वित्त मंत्री जेटली का बजटीय भाषण तथा प्रस्तुत बजट

प्रोफेसर महावीर सरन जैन

वित्त मंत्री जेटली के बजटीय भाषण तथा प्रस्तुत बजट ने जनता की आशाओं, उम्मीदों तथा आकांक्षाओं को निराशा में बदल दिया है। जो सरकार महँगाई छू मन्तर करने के वायदे के आधार पर सत्ता में आई, उसने सत्ता में आने के दो महीनों के अन्दर महँगाई कम करने के स्थान पर कमरतोड़ महँगाई बढ़ा दी। जेटली ने बजट में कीमती पत्थर, हीरा तथा पैक्ड फूड सस्ता कर दिया। मेरा सवाल है कि इससे देश के गरीब आदमी तथा नव मध्यम वर्ग को क्या फायदा पहुँचेगा। क्या यह देश के गरीब आदमी के साथ भद्दा मजाक नहीं है।

चुनावकेवल वायदों पर जीता गया। जीतने के बाद महँगाई कम करने के स्थान पर आशातीतमहँगाई बढ़ा दी गई। उसी प्रकार बजट केवल घोषणाओं से भरा है। सामाजिकसरोकारों की जिन योजनाओं के लिए वित्त मंत्री ने जिस राशि की घोषणा की हैउसको सुनकर लग रहा था कि यह भारत का बजट नहीं है, किसी महानगर का बजट है।कीमती पत्थर और हीरे सस्ते कर दिए, पैक्ड फूड सस्ता का दिया। बहुत अच्छाकिया वित्त मंत्री ने। अब देश का आम आदमी, जिसकोध्यान में रखकर बजट बनाने का दावा किया गया, बजट के बाद कीमती पत्थर औरहीरे तथा पैक्ड फूड खरीद सकेगा। पिछले साल चिदम्बरम के बजट के बाद जेटली नेबार बार कहा कि आयकर की छूट सीमा कम से कम 5लाख होनी चाहिए थी। अब क्याहुआ। ऊँट के मुँह में जीरा। देश पर अकाल की छाया मँडरा रही है। उससे निबटनेके लिए कोई सकारात्मक सोच नहीं है। बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई सोचनहीं है। घर चलाने वाली महिलाओं की पीड़ा को कम करने की कोई सोच नहीं है।वोट आम आदमी के नाम पर। फायदा कॉरपोरेट घरानों को। सामाजिक सराकोरों से सम्बंधित 28 योजनाओं के लिए आपने सौ सौ करोड़ की लोलीपोप घोषणाएँ कर दीं। आप भारत का बजट पेश कर रहे थे अथवा अमृतसर शहर का बजट पेश कर रहे थे।

वित्त मंत्री जेटली ने खुद स्वीकारा था कि देश में आलू और प्याज की पैदावार भरपूर हुई है और देश में इनके दाम बढ़ने का कारण जमाखोरी है। हमने लिखा था कि हम जेटली के आकलन से सहमत हैं। हमने अपने लेख में लिखा था कि आखिरकारभाजपा ने भी यह स्वीकार कर लिया कि महँगाई का बहुत बड़ा कारण जमाखोरी एवंबिचौलिए हैं। सरकार का आकलन ठीक है। हम इससे सहमत हैं। हम बहुत पहले सेकहते और लिखते आए हैं कि किसान की किसी उपज को यदि उपभोक्ता दस रुपए मेंखरीदता है तो किसान को अपनी उपज का केवल दो रुपया ही मिल पाता है। उत्पादकएवं उपभोक्ता के अलावा बाकी का मुनाफा कौन चट कर जाता है। धूमिल की कविताकी पंक्तियाँ हैं -एक आदमी रोटी बेलताहै। एक आदमी रोटी खाता है। एक तीसरा आदमी भी है। जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है।विचारणीय है कि रोटी से खेलने वाला आदमी एकनहीं, वे अनेक बिचौलिए हैंजिनके अनेक स्तर हैं और हरेक स्तर पर मुनाफावसूली करने का धंधा होता है।रिटेल व्यापार में मिलावट करने, घटिया तथा डुप्लीकेट माल देने, कम तौलनेआदि की शिकायतें भी आम हैं। हमारी अर्थ व्यवस्था में जो दुर्दशा किसान कीहै वैसी ही स्थिति अन्य कामधंधों/ पेशों के कामगारों/ कारीगरों की है।सरकार ने कागजी व्यवस्था कर दी है कि किसान मण्डी में जाकर अपनी फसल सीधेग्राहक को बेच सकते हैं। इस व्यवस्था को असली जामा पहनाने की जरूरत है।किसान को मण्डी के कमीशन एजेन्टों के चंगुल से छुड़ाने के लिए मण्डी कीवर्तमान व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। यह नियम बनाना होगा कि किसान मण्डीमें बिना कमीशन एजेन्ट को मौटी रकम दिए प्रवेश कर सके तथा हर मण्डी मेंकिसानों को अपना माल बेचने के लिए स्थान बनाना होगा। यह व्यवस्था स्थापितकरनी होगी जिससे रोटी बेलने वाले तथा रोटी खाने वाले के बीच के बिचौलिएमुनाफावसूली का काला धंधा न कर सकें। इससे भाजपा पर जो आरोप लगता रहा है किभाजपा जमाखोरों एवं बिचौलियों की पार्टी है, उस आरोप के काले दाग धुलसकेंगे।

किसान तथा गाहक के बीच के मुनाफाखोर बिचौलियों, मण्डी के दलालों तथा जमाखोरों के शोषण से निजात दिलाने के लिए बजट में कोई ´विजन’ नहीं है। वित्त मंत्री कहते हैं कि किसान मण्डी में जाकर सीधे अपना माल ग्राहक को बेच सकते हैं। मगर किसान मण्डी में जाकर, एजेन्ट एवं दलालों को भेंट चढ़ाए बिना, अपना माल सीधे ग्राहक को बेच सकें – इसके लिए बजट में कोई दिशा अथवा प्रयास अथवा संकेत नहीं है। वित्त मंत्री जी, आप यह व्यवस्था कर दीजिए। महँगाई अपने आप कम हो जाएगी। मगर इसके लिए ´दृढ़ इच्छा शक्ति’ चाहिए। इसके लिए आम आदमी के सराकोरों को पूरा करने का जज्बा होना चाहिए।

दैनिक उपभोग की वस्तुओं की वस्तुओं की महँगाई को रोकने के लिए बजट में कोई ´विजन’ नहीं है। यह बजट देश के आम आदमी, घर चलाने वाली महिलाओं, बेरोजगारों तथा युवाओं की जन आकाक्षाओं को चूर चूर करने वाला है।

सत्ता प्राप्त करने के पहले भाजपा के नेता बार बार चिल्लाते थे कि गरीब किसानों को ब्याज मुक्त ऋण मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस बजट में वह व्यवस्था नदारद है। यह बजट गरीब किसानों की आशाओं पर कुठाराघात है।

मोदी सरकार को मन मोहन सरकार का आभारी होना चाहिए कि मन मोहन सिंह की सरकार से मोदी की सरकार को विरासत में 698 लाख टन का खाद्यान्न भंडार मिला है। आप इसका बीस प्रतिशत भाग भी बाजार में उतार दीजिए। जमाखोरों की हालत पतली हो जाएगी। मगर इसके लिए भी ´दृढ़ इच्छा शक्ति’ चाहिए। जमाखोरों की नाराजगी को झेलने के लिए कलेजा चाहिए।

मन मोहन सिंह की सरकार और मोदी की सरकार के बजट में एक अन्तर जरूर है। मन मोहन सिंह की सरकार जो योजनाएँ कांग्रेसी नेताओं के नाम पर चला रही थी अब मोदी की सरकार उन्हीं योजनाओं को श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर चलाएगी। गाँवों को शहर से जोड़ने वाली ´प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना’ के अन्तर्गत चिदम्बरम ने जितनी धनराशि का प्रावधान किया था उसमें आपने जबर्दस्त कटौती अवश्य कर दी। यह दर्शाता है कि भारत के गाँवों और किसानों तथा मजदूरों के हितों के प्रति आप कितने गम्भीर हैं।

देश के आम बजट में महिलाओं की सुरक्षा के लिए 100 करोड़ का प्रावधान करते समय देश के वित्त मंत्री को शर्म नहीं आई। आप योजना का नाम गिनाने के लिए वित्तीय बजट पेश कर रहे थे। देश की महिलाओं की सुरक्षा की योजना के कार्यान्वयन और निष्पादन के लिए मोदी की सरकार कितनी संजीदा है- यह 100 करोड़ के झुनझुना से स्पष्ट है।

बजट में काले धन की उगाही के लिए किसी कार्यक्रम अथवा प्रयास अथवा योजना के लिए कोई दिशा संकेत नहीं है। आम चुनावों के दौरान अपने को भारत का ‘चाणक्य´ मानने वाले तथा अपने को बाबा कहने वाले सज्जन ने बार बार उद्घोष किया कि विदेशों में इतना कालाधन जमा है कि अगर मोदी जी की सरकार आ गई तो देश की तकदीर बदल जाएगी, बीस वर्षों तक किसी को आयकर देना नहीं पड़ेगा, हर जिले के हर गाँव में सरकारी अस्पताल खुल जाएँगे, कारखाने खुल जाएँगे, बेरोजगारी दूर हो जाएगी तथा देश की आर्थिक हालत में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सोनिया गाँधी के इशारों पर चलने वाली सरकार के पास उन तमाम लोगों की सूची है जिनका काला धन विदेशों के बैंकों में जमा है। उस सूची कोसोनिया की सरकार जगजाहिर नहीं कर रही क्योंकि उस सूची में जिनके नाम हैं उनको यह सरकार बचाना चाहती है। आदि आदि।

अब तो मोदी की सरकार है। काले धन वालों की कोई सूची जग जाहिर क्यों नहीं की गई। क्या यह सरकार अपने लोगों को बचा रही है। कड़वी दवा पिलाने की जरूरत नहीं है। वर्ष 2014-2015 के अंतरिम बजट में कॉरपोरेट अर्थात् उद्योग जगत के लिए पाँच लाख करोड़ से अधिक राशि का प्रावधान किया गया है। निश्चित राशि है – 5.73 लाख करोड़। देश का वित्तीय घाटा इस राशि से बहुत कम है। सम्भवतः 5.25 लाख करोड़। कॉरपोरेट अर्थात् उद्योग जगत के लिए अतिरिक्त कर छूट के लिए निर्धारित अंतरिम बजट में जिस राशि का प्रावधान किया गया है उसको यदि समाप्त कर दिया जाता तो न केवल सरकार का वित्तीय खाटा खत्म हो जाता अपितु उसके पास पचास हजार करोड़ की अतिरिक्त राशि बच जाएगी। कॉरपोरेट जगत को दी गई कर रियायत को समाप्त करने की स्थिति में सरकार को डीजल के दाम बढ़ाने की जरूरत नहीं होती, रसोई गैस, पैट्रोल, उर्वरक, खाद्य सामग्री पर जारी सब्सिडी को कम करने के बारे में नहीं सोचना पड़ता (जिसको जनता के भारी विरोध को देखते हुए तीन महीनों के लिए स्थगित कर दिया गया है) तथा रेल का बेताहाशा तथा पूर्ववर्ती सभी रिकोर्डों को ध्वस्त करते हिए यात्री किराया तथा माल भाड़ा बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। हम भूले नहीं हैं कि चुनाव के नतीजे आने के बाद दिल्ली की आम सभा में जाकर वर्तमान वित्त मंत्री जेटली ने रामदेव की तुलना महात्मा गाँधी तथा जय प्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों से कर डाली। इससे जनता में यह संदेश गया कि नव निर्वाचित सरकार आते ही विदेशी बैंकों में अपना काला धन जमा करने वाले तमाम लोगों की सूची जाहिर कर देगी तथा सारा धन भारत आ जाएगा। इससे देश की तकदीर बदल जाएगी, बीस वर्षों तक हमें आयकर देना नहीं पड़ेगा, हर जिले के हर गाँव में सरकारी अस्पताल खुल जाएँगे, कारखाने खुल जाएँगे, बेरोजगारी दूर हो जाएगी तथा देश की आर्थिक हालत में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। जनता को किसी कमीशन से मतलब नहीं होता। जनता को वे परिणाम चाहिएँ जिनके घटित होने का उसे बार बार आश्वासन मिल चुका था। यदि सरकार मानती है कि चुनावों में रामदेव ने जनता को भ्रमित किया था तो सरकार ने रामदेव के खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मुकदमा दायर क्यों नहीं किया। इसके विपरीत जेटली ने, जो भारत सरकार के वित्त मंत्री हैं, ने रामदेव की तुलना महात्मा गाँधी एवं जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों से करने का पाप कर्म कर डाला। सूची की बात जाने दीजिए। बजट में काले धन की उगाही के लिए संकेत भी नहीं है।

चुनावों में बार बार कहा गया कि देश हित में कठोर आर्थिक फैसलों को टालकर देश द्रोह का काम कर रही है। रेलके बढ़ाए गए किरायों में मुंबई की लोकल ट्रेनों के किरायों की बढ़ोतरी भीशामिल थी। महाराष्ट्र एवं मुम्बई के संसद सदस्यों एवं भाजपा के नेताओं नेअडिग मोदी से मुलाकात की तथा मोदी को समझाया कि इस निर्णय का महाराष्ट्रमें होने वाले विधान सभाओं के चुनावों पर विपरीत असर पड़ेगा। अपने निर्णयपर अडिग रहने वाले मोदी की सरकार ने मुंबई की लोकल ट्रेनों के बढ़े हुएकिरायों में कटौती की घोषणा कर दी। यदि मन मोहन सिंह की सरकार चुनावों कोध्यान में रखकर आर्थिक फैसलों को टाले तो वह देश की दुश्मन है और वही काममोदी की सरकार करे तो उसे किस उपाधि से नवाजा जाए।

बजट में, सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए 200 करोड़ का प्रावधान है। गुजरात के मुख्य मंत्री मोदी ने केशूभाई पटेल के वोट बैंक में सैंध लगाने के लिए सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने का संकल्प दौहाराया था। मोदी ने कहा था कि हम गुजरात में देश के लाखों किसानों के दान से प्रतिमा बनाएँगे। अब देश के बजट में 200 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस सम्बंध में, मैं यह कहना चाहता हूँ कि भारत के स्तर पर विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा सरदार पटेल की नहीं अपितु सरदार पटेल के आराध्य तथा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की बननी चाहिए।

आम आदमी को चाहिए कि वह अपना पेट भर सके। अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा सके। बीमार होने पर अपना ईलाज करा सके। बेरोजगार को नौकरी चाहिए।वित्त मंत्री जी, आप बताइए कि इनके लिए आपके बजट में क्या है। वित्त मंत्री जी से उम्मीद थी कि वह बजट में जन आकांक्षाओं का ध्यान रखेंगे। देश में बजट से नई आशा एवं नए विश्वास का भाव पैदा होगा। मगर वित्त मंत्री जी ने क्या तस्वीर पेश की। आपने कहा कि अनिश्चितता की स्थिति है, इराक का खाड़ी संकट है, कमजोर मानसून की स्थिति है। उनके बजटीय भाषण ने आशा और विश्वास पैदा करने के स्थान पर घनघोर अंधकार और निराशा का वातावरण पैदा कर दिया। गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। परिणाम सबके सामने हैं। कॉरपोरेट घरानों को तमाम तरह की सुविधाएँ देने के बावजूद बजट के बाद शुरुआती चढ़ाव के बाद शेयर मार्किट में गिरावट देखने को मिली।

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  1. राष्ट्रवादी विचार: पाठकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व अधीन पहली बार भारत में सम्पूर्ण राष्ट्रवादी केन्द्रीय शासन के स्थापित होते राष्ट्र-विरोधी शक्तियों के प्रति सतर्क रहें| हाल में हुए निर्वाचनों में बुरी तरह विफल राष्ट्र-विरोधी तत्व फिर से सत्ता में आने के क्रूर उद्देश्य से उनके कुशासन से लाभान्वित मीडिया व सफेदपोश लोगों द्वारा अप्रासंगिक अथवा राष्ट्र-विरोधी लेखों में संशयी विचारों को प्रस्तुत कर सरलमति भारतीयों को पथभ्रष्ट कर रहे हैं| यह जानते हुए कि पिछले सरसठ वर्षों में फैली गरीबी, गंदगी, और पूर्व शासन में अयोग्यता व मध्यमता के कारण समाज के सभी वर्गों में उत्पन्न सर्व-व्यापी भ्रष्टाचार व अराजकता को पलक भरते ठीक नहीं किया जा सकता, हमें विशेषकर मोदी-शासन के विरोध में लिखे निबंध और लेखों द्वारा फैलाए व्यर्थ के वाद-विवाद से बचना होगा| यदि हम व्यक्तिगत रूप में अपना कुशल योगदान दें तो अवश्य ही प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संगठित स्वाभिमानी व राष्ट्रवादी सामान्य भारतीय नागरिक भारत-पुनर्निर्माण कर पाएंगे|

    यदि आप मेरे विचार से सहमत हैं तो उपरोक्त संदेश को ऑनलाइन समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रस्तुत राष्ट्रीय शासन-विरोधी लेखों के उत्तर में संलग्न कर ओरों को भी ऐसा करने को कहें अथवा विषय पर स्वयं अपने “राष्ट्रवादी विचार:” लिखें|

    • लेख में व्यक्त विचारों के संदर्भ में प्रतिक्रया व्यक्त होनी चाहिए। जो तथ्य एवं आँकड़े प्रस्तुत किए गए हैं यदि वे गलत हैं तो उनको सप्रमाण काटिए। प्रवक्ता डॉट कॉम स्वतंत्र विचार मंथन का प्लेटफा़र्म है। यह मोदी की भक्ति के लिए जयगान करने का मंच नहीं है। जो वायदे चुनावों में किए गए, वे न तो पूरे हुए हैं और न उनको पूरा करने की दिशा में कदम उठाने की पहल हुई है। सपने दिखाना एक बात है। पूरा करना दूसरी बात। जो कहते एक बात हैं मगर आचरण उसके विपरीत करते हैं, वे पाखंडी होते हैं।

  2. मेरी मातृ-भाषा पंजाबी में एक कहावत है, “ਪਿੰਡ ਵਸਿਆ ਨਹੀਂ ਚੋਰ ਉੱਚਕੇ ਪਹਲੇ ਆ ਗਏ|” तात्पर्य, गाँव बसा नहीं चोर और उठाईगीर पहले आ पहुंचे हैं| अब तक नेतृत्वहीन भारत को अपनी अदूरदर्शी व स्वार्थपरायण आकांक्षाओं के कारण स्वयं भारतीयों ने रौंदा और खदेड़ा है| भारतीय उप महाद्वीप के अनपढ़ और पढ़े लिखे मूल निवासियों ने फिरंगी को सत्ता में बनाए रखने की भरपूर सहायता की थी| तथाकथित स्वतंत्रता के उपरान्त इन्हीं भारतवासियों में अब फिरंगी के समान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति सेवा-उन्मुख परम्परा के कारण देशवासियों में न तो राष्ट्रप्रेम अथवा राष्ट्रवाद ही जागा और न ही देश को सामान्य भाषा द्वारा एक डोर में बांधा जा सका है| और उस पर ऐसी स्थिति को बने रहने में भी इन पढ़े लिखे स्वार्थपरायण भारतीयों का सदैव सहयोग रहा है| प्रस्तुत नकारात्मक लेख प्रवक्ता.कॉम पर मोदी शासन विरोधी निबंध-श्रृंखला में एक ऐसा लेख है जो इन्हीं पन्नों में संजय द्विवेदी द्वारा लिखे लेख “कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में हैं मोदी के आलोचक!” में दिए विषय को सार्थक करता है| विशेषकर प्रस्तुत लेख में रामदेव के नाम का चार बार उल्लेख लोक सभा निर्वाचन के बहुत समय पूर्व घटना की याद दिलाता है, “कोलकाता में केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुख़र्जी ने संवाददाता सम्मेलन में बताया है कि रामदेव, अन्ना, और बीजेपी से निपटने हेतु उन पर कांग्रेस के विचारों का एक दस्तावेज तैयार किया है| उन्होंने कहा कि पार्टी जिला से लेकर प्रखंड स्तर पर वाद-विवाद, परिचर्चा, व अध्ययन गोष्ठिओं द्वारा जागरूकता अभियान चलाएगी|” ऐसा प्रतीत होता है कि लोक सभा निर्वाचन में बुरी तरह असफल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हड़बड़ी में जिस किसी से हो पाए मोदी शासन-विरोधी राजनितिक लेख लिखा “टाँग खींचो” अभियान के अंतर्गत सरलमति भारतीयों को अनंत वाद-विवाद द्वारा पथभ्रष्ट करने का उपक्रम कर रही है| इस धूर्त और क्रूर प्रयास में पूर्ण रूप से कुंडलित लेखक अपने हिंदी भाषा ज्ञान के दुरुपयोग द्वारा इस लेख को और “कट एंड पेस्ट” करते मोदी शासन-विरोधी निबंध श्रृंखला में अन्य लेखों को विभिन्न शीर्षक के अंतर्गत अन्यत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रहा है| संभवतः लेखक की ओर संकेत कर स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना और अब उनकी ओर ध्यान तक नहीं देता|” मोदी जी ने १२५ करोड़ भारतीयों को एक पग लेते आगे बढ़ने को कहा था और लेखक राह में काटें बिछाए हुए है|

    • जो सरकार महँगाई छू मन्तर करने के वायदे के आधार पर सत्ता में आई, उसने सत्ता में आने के दो महीनों के अन्दर महँगाई कम करने के स्थान पर कमरतोड़ महँगाई बढ़ा दी। क्या चुनाव अभियान में नरेन्द्र मोदी जी ने बार बार यह नहीं कहा था कि महँगाई और कांग्रेस का चोली दामन का सम्बंध है। कांग्रेस गई, महँगाई गई। जो सरकार वायदा करे और सत्ता पाने के बाद विश्वासघात करे क्या हम उसकी आपकी तरह आरती उतारें। विवेकहीन अंध समर्थन आपको मुबारक हो। आपको यह अधिकार किसने दिया कि मैं किस विषय पर लेखन कार्य करूँ और किस विषय पर न करूँ। यह लोकतंत्र है। हर नागरिक का अधिकार है कि वह किसी विषय पर अपने मत को व्यक्त कर सके। मैंने जो आँकड़े प्रस्तुत किए हैं, आपमें सामर्थ्य है तो उनको निर्मूल कीजिए। विवेकानन्द को पहले आत्मसात कीजिए। उसके बाद उनके सम्बंध में मत स्थापित कीजिए। अगर आपने विवेकानन्द जी पर कोई लेख लिखा हो तो उसका लिंक प्रस्तुत करें ताकि उसके आलोक में विचार विमर्श हो सके।

  3. Here are some article related links.

    https://www.washingtonpost.com/blogs/wonkblog/wp/2013/09/23/why-are-47-million-americans-on-food-stamps-its-the-recession-mostly/

    https://en.wikipedia.org/wiki/Supplemental_Nutrition_Assistance_Program

    https://www.governing.com/gov-data/food-stamp-snap-benefits-enrollment-participation-totals-map.html

    આઓ મિલકર સંકલ્પ કરે,
    જન-જન તક ગુજનાગરી લિપિ પહુચાએંગે,
    સીખ, બોલ, લિખ કર કે,
    હિન્દી કા માન બઢાએંગે.
    ઔર ભાષા કી સરલતા દિખાયેંગે .

    બોલો હિન્દી લેકિન લિખો સર્વ શ્રેષ્ટ નુક્તા/શિરોરેખા મુક્ત ગુજનાગરી લિપિ મેં !

  4. यह आलेख और एक मात्र टिप्पणी आम आदमी का दर्द बयान करता है.मैं नमो भक्तों को आवाहन करता हूँ कि इस आलेख और श्री मित्तल के टिप्पणी के विरुद्ध अपने विचार प्रकट करें या मैं यह मान लूँ कि यह बजट सचमुच यू.पी.ए थ्री का बजट है और इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे आम आदमी का हौसला बढे.

    • स्वामी विवेकानन्द का वक्तव्य, “हर कार्य को इन चरणों से गुजरना होता है, उपहास, विरोध, ओर फिर स्वीकृति| जो समय से आगे की सोचते हैं उन्हें गलत समझा जाना निश्चित है|” भारतवासियों को संबोधित करता है| परन्तु, प्रभु, आप तो ऊपर अन्तरिक्ष से झांकते भारतवासियों का निरीक्षण करते प्रतीत होते हैं!

  5. आम आदमी को चाहिए कि वह अपना पेट भर सके। अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा सके। बीमार होने पर अपना ईलाज करा सके। बेरोजगार को नौकरी चाहिए।वित्त मंत्री जी, आप बताइए कि इनके लिए आपके बजट में क्या है।चुनावों में बार बार कहा गया कि देश हित में कठोर आर्थिक फैसलों को टालकर देश द्रोह का काम कर रही है। कॉरपोरेट जगत को दी गई कर रियायत को समाप्त करने की स्थिति में सरकार को डीजल के दाम बढ़ाने की जरूरत नहीं होती, रसोई गैस, पैट्रोल, उर्वरक, खाद्य सामग्री पर जारी सब्सिडी को कम करने के बारे में नहीं सोचना पड़ता
    बजट में, सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए 200 करोड़ का प्रावधान है। गुजरात के मुख्य मंत्री मोदी ने केशूभाई पटेल के वोट बैंक में सैंध लगाने के लिए सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने का संकल्प दौहाराया था।
    बजट में काले धन की उगाही के लिए किसी कार्यक्रम अथवा प्रयास अथवा योजना के लिए कोई दिशा संकेत नहीं है।
    आम चुनावों के दौरान अपने को भारत का ‘चाणक्य´ मानने वाले तथा अपने को बाबा कहने वाले सज्जन ने बार बार उद्घोष किया कि विदेशों में इतना कालाधन जमा है कि अगर मोदी जी की सरकार आ गई तो देश की तकदीर बदल जाएगी ,
    इससे भाजपा पर जो आरोप लगता रहा है किभाजपा जमाखोरों एवं बिचौलियों की पार्टी है, उस आरोप के काले दाग धुलसकेंगे।
    WE WILL DO GOOD FEEL IN BJP GOVERNMT OF INDIA. PVT SERVANT IS DEPEND ON SALARY . MARKET PRICE IS RISE ON TOP MOMENT .SALARY CAN NOT INCRESE, EPPF AND ESI WILL MAY BE INCRESS. IN Pvt industary

    TO DAY STONE IMAGE IS NOT REQUIRE IN INDIA , BUT NEED REQUIRE – EDUCATION, SERVICE,HOUSE ,FAMILY FOOD FOR POOR SUCH PERSONS ,
    WE WOULD LIKE TO SAY TO INDIAN GOVERNMENT OF INDIA FINANCE MINISTER THINK ABOUT POOR WAGE Pvt SERVICE MAN / IN Pvt industry.
    subodh kr mittal

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