वृद्ध आश्रमों की कारागार में पड़े ‘उग्रसेन’ और आज के कंस

पश्चिमी संस्कृति के घातक हमला ने भारत पर परमाणु बम से भी भयंकर प्रभाव डाला है। इस हमला के चलते भारत का सांस्कृतिक गौरव हमारे सामने भंग हो रहा है । मर्यादाएं टूट रही हैं । समाज में अब से पूर्व के प्रत्येक काल की अपेक्षा कहीं अधिक बेचैनी अनुभव की जा रही है। नारी लज्जा को त्यागकर अपने आप निर्लज्ज होकर अपने सम्मान के साथ स्वयं खिलवाड़ कर रही है। प्रत्येक दिन कहीं ना कहीं से कोई ना कोई ऐसी घटना ‘सोशल मीडिया’ पर तैरती हुई मिल जाती है जिससे पता चलता है कि कहीं कोई सास अपने दामाद के साथ भाग रही है तो कहीं कोई बहू ससुर के साथ यही कृत्य कर रही है। कहीं कोई अपने बॉयफ्रेंड के साथ निर्लज्जता की सारी सीमाओं को त्याग रही है तो कहीं कोई पति की हत्या कर रही है । न्यूनाधिक यही स्थिति युवा वर्ग की भी है अर्थात लड़के भी इसी प्रकार की घटनाओं में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। इन घटनाओं को देखकर बार-बार मन में यही विचार आता है कि अंततः हमारे समाज को हो क्या गया है ? हम जा किधर रहे हैं और इसकी अंतिम परिणति क्या होगी ?
अभी ‘सोशल मीडिया’ पर ‘फादर्स डे’ की बहुत सारी पोस्ट्स देखी गई हैं , उन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे भारतवर्ष में पिताओं के लिए बहुत समर्पित युवा वर्ग निवास करता है। परंतु सच्चाई इसके विपरीत है।’मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: और आचार्य देवो भव:’ की परंपरा में विश्वास रखने वाला भारत अपनी इस आदर्श वैदिक संपदा को लगभग लुटा चुका है। हम खंडहर के बियाबान जंगल में खड़े हैं। जहां एक नया भवन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। हमारे साथ दुर्भाग्य यह है कि हमने अपने भव्य भवन को अपने आप ही भूमिसात किया है और अब उसके मलबे से एक नया भवन बनाने की तैयारी कर रहे हैं, परंतु भवन बनाने की कला भूल गए हैं। पश्चिमी संस्कृति के हमला ने आज जितना निढाल इन तीनों संस्थानों को किया है, उतना किसी अन्य को नहीं। चरित्रहीन, पथ भ्रष्ट और सभी व्यसनों से युक्त शिक्षक ‘ टीचर’ के रूप में हमारे बच्चों का निर्माण कर रहे हैं। अपवादों को यदि छोड़ दें तो इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो गुरु, शिक्षक या आचार्य की परिभाषा तक नहीं जानते। अतः जिनका स्वयं का निर्माण नहीं हुआ, उन्हें निर्माण की जिम्मेदारी दे दी गई है। कहने का अभिप्राय है कि नए भवन को बनाने का ठेका उस ठेकेदार के पास है जो स्वयं भवन बनाना नहीं जानता।
ऐसे ‘दुष्ट ठेकेदारों’ के कारण ही युवा पीढ़ी विनाश की ओर बढ़ रही है। जानबूझकर पश्चिम के हमला को हावी प्रभावी बनाया जा रहा है। जानबूझकर वे परिस्थितियां निर्मित की जा रही हैं, जिनके चलते भारतीय सनातन का अंत हो और विदेशी विचारों की कलम भारतीय मानस पर चढ़ाई जा सके।
जानबूझकर एक षड़यंत्र के अंतर्गत हमारे युवाओं को विदेशों में नौकरी का झांसा देकर भेजा जा रहा है। जहां उन्हें चरित्रहीन बनाकर वहीं का नागरिक बना दिया जाता है। बहुत कम बच्चे ऐसे हैं जो भारत में रह गए अपने माता-पिता की ओर देखते हैं। उनमें से अधिकांश भारत और भारत में रहने वाले अपने परिवार अथवा माता-पिता को भूल जाते हैं। उनकी याद में माता-पिता का जीवन कैसे गुजरता है ? – इसे केवल वृद्ध माता-पिता ही जानते हैं। परंतु यदि हमारे भीतर थोड़ी सी भी मानवीय संवेदना है तो हम उसे अनुभव अवश्य कर सकते हैं।
मीडिया में छपी एक खबर के अनुसार काशीधाम वृद्धाश्रम में रह रहे 75 वर्षीय गोपाल कृष्ण भल्ला की आंखें अब भी अपने बेटे की प्रतीक्षा में दरवाजे पर लगी रहती हैं। दस वर्ष पहले उनका इकलौता बेटा उन्हें आश्रम में छोड़कर विदेश चला गया। उस समय उन्होंने कुछ नहीं कहा था। उन्होंने सोचा बेटा सफल होगा तो अवश्य लौटेगा। परन्तु बेटा गया तो फिर कभी लौटकर नहीं आया। कुछ समय बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया। गोपाल कृष्ण भल्ला ने अपनी जिंदगी भर की कमाई बेटे की पढ़ाई और उसके पालन पोषण में खर्च कर दी। लेकिन बुढ़ापे में उन्हें उस बेटे का सहारा तक नहीं मिला।
आज ऐसे कितने ही ‘गोपाल कृष्ण भल्ला’ हैं, जिनका बुढ़ापा तड़प रहा है , तरस रहा है और भटक रहा है – अपने ही कलेजा के टुकड़ा के लिए। जिन हाथों से बुढ़ापे में ऐसे माता-पिता को पानी और दूध का गिलास मिलना चाहिए था उन्हीं हाथों से उन्हें वृद्ध आश्रम की कठोर सजा दे दी गई है।
भारत के कथित सभ्य समाज ने इन वृद्ध आश्रमों को कठोर यातना केंद्र न मान कर वृद्ध आश्रम जैसा छद्म नाम दे दिया है। वास्तव में ये कथित वृद्ध आश्रम कंस की वह कारागृह हैं जिसमें उसने अपने ही पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर डाल दिया था। उस समय एक पिता जेल में था तो उसे मुक्त करने के लिए कृष्ण जी ने परिस्थितियों की ललकार को सुना और अपने आप को क्रांति के लिए समर्पित कर दिया। परंतु आज हम क्या कर रहे हैं ? हम तो प्रतीक्षा कर रहे हैं कि फिर कोई कृष्ण आएगा और कठोर कारागृह में पड़े ‘उग्रसेनों’ को मुक्त करेगा ? हमने मान लिया है कि जब पाप सिर से गुजर जाएगा तो फिर कोई ‘कृष्ण’ आएगा और इन पापों का अंत करेगा । हम यह भूल गए कि कृष्ण जी ऐसा कभी नहीं कह गए थे कि जब पाप बढ़ेगा तो मैं स्वयं आऊंगा और पापों का नाश करूंगा ? इसके विपरीत उन्होंने कहा था कि जब पाप की गतिविधियां बढ़ती हुई दिखाई दें , जब कोई कंस पैदा हो जाए और वह अपने ही पिता को कारागार में डाल दे तो उसे अपने लिए चुनौती मानकर उसके विरुद्ध सीना तानकर खड़े हो जाना। तब तुम क्रांति का बिगुल फूंकना और ऐसी व्यवस्था करना कि प्रचलित व्यवस्था धू धू कर जल उठे।
कृष्ण जी ने कभी नहीं कहा था कि तुम जातिवाद में बंटकर देश को तोड़ने के काम आना। उन्होंने यह भी नहीं कहा था कि तुम भाषा के नाम पर लड़ना, उन्होंने यह भी नहीं कहा था कि तुम माता-पिता और आचार्य का अपमान कर उन्हें जेल में डाल देना ? इसके विपरीत उन्होंने कहा था कि जब देश में जातिवाद बढ़े, भाषावाद और क्षेत्रवाद बढ़े , माता-पिता और आचार्य का अपमान हो तो ऐसा करने वालों के विरुद्ध विद्रोह करना। क्रांति करना। क्योंकि सनातन की रक्षा करना तुम्हारा सबसे बड़ा दायित्व है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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