विविधा

यूनियन कार्बाइड ने खोल दी भारत सरकार की पोल

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

आज से 26 वर्ष पहले भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से हुए गैस रिसाव के कारण भोपाल में 15 हजार लोगों की मौत हो गई थी और उस गैस से जिंदा बचे लोगों को इतना नुकसान हुआ था कि अब तक भी उनकी संतानें विकलांग पैदा हो रही हैं। यह कारखाना अमेरिका का था और एंडरसन इसके चेयरमैन थे। कारखाना जिस प्रकार की विषैली गैसों का प्रयोग कर रहा था उसकी अनुमति अमेरिका में नहीं दी जाती। इस प्रकार की विषैली गैसों के कारखाने के लिए बहुत ही उम्दा प्रकार के सुरक्षा बंदोबस्त करने पडते हैं। इसी से घबराकर अमेरिका की मौत की ये कंपनियां हिन्दुस्तान की ओर रुख कर रही हैं और यहां मौत का तांडव कर रही हैं। भोपाल की ‘गैस त्रासदी’ भी इसी प्रकार की घटना थी।

जब यह घटना हुई पुलिस ने कंपनी के अमेरिकी चेयरमैन एंडरसन को भोपाल में गिरफ्तार कर लिया लेकिन कुछ घंटों के बाद ही उसे 25 हजार की जमानत पर छोड दिया गया और एंडरसन सही सलामत अमेरिका वापस चले गए। कायदे से जमानत पर छूटा आदमी देश से बाहर नहीं जा सकता। कचहरी में इस नरसंहार के खिलाफ मुकदमा चला और अदालत ने एंडरसन को भगोडा करार दे दिया। 23 वर्ष तक यह मुकदमा चलता रहा या यूं कहिए की मुकदमें का नाटक होता रहा। अब कुछ दिन पहले इस मुकदमें का फैसला आ गया है जिसमें कं पनी के भारतीय प्रतिनिधि को 2 साल की कैद हुई और लाख दो लाख रुपये जुर्माना। कुल मिलाकर 23 वर्ष के नाटक का यह हास्यास्पद अंत सामने आया। अब सजा प्राप्त व्यक्ति अगली कचहरी में अपील करेगा और जब तक अपील दर अपील नाटक का अंत नही हो जाता तब तक शायद अपराधियों की बढती उम्र के कारण शायद वैसे ही अंत हो जाए। रिकॉर्ड के लिए यह दर्ज कर देना जरूरी है कि 15 हजार इंसानों की मौत की इस घटना को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके अहमदी नाम के सज्जन ने कार दुर्घटना के समान बताया था। शायद उनका आशय यह रहा होगा कि यदि किसी कार दुर्घटना में लागों को मौत हो जाती हैतो उसके मालिक को हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, ज्यादा से ज्यादा यह लापरवाही से कार चलाने का मामला हो सकता है। शायद न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड द्वारा 15 हजार लोगों के हत्या को साधारण लापरवाही मानते हुए दो साल का कठोर दंड सुना दिया है। दंड सुनाने वाले भी अपनी पीठ थपथपा रहे होंगे कि इस कठोर दंड से विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सबक मिलेगा।

लेकिन भारत सरकार की इस करतूत से देश का सिर नीचा ही नहीं हुआ है बल्कि इससे यह भी साबित हो गया है कि अपने यहाँ की कंपनियों को हिन्दुस्तान में व्यापार करने के लिए भेजने से पहले अमेरिका इत्यादि देशों ने यहां के तंत्र पर पूरी तरह से शिकंजा कस लिया है। अब जो खबरें छन कर बाहर आ रही हैं उससे पता चलता है कि पूरी कांग्रेस सरकार कंपनी को सजा दिलवाने के बजाय एंडरसन और यूनियन कार्बाइड को बचाने में लगी हुई थी। सीबीआई के उस वक्त के जांच अधिकारी का कहना है कि सरकार ने उसे एंडरसन को बचाने के निर्देश दिए हुए थे न कि उसे अपने अपराध के लिए दंडित करने के। भोपाल के उस वक्त के उपायुक्त अब चिल्लाकर कह रहे हैं कि प्रदेश के मुख्य सचिव ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिया था कि एंडरसन को तुरंत रिहा किया जाए और सही सलामत दिल्ली तक पहुंचा दिया जाए। उपायुक्त महोदय जमानत की रस्मी कार्यवाही करने के बाद उन्हें सम्मान सहित हवाई अड्डे पर छोडने गए। यहां उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए एक विशेष विमान तैयार खडा था। शायद दिल्ली से उन्हें भारत सरकार ने ही विशेष व्यवस्था करपे अमेरिका पहुंचा दिया हो। इसके बाद उन्हें भगोडा घोषित करने की सरकारी लीला चली€। अब भारत सरकार ये सारा कांड अर्जुन सिंह के मथ्थे मढकर अपना बचाव करना चाहती है। अर्जुन सिंह की इतनी औकात कभी नहीं रही कि वे 15 हजार हत्याओं के दोषी एंडरसन को इस प्रकार भगा सकते। जाहिर है वे केंद्र सरकार के इशारों पर ही काम कर रहे होंगे।

इससे एक बात तो अत्यंत साफ होती है कि जो विदेशी कंपनियां, खासकरवे अमेरिकी कंपनियां जो भारत में धंधा करती हैं ये उनकी व्यक्तिगत हैसियत तो है ही लेकिन यदि वे अपने कुकर्मों के कारण किसी संकट में फंस जाती हैं तो अमेरिका की सरकार मजबूती से इन कंपनियों की पीठ पर खडी दिखाई देती है। यह मुकदमा दरअसल भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच चल रहा था। यह दुर्भाग्य है कि इसमें भारत सरकार हार गई है और यूनियन कार्बाइड जीत गई है, लेकिन इससे भी बडा दुर्भाग्य यह है कि भारत सरकार प्रमाणों के अभाव में नहीं हारी बल्कि उसने अमेरिका से डर कर स्वयं ही सारे साबूत नष्ट करने का काम किया है€। यदि भारत सरकार अमेरिका के भय के कारण केस हारी है तब भी यह चिंता जनक है और यदि अमेरिका ने भारत के तंत्र को पैसे के बल पर खरीद लिया है तो ये और भी चिंताजनक है। सबसे बढकर चिंता की बात यह है कि जिस एंडरसन को अदालत ने खुद ही भगोडा घोषित किया हुआ है, पूरे फैसले में उसका कहीं जिक्र तक नहीं है।

शायद अमेरिका सरकार को यूनियन कारखाना के मामले में होने वाले फैसले का पहले से ही ज्ञान था। अब अमेरिका के साथ भारत का जो परमाणु समझौता हुआ है उसे अमल करने से पहले अमेरिका चाहता है कि भारतीय सांसद परमाणु दायित्व कानून पास करें। जिसमें यह स्पष्ट उल्लेख हो कि भविष्य में किसी परमाणु घटना के हो जाने के कारण जो नुकसान हो उसके लिए अमेरिकी कंपनियों को दोषी न ठहराया जाए। सोनिया गांधी की सरकार विपक्ष के विरोध के बावजूद इस बिल को पास करवाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रही है। कुछ भीतरी जानकार तो यह भी बताते हैं कि परमाणु दायित्व बिल जिसे कांग्रेस पास करवाने के लिए जोर लगा रही है उसका मूल डनफ्ट अमेरिका ने ही तैयार किया है। यूनियन कार्बाइड के मामले में भारत सरकार की करतूतों से यह तो सिध्दा हो ही चुका है कि अमेरिका के आगे सरकार ने लगभग आत्म समर्पण कर दिया है, लेकिन इस परमाणु दायित्व बिल के पास हो जाने के बाद तो लगता है सोनिया सरकार हिन्दुस्तान में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों को इस देश के कानूनों के दायरे से बाहर ही ले जाएगी। आज ये कानून अमेरिका के लिए पास किया जा रहा है हो सकता है कल इसका सीमा विस्तार करते हुए सोनिया गांधी इसे हिन्दुस्तान में काम कर रहे पूरे यूरोप के देशों पर भी लागू कर दे। ईरान में जिस वक्त विद्रोह हुआ था। उस वक्त ईरान सरकार द्वारा ईरानियों के लिए अलग प्रकार के कानून थे और ईरान में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों के लिए बिल्कुल ही अलग प्रकार के कानून थे। उसके बाद ईरान के बादशाह का जो हश्र हुआ वह कल का इतिहास है। यूनियन कार्बाइड के मामले में और अब परमाणु दायित्व बिल के मामले में सोनिया गांधी की का्रंगेसी सरकार उसी दिशा में चल रही प्रतीत होती है। लेकिन यूनियन कार्बाइड फैसले को लेकर देश में जो बवंडर उठ रहा है वह सोनिया गांधी की इस देश को लेकर चलाई जा रही नीतियों का पर्दाफाश तो करेगा ही, साथ ही भारत में चल रहे विदेशी षड्यंत्रों को बेनकाब भी करेगा। वैसे तो यूनियन कार्बाइड के मामले में भारत सरकार की नपुंसकता को लेकर दुनिया भर के मीडिया में थू-थू हो रही है। लेकिन उसका असर भारत सरकार पर होगा…… इसकी आशा नहीं कि जानी चाहिए। यूनियन कार्बाइड को उत्तर अंतत: भारत की जनता को ही देना है और भारत की जनता इतनी सशक्त है कि इसका माकूल उत्तर देगी।