राजनीति

यूनेस्को ने दीपावली को विश्व धरोहर घोषित किया

-ः ललित गर्ग:-

यूनेस्को द्वारा दीपावली को अमूर्त विश्व धरोहर घोषित किया जाना भारत की सांस्कृतिक चेतना का ऐसा महत्त्वपूर्ण क्षण है, जो न केवल भारतीयों को गौरवान्वित करता है बल्कि यह सिद्ध करता है कि भारतीय सभ्यता की आत्मा आज भी मानवता का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखती है। दीपावली मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन, आत्मा, संबंध, समरसता और विश्वबंधुत्व का प्रकाशग्रंथ है। यह वह विरासत है जो हजारों वर्षों से मानव को अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान, ईष्र्या से प्रेम और भय से विश्वास की यात्रा पर ले जाती रही है।
दीपावली की महिमा को समझना अर्थात भारतीय संस्कृति की गहराई को समझना। यह संस्कृति केवल मंदिरों, शास्त्रों, उत्सवों और अनुष्ठानों में नहीं बसती, बल्कि मनुष्य की स्मृति, संवेदना, आस्था और जीवन व्यवहार में प्रवाहित होती है। इसीलिए इसे ‘अमूर्त’ कहा जाता है, क्योंकि यह मूर्त नहीं, परंतु सबसे अधिक जीवंत है। दीपावली इसी जीवंतता का सर्वोच्च उत्सव है।


जब अयोध्या की रामपैड़ी पर 26.17 लाख दीपकों ने एक साथ जगमग कर दुनिया को चमत्कृत किया, तब वह दृश्य सिर्फ दीयों का समुद्र नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक रोशनी का वैश्विक उद्घोष था, एक ऐसा उद्घोष जिसने दुनिया को यह विश्वास कराया कि भारत की परंपराएं आज भी सार्वभौमिक प्रेरणा शक्ति हैं। यूनेस्को का निर्णय इसी चमत्कार की परिणति है।
दीपावली के केंद्र में केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। यह पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि हर कठिनाई, हर पीड़ा, हर अंधकार के भीतर एक दीप जलने की संभावना छिपी होती है। हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख परंपराओं में दीपावली का अलग-अलग महत्व है, मगर संदेश एक ही है, प्रकाश का मार्ग ही मानवता का मार्ग है। यही अखंड संदेश अब विश्व स्तर पर मान्यता पा रहा है।
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरें सदैव मानव-कल्याण की प्रेरक रही हैं। कुंभ, वैदिक मंत्रोच्चार, रामलीला, योग, दुर्गा पूजा जैसी परंपराएँ पहले से विश्व धरोहर सूची में शामिल रही हैं। दीपावली के जुड़ने से यह सूची और उज्जवल हुई है। दीपावली यूनेस्को के उस उद्देश्य को पूर्ण रूप देती है जिसमें कहा गया है कि मानवता की सबसे बड़ी शक्तियाँ वे परंपराएँ हैं जो समय के साथ खो न जाएँ।
दीपावली भारतीय समाज की आर्थिक, सामाजिक और मानवीय संरचना को एक गहरा संदेश देती है। एक छोटा कुम्हार, जो अपने हाथों से दीए बनाता है, उसी दीये की रोशनी से करोड़ों घर रोशन होते हैं। एक छोटे व्यापारी की दुकान भी दीपावली पर उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी एक बड़ी कंपनी की। यह त्योहार बताता है कि समाज प्रकाश तभी बनता है जब हर व्यक्ति के जीवन में रोशनी पहुंचे। इसीलिए यह उत्सव भारतीय सामुदायिक चेतना का उत्सव है, समता और समान अवसरों का उत्सव है।
दुनिया आज विभाजन, युद्ध, तनाव, भौतिक लालच और मानसिक अंधकार से जूझ रही है। ऐसे समय में दीपावली का संदेश पहले से अधिक प्रासंगिक है कि एक दीप की लौ किसी भी गहन अंधकार को चुनौती दे सकती है। भारत ने सदियों से दुनिया को यही बताया है कि नैतिक साहस, सद्भाव, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा ही सभ्यताओं को टिकाऊ बनाती है। दीपावली इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रतीक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आधुनिक सोच और सांस्कृतिक कूटनीति ने भारत की इन अवधारणाओं को दुनिया के सामने नई ऊर्जा के साथ स्थापित किया है। योग की वैश्विक मान्यता हो, आयुर्वेद का उभार हो, रामायण सम्मेलन हों या भारतीय त्योहारों का अंतरराष्ट्रीयकरण, यह सब भारत की सॉफ्ट पावर की विजय है। दीपावली को यूनेस्को सूची में शामिल किया जाना इसी सॉफ्ट पावर की अगली खूबसूरत सीढ़ी है।
मोदी का “वसुधैव कुटुंबकम” का मंत्र अब भारत की विदेश नीति ही नहीं, बल्कि विश्व-दृष्टि बन चुका है। इसी भावना ने जी20 से लेकर वैश्विक मंचों पर भारत की पहचान को मजबूत किया है। दीपावली का वैश्विक सम्मान इसी मंत्र का विस्तार है, क्योंकि यह त्योहार हर मानव को यह याद दिलाता है कि दुनिया एक है, पीड़ा साझा है, और आनंद भी साझा होना चाहिए।
दीपावली केवल आध्यात्मिक पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मनोविज्ञान भी है। यह मन को खाली नहीं करती, उसे भरती है, उसे बुझाती नहीं, उसे जगाती है। दीपावली मन की धूल झाड़ने, जीवन के प्रति नई आशा जगाने और अपने भीतर छिपे प्रकाश को पहचानने का अवसर है। यही कारण है कि इसे विश्व धरोहर घोषित करना पूरी मानवता के आध्यात्मिक भविष्य को मान्यता देना है।
वैश्वीकरण के प्रभाव ने दुनिया को तकनीकी रूप से भले ही जोड़ा हो, पर मानसिक रूप से विभाजन बढ़ा दिया है। ऐसे में भारत की सांस्कृतिक विविधता, विशेषकर दीपावली जैसी परंपराएँ, सभ्यताओं के बीच एक दार्शनिक पुल का काम करती हैं। ये त्योहार दुनिया को यह बताते हैं कि जीवन केवल उपभोग नहीं, संवेदना है, केवल प्रगति नहीं, समरसता है, केवल विकास नहीं, मूल्य भी हैं।
यूनेस्को की घोषणा के बाद अब दुनिया दीपावली को केवल भारतीय या धार्मिक त्योहार के रूप में नहीं देखेगी, बल्कि इसे वैश्विक नैतिक चेतना के रूप में स्वीकार करेगी। यह उस विरासत का सम्मान है जो अतीत से चली आ रही है पर भविष्य को दिशा देती है। यह भारत की उस आध्यात्मिक शक्ति का प्रमाण है जिसे दुनिया युगों से सम्मान देती आई है।
अब यह भी हमारा दायित्व है कि दीपावली की इस उज्ज्वल विरासत को हम और अधिक संवारे, संजोएं और इसे केवल उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन के रूप में अपनाएं। जब हम अपने भीतर एक दीप जलाते हैं, तो उसके प्रकाश में पूरी दुनिया का मार्गदर्शन संभव होता है, यही भारतीय संस्कृति की शक्ति है, यही दीपावली की महिमा है।
निस्संदेह, दीपावली का वैश्विक होना भारत की सांस्कृतिक आत्मा की विजय है। यह वह क्षण है जो बताता है कि भारत केवल एक भू-राजनीतिक शक्ति नहीं, बल्कि मानवता का आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी है। आने वाले समय में यह प्रकाश दुनिया के हर कोने तक पहुंचे, यही दीपावली का संदेश और भारत की सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।
दीपों का यह उत्सव अब केवल भारत का नहीं रहाकृअब यह मानवता का उत्सव है, और भारत की यह रोशनी आने वाले समय में वैश्विक चेतना का नया सूरज बनकर उदित होगी।