यह कैसा मजाक है यार?
तुम कहते हो मुझे,
धारा के विरुद्ध
तैरने को.
वंधु,
मुझे तो लगता है,दिमाग खराब है तुम्हारा.
पर मैं तो पागल नहीं.
मैं कहता हूँ,
बहो तुम भी बहाव के के साथ,
देखो कितनी हसीन है यह जिंदगी,
कितना आनंद है इसमें?
क्या कहा?
बहना बहाव के साथ,
नहीं है यह जिंदगी.
आखिर क्या है यह तब?
ये सफल इंसान आज के,
बह रहे हैं, बहाव के साथ ही,
और उठा रहे हैं तमाम लुफ्त जिंदगी के.
बंधु,
मुझे तो लगता है,
जाना चाहिए तुम्हें किसी मनोचिकित्सक के पस.
क्या कहा?
वहाँ भी लगी है भीड उनकी,
जिनको कहता हूँ मैं सफल इंसान?
यार,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे.
हो सकता कैसे यह?
क्या कहा?
हाथ कंगन को आरसी क्या?
मैं देख लूँ खुद जाकर?
पर,
अगर ऐसा है तो आखिर क्यों?
क्या कहा?
भूल गया है इंसान परिभाषा इंसानियत की.
उतर आया है वह हैवानियत पर.
भूल गया वह,
इंसान बनने के लिए,
अमरत्व प्राप्त करने के लिए,
न्योछावर करना पडता है सर्वस्व.
तैरना पडता है, (बहना नहीं),
वह भी धारा के विरुद्ध.
तब जन्म होता है,
ईसा मसीह,गौतम बुद्ध,
गाँधी या भगत सिंह का.
साक्षी है इतिहास.
कितने लाल खो चुकी है ,
यह धरती माँ,
तब जाकर चमका है सितारा इंसानियत कI
और सुनो मेरे यार.
इंसान के चोले में छुपे हुए राक्षस,
कर रहे हैं अभिमान जिस सफलता पर,
इतरा रहे हैं जिस जिंदगी पर,
नहीं अंत है उसका मनोचिकित्सक तक.
यह तो आरंभ है उस अंत का,
जो रुकेगा कहाँ जाकर,
शक है पता है इसका,
भगवान को भी?
सावधान नीचे आग है.
आपने कहा,
सावधान नीचे आग है.
(आपको यह आज पता लगा)
आपने देखा तब,
जब वह आग उपर आ रही है.
चिनगारियाँ थी,
पर दिखी नहीं वे आज तक.
दबी हुई थी न वे.
उनके जलन को आपने महसूस नहीं किया.
मर चुकी है आपकी संवेदनशीलता जो.
लगा आपको कि वे बुझ चुकी हैं.
मैं बताऊँ?
यह भ्रम था आपका.
वे बुझी नहीं थी.केवल दब गयी थीं.
आपको सावधान होना पडा,
जब आपने धुएँ की लकीर देखी.
बोल पडे आप,
सावधान नीचे आग है.
पर नहीं चलेगा अब केवल कह देने से,
सावधान नीचे आग है.
अब वह आग उपर आ रही है.
तेजी से उपर आ रही है.
प्रयत्न तो कर रहे हैं आप.
अपना रहे हैं साम,
दाम,दंड,भेद.
पर रोक न पायेंगे आप उस आग को.
क्या आप तैयार हैं उस दिन के लिए,
जब यह आग बन कर फटेगी ज्वालामुखी?
जब जला कर खाक कर देगी वह सब,
जो भष्म हो जाने थे अब से बहुत पहले.