहे हैं, वे खोखले नजर आते हंै। कार्यवाहक वित्त मंत्री ने बदहाल सुरक्षा व्यवस्था को आधार बनाकर रक्षा बजट बढ़ाने का सही ठहराने की कोशिश की है। पहली बात तो यह कि अगर वे मानते हैं कि देश की सुरक्षा व्यवस्था बदहाल बनी हुई है तो इस बदहाली की जिम्मेवारी भी उनकी ही सरकार के माथे जाता है। पिछले पांच साल से देश पर राज करने के बावजूद अभी भी वे सुरक्षा व्यवस्था की बदहाली का रोना रो रहे हैं तो इसे उनके द्वारा जनता को भरमाने वाला एक शातिर चाल ही कहा जा सकता है।

हिमांशु शेखर
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