पंडित सुरेश नीरव
इंडिया को विकसित देशों की कतार में जल्दी-से जल्दी कैसे लाया जाए,इस विषय पर अभी हाल में ही एक पांच सितारा चिंतन गोष्ठी आयोजित की गई। दो-दो-तीन-तीन पीढ़ियों से देशसेवा में लगे राष्ट्र सेवा के अभ्यासी परिवारों के रोशन चिराग अपनी खानदानी परंपरा के अनुसार स्वदेश प्रेम की भावना से लैस होकर सम्मेलन के कुरुक्षेत्र में ताजा-ताजा विश्लेषणों की ध्वजा फहराते हुए,नाना प्रकार की योजनाओं की शंखध्वनियां निकालते हुए अपने-अपने कद और पद के मुताबिक आसन ग्रहण करने लगे। विभागीय अप्सराओं ने प्रशासनिक उत्सवधर्मी कर्मकांडानुसार राजनैतिक श्रेष्ठियों का व्यावसायिक अभिवादन करते हुए उन्हें पुष्पगुच्छ भेंट करते हुए,उनके सम्मुख मिनरल जल के पारदर्शी बेलनाकार पात्र रखे। जब सभी श्रेष्ठीगण अपने-अपने आसनों पर व्यवस्थित हो गए,तब एक विशिष्ट-वरिष्ठ विभागीय भाट ने उपस्थित अभिजात्यों का अंग्रेजी में लिखे मंगलाचरण का पाठ कर, अपने विभागीय एसाइनमेंट को कुशलतापूर्वक संपन्न किया। चिंतन सभा का मुख्य विषय था-सकल घरेलू उत्पाद को कैसे बढ़ाया जाए। क्योंकि प्रचंड प्रतिभा के धनी हमारे विशेषज्ञ,आंकड़ों के लैंस के जरिए,आलू को अखरोट भले ही बता दें मगर,अंगूर को कद्दू तो नहीं कह सकते। सीरियसली हमें कुछ लाभकारी संस्थानों की स्थापना के बारे में सोचना होगा। आज की चिंतन सभा का यही चिंतनीय मुद्दा है। संस्थान,सार्वजनिक उपक्रम होना चाहिए या निजी संस्थान इस पर भी विचार किया गया। सुझावों की मूसलाधार बारिश में कई संस्थान तो बेचारे अपनी स्थापना से पूर्व ही बाढ़ग्रस्त हो गए। अंत में एक प्रतिनिधि ने सकल उत्पाद के मुनाफे को मद्देनजर रखते हुए एक गैर पारंपरिक स्त्रोत की स्थापना का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात में देशभर के श्मशानों का निजीकरण कर उन्हें यदि कंपनियों के हाथों में सौंप दिया जाए तो देशभर की अर्थव्यवस्था को घाटे की घाटी में गिरने से बचाया जा सकता है। वैसे भी आदमी की मौत निजी कारणों से ही होती है,सरकारी कारणों से नहीं। इसलिए इस समस्या का इजीकरण इसके निजीकरण में ही निहित है। यूं भी अर्थव्यवस्था को घाटे में लाना,सरकार का संवेधानिक अधिकार है। जिसे वह पूरी निष्ठा से निभाती है और पिछले सत्तावन सालों से निभाती ही आ रही है। अर्थव्यवस्था को घाटे से उबारने-जैसे महत्वहीन कार्य को उसने खुली अर्थव्यवस्था के दौर में अब निजी कंपनियों के ही सुपुर्द किया हुआ है। इसलिए अखंड आस्था के साथ मैं यह प्रचंड प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा हूं कि श्मशानों का निजीकरण ही दम तोड़ती,लड़खड़ती अर्थव्यवस्था में नए प्राण फूंकने का काम करेगा। जितने इधर मुर्दे फुंकेंगे,उतने ही उधर सरकारी घाटे के पार्थिव शरीर में नए प्राण फुंकेगे। तभी एक दूसरे प्रतिनिधि ने प्रश्न की गुगली फेंकी, कि मान लिया कि श्मशानों के निजीकरण से सरकार को लाभ होगा मगर सरकार इस प्राफिट को वसूल कैसे करेगी। फिर निजी संस्थावाले आरक्षण को तो मानते ही नहीं हैं। इन सदियों से वंचित लोगों का क्या होगा। क्या यहां भी इनके आरक्षण के आंदोलन के लिए स्वर्ग से वी.पी.सिंह को बुलाना पड़ेगा। क्या इन परिस्थितियों में सरकार,इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी।और फिर इन निजी कंपनियों पर लगाम कौन-सा मंत्रालय कसेगा।
प्रस्ताव लानेवाले प्रतिनिधि ने उत्साहपूर्वक कहा, मुझे खुशी है कि सिद्धांततः आप सबको मेरा प्रस्ताव लाभकारी लगा। रही बात मुनाफा वसूल करने की, तो सरकार की इस क्षमता पर संदेह करना,सरकार का सरासर अपमान करना है। सरकार मुनाफा वसूल करने में सदैव सक्षम एवं सतर्क रहती है। फिर भी यदि सरकार चाहे तो इस संदर्भ में मुर्दा संसाधन मंत्रालय के नाम से एक नया मंत्रालय सृजित कर सकती है। और यदि चाहे तो इन कंपनियों को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन कार्य करने का प्रवधान भी किया जा सकता है। यूं भी अस्पतालों में मुर्दाघर हैं या मुर्दाघर में अस्पताल यह समझ में कहां आता है। हमारे श्मशानों में थोक का जितना कच्चा माल इन अस्पतालों से मिलेगा,उतना अन्य किसी स्त्रोत से नहीं। इन अस्पतालों को हम श्मशान के बुकिंग कांउटर्स भी कह सकते हैं। लोगों ने तालियां बजाकर प्रस्तावकजी के विचारों का हर्ष और उल्लास के साथ अनुमोदन किया। प्रस्तावकजी ने अपना प्रवचन जारी रखा,देखिए,इन अस्पतालरूपी बुकिंग कांउटर्स से माल जब श्मशान आएगा तो गुजर चुके आदमी को एक्सरे मशीन में से गुजारा जाएगा। क्यों,… सदन की घाटी में उपस्थित प्रतिनिधियों ने एक साथ कोरस में प्रश्न उचारा। इसलिए ताकि पता चल जाए कि कौन-सा मुर्दा अस्पताल से बिना आंख और किडनी के आया है और कौन-सा डाक्टरों के तस्करी तंत्र से बचकर संपूर्ण शरीर-संपदा के साथ। एक साधारण से प्रतिनिधि की इस असाधारण महामेधा से सभी प्रतिनिधि उतने ही प्रभावित हुए,जितने सोनियाजी से कांग्रेसी हमेशा होते आए हैं। प्रस्तावित प्रतिनिधि ने बात जारी रखी,जिस मुर्दे के अंग निकाल लिए गए होंगे,उसकी एंट्री फीस उस पर कुल आए चिकित्सकीय खर्च और बाजार में चल रही उन दिनों की किडनी कीमत को जोड़कर आनेवाली आय का मात्र 40 फीसदी कंपनी द्वारा सरकार को देय होगा। जिसमें 20 फीसदी कंपनी द्वारा सरकार को देय होगा। डाक्टर द्वारा निर्धारित टैक्स राशि न देने पर कंपनी और सरकार उस पर कानूनी कार्वाई कर, यह टैक्स वसूल कर सकेगी। साथ ही जो डाक्टर जितने ज्यादा आयटम श्मशान को सप्लाई करेगा,उसे इनकमटैक्स रिलेक्सेशन के साथ-साथ सरकार द्वारा प्रशंसा पत्र भी दिया जाए, इस पर विद्वतजनों की सम्मति वांछनीय है। सभी समाजसेवी,मानवप्रेमी प्रतिनिधियों की भावुकता,इस समय पूरे उबार पर थी,इसलिए भावना के सम्मोहन में सभी ने प्रशंसापत्र दिए जाने के प्रस्ताव की भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रस्तावकजी ने योजना का और आगे खुलासा करते हुए बताया कि जिस कंपनी को श्मशान का ठेका मिलेगा,वह कंपनी अपनी एक मार्केटिंग टीम अस्पतालों में भेजकर उन लाइलाज मरीजों को,जिनके बचने की उम्मीद समाज में ईमानदारी की तरह कम हो,डिस्काउंट रेट पर उनकी बुकिंग कर,उनका बायोडाटा कंप्यूटर में फीड करने की स्वतंत्रता होगी। महा मोक्ष मरघट कारपोरेशन की मार्केटिंग टीम नगर-बस डायवरों,ट्रक चालकों और सलमान खान टाइप नस्ल के प्रायवेट कार मालिकों को भी जिंदा मनुष्यों को श्मशान के आयटम में ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में तब्दील करने के लिए अनुप्रेरित करेगी। और वे कर्मठ स्वयंसेवक,जितनी निष्ठा से इस राष्ट्रीय दायित्व को निभाएंगे,सरकार उन्हें श्मशानश्री और मुर्दा विभूषण-जैसे अतिविशिष्ट अलंकरणों से सम्मानित भी करे तो नई पीढ़ी को इस राष्ट्रीय यज्ञ में योगदान करने की भरपूर प्रेरणा मिलेगी। दूसरी तरफ इन मरघटिया कंपनियों को सख्त निर्देश भी सरकार दे कि वे श्मशानों को इतना हाईटेक और स्मार्ट बनाएं कि जो जिंदा हैं,वो भी तत्काल मरने-मारने पर उतारू हो जाएं। मार्केटिंग के कमाल के आगे कुछ भी नामुमकिन नहीं। और यह काम निजी कंपनियां ही कर सकती हैं। इतिहास गवाह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अकेले ही जलियांवाला कांड करके,अपने पराक्रम का सबूत दे दिया था। हमें श्मशान की निर्बाध सप्लाई के लिए नेशनल और मल्टी नेशनल कंपनियों के अलावा अंटरवर्ड के सुपारीधर्मा पेशेवर और स्थानीय स्तर पर हत्याभिलाषी बांकुरों का भी पूरा सहयोग लेना होगा,जो गली-मुहल्लों में हत्याओं का कुटीर उद्योग चलाते हैं। जहां इस प्रकार की प्रतिभाएं, इस प्रस्तावित नवोदित मंत्रालय के आधार स्तंभ सिद्ध होंगी,वहीं सूखे और अकाल की मार झेलते किसान और आतंकी संगठनों की कृपा से असमय ही भूतपूर्व हो गए इंसान,सभी श्मशानी कारपोरेशन के उपभोक्ता पदार्थ होंगे। राष्ट्र के सकल उत्पाद की बढ़ोतरी के लिए इससे ज्यादा कारगर प्रस्ताव और किसी प्रतिनिधि के पास हैं क्या। प्रस्तावक महोदय ने विजयी मुद्रा में गर्दन घुमाकर चारों ओर देखा। अंततः जनहित में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। सुना है कि नामचीन कंपनियों ने ठेका हासिल करने के लिए सरकार के खास लोगों से भूमिगत संपर्क साधने भी शुरू कर दिए हैं।
“गठन मुर्दा-संसाधन मंत्रालय का..” – by – पंडित सुरेश नीरव
———- यह टिपन्नी व्यंग लेख पर serious मामला है ———-
(१) पंडित जी, आप ने इस लम्बे व्यंग लेख में केवल दो ही paragraph क्यों बनाये ?
छोटे-छोटे paragraph बनाते तो हमें ज्यादा मज़ा आता.
कृपया आप आगे से ध्यान रखिये.
पता नहीं आपकी क्या दिक्कत थी ?
(२) इस चिंतन गोष्ठी में आर्य समाज के प्रतिनिधी नहीं थे क्या ?
(३) दिल्ली यमुना किनारे का निगम बोध श्मशान घाट आर्य समाज चलाती है. यह privatization scheme के अंतर्गत है.
(४) यहाँ यमुना के किनारे शव को गंगा स्नान करवाने का सुन्दर प्रावधान है.
(५) जनहित में सर्वसम्मति से पारित यह प्रस्ताव illegal है.
Full facts नहीं रखे गए.
Public interest के भी विरुद्ध है.
बिना खर्च गंगा स्नान की सुविधा को hide किया गया.
यह प्रस्ताव वापिस लो.
(६) आर्य समाज बिना भेद भाव सनातनी रीति के अनुसार भी क्रियाकर्म करवाती है.
विचार के लिए समर्पित.
– अनिल सहगल –
श्लेशात्मक अलंकारिक शब्द चयन, सुंदर व्यंग लेखन।