‘व्हाइट हाउस’ से ‘बेआबरू’ होकर निकले ‘ट्रम्प’

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                प्रभुनाथ शुक्ल 

अमेरिका के लोकतांत्रिक इतिहास में वॉशिंगटन स्थित कैपिटल हिल की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। दुनिया भर में सभ्य और लोकतंत्रीय व्यवस्था का दम्भ भरने वाले अमेरिका के लिए यह घटना बदनुमा दाग है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने लोकतंत्र की छबि को दागदार किया है। किसी भी देश के लिए सत्ता उतनी अहम नहीँ होती जितनी की उसकी लोक संस्थाएँ और सदन। सत्ता और जनादेश लोकतंत्र का हिस्सा हैं। दोनों कभी स्थिर नहीँ रहते हैं। यही लोकतांत्रिक मूल्य हैं। ट्रम्प व्हाइट हाउस से 20 जनवरी को एक कलंक के साथ अपनी पारी ख़त्म कर दिया। अमेरिका की सत्ता अब जो बाइडेन संभालेगें। बाइडेन व्हाइट हाउस पहुंच अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति की शपथ लेंगे। लेकिन ट्रम्प अपने साथ लोकतंत्र की हत्या करने का कलंक लेकर व्हाइट हाउस को विदा कहेँगे। वह बाइडेन शपथ ग्रहण समारोह में भी हिस्सा नहीं लेंगे। वह अपने साथ एक बुरी याद लेकर जाएगें।

ट्रम्प समर्थकों का हिंसा पर उतारू होना कहीँ से भी लोकतांत्रिक नहीँ कहाँ जा सकता था। कुछ स्थानों पर वोटिंग में गड़बड़ी हो सकती है, लेकिन जो बाइडेन का चुना जाना गलत है ऐसा भी नहीँ हो सकता। क्योंकि जिस प्रणाली से ट्रम्प निर्वाचित गए थे उसी सिस्टम का हिस्सा जो बाइडेन भी हैं। फ़िर उनका निर्वाचन गलत कैसे हो सकता है। अगर जो बाइडेन का निर्वाचन गलत था तो अमेरिकी सुप्रीमकोर्ट में ट्रम्प की चुनौती खारिज क्यों हो गई। इस तरह हम संवैधानिक संस्थाओं को सिरे नकार नहीँ सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प पर एक नहीं दो-दो बार महाभियोग की कार्रवाई चली। एक लोकतान्त्रिक देश के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है। अमेरिकी सरकार में सत्ता की कमान संभालने के दौरान हमेशा विवादों में रहे। अमेरिकी मिडिया उनकी हमेशा आलोचना की लेकिन उन्होंने किसी की परवाह कभी नहीं किया। लेकिन सत्ता की चाहत में वह किस हद तक उतर सकते हैं यह भी कैपिटल हिल्स में देखने को मिला।

दुनिया भर में जहाँ भी लोकतंत्र हैं या इस तरह की व्यवस्था है वहां कोई भी सत्ता या दल देश से बड़ा नहीँ हो सकता। राष्ट्रपति ट्रम्प पर आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उसकाने के लिए सोशलमीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया। उनके दिये बयानों की वजह से भीड़ हिंसक हुई और सीनेट में घुस आई। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए गोलियाँ चलाई, जिसकी वजह से पांच लोगों की मौत हो गई। दुनिया के सबसे प्रचीन लोकतांत्रिक देश के लिए यह सबसे बुरा अनुभव है। अमेरिका में हुई इस हिंसा का ट्रम्प की पत्नी ने भी आलोचना की है। उन्होंने अपने अंतिम सम्बोधन में इसे अलोकतांत्रिक बताया।

अमेरिकी सीनेट के अंदर घुसी भीड़ एक दिन का इतिहास नहीँ है। इसकी पटकथा तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की चुनावी हार के बाद से लिखी जा रही थी। क्योंकि चुनावी नतीजों के बाद से ट्रम्प आग उगल रहे थे। जो बाइडेन की जीत के बाद भी धांधली का आरोप लगा था। ट्रम्प समर्थक सड़कों पर उतरे थे। ट्रम्प समर्थक चाहते थे कि वह हिंसा फैला कर सीनेट की कार्रवाई में बाधा डालें जिससे जो बाइडन की जीत की घोषणा न हो पाए। भीड़ इतनी बेखौफ थी कि वह दुनिया की सबसे सुरक्षित सीनेट के अंदर दाखिल हो गई। एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने ही अपनी ही बनाई गरिमा और व्यवस्था का गला घोंट दिया। हिंसा पर उतारू समर्थक विस्फोटक भी साथ लेकर गए थे। पुलिस ने पाइप बम के साथ हथियार भी बरामद किए हैं। एक सभ्य लोकतंत्र के लिए यह शुंभ संकेत नहीँ है।

वैश्विक जमात में ट्रम्प की इस हरकत की तीखी आलोचना हो रही है। सीनेट को बंधक बनाने का भी आरोप लगा है। अमेरिकी मीडिया में इसकी तीखी आलोचना हो रही है। आखिरकार ट्रम्प जाते- जाते बहुत कुछ खो गए। हालाँकि अपने फैसलों को लेकर ट्रम्प हमेशा विवादों में रहे। मीडिया का एक वर्ग उनकी तीखी आलोचना करता रहा। कई फैसलों पर उन्हें खुद बैकफुट पर जाना पड़ा। दुनिया के कई देशों के साथ अमेरिकी हितों को लेकर उनसे टकराव रहा। हालाँकि भारत से कुछ अपवाद को छोड़ कूटनीतिक स्तर पर दोनों देशों के सम्बन्ध बेहद मजबूत हुए। वैसे दुनिया भर के देशों ने अमेरिकी इतिहास में इसे काला दिन बताया है। निश्चित रुप से अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ किया है।

अमेरिका में दो दलीय प्रणाली है डेमोक्रेट और रिपब्लिकन। भारत में तो बहुदलीय व्यवस्था है, लेकिन यहाँ कभी भी लोकतंत्र की गरिमा से खिलवाड़ नहीँ किया गया। जनमत का पूरी गरिमा के साथ सम्मान किया गया। जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यहाँ चुनावों का सदाबहार मौसम रहता है। फ़िर सत्ता को व्यवस्था से बड़ा नहीँ समझा गया जबकि भारत कि 125 करोड़ और अमेरिका की सिर्फ 23 करोड़ आबादी है। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था सत्ता देश से बड़ी नहीँ हो सकती है। ट्रम्प भारत से भी नहीँ सीख पाए।

राष्ट्रपति ट्रम्प पर आरोप है कि उनके एक वीडियो संदेश से हिंसा भड़की। जिसकी वजह से ट्विटर, फ़ेसबुक और यूट्यूब के साथ इंस्टाग्राम ने उसे हटा दिया। ट्रम्प के सोशलमीडिया खाते को बंद भी कर दिया गया। कम्पनियों ने चेतावनी भी दिया है कि दोबारा इस तरह की पोस्ट डाली गई तो हमेशा के लिए उन्हें ब्लॉक किया जा सकता है। फिलहाल काँग्रेस ने बाइडन कि जीत पर आधिकारिक मुहर लगा दिया । बाइडन ने ट्रम्प के बयानों की तीखी आलोचना भी की। इस घटना पर ट्रम्प की पार्टी में भी मतभेद है।

अमेरिका की निचली संसद ने ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग की झंडी पिछले दिनों दे दिया है। इस वोटिंग में कई सांसद ट्रम्प की पार्टी से भी हैं। इसे आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है। अब अगर इस पर बात आगे बढ़ी तो ट्रम्प और अमेरिकी इतिहास में यह घटना बेहद शर्मनाक होगी। बाइडेन के शपथ की सारी तैयारीयाँ पूरी कर ली गईं हैँ। व्हाइट हाउस ट्रम्प से जुडी सारी वस्तुएं और यादें हटा दी गईं हैँ। वहाँ बाइडेन की नेमप्लेट और तस्वीर लगा दी गईं है। पुरे परिसर की नए सिरे से सज़ावट हुई है इसके साथ रंगरोगन किया गया है। बाइडेन की पसंद के अनुसार सारी व्यवस्था और गमलों को बदल दिया गया है। बाइडेन की सुरक्षा को लेकर सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं।

व्हाइट हाउस को अभेद्य किले में तब्दील कर दिया गया है। सुरक्षा इतनी चौकस है कि वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। फिलहाल बाइडेन से अमेरिका और दुनिया को नई उम्मीदें हैं। भारत के सम्बन्ध और मजबूत होंगे। आने वाले समय में भारत और अमेरिका एक साथ मिल कर सभी वैश्विक चुनौतियों का सामाना करेंगेन। हमें हर हाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं को क्षरण से बचना होगा। क्योंकि अमेरिका की अस्थिरता भारत के लिए अच्छी नहीँ होगी। इसलिए उम्मीद है कि सब कुछ जल्द सामान्य हो जाएगा और अमेरिका फ़िर से अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करने में कामयाब होगा।

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