यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार

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पंडित सुरेश नीरव

यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार एक-दूसरे के अभिन्न पूरक त्तव हैं। जैसे हायड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से पानी बनता है वैसे ही है इनका अटूट मिलन। और जैसे पानी की रासायनिक सरंचना में से हायड्रोजन और ऑक्सीजन में से किसी एक को अलग करने पर पानी पानी नहीं रहता बल्कि पानी शर्म से पानी-पानी होकर गैस बनकर उड़ जाता है वैसे ही यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार में से आप किसी एक को अलग नहीं कर सकते। यूपीए सरकार से भ्रष्टाचार की बड़ी गहरी केमिस्ट्री सैट है। जो हमारे समाज की सोशल केमिस्ट्री को एक नया फार्मूला दे रही है। यूपीए सरकार ने भारतीय राजनीति के इतिहास में अपने अल्प सरकारी जीवन में छयत्तर हजार करोड़ का घोटाला कर के जो शानदार कीर्तिमान स्थापित किया है उसकी ऐतिहासिक कामयाबी की चमक से सरकार का चेहरा रेडियम की तरह चमक रहा है। चेहरे की चमक बार-बार कह रही है कि हमें मौका मिलेगा तो हम इससे भी बड़ा घोटाला करके अपना कीर्तिमान खुद तोड़ेंगे। खिसियानी बिल्ली खंभा नौंचे। विपक्ष का क्या है वो खुद तो कुछ कर नहीं पाता। सरकार अगर एक कदम आगे बढ़ाती है तो विपक्ष उसकी टांग खींचता है। बात-बात पर इस्तीफा मांगता है। भ्रष्टाचार कोई ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार इस्तीफा दे। लगे हैं पंद्रह महीनों से भ्रष्टाचार के एक टुच्चे से मुद्दे पर सरकार को घेरने में। मगर हमारी सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे विपक्ष की एक नहीं चली। नहीं चली सो तो नहीं चली। संसद भी नहीं चली। ऊटपटांग मांग करते हैं विपक्षी कि भ्रष्टाचार की जांच हम करेंगे। अब आप ही बताइए कोई छात्र अपने से कम इंटेलीजेंट मास्टर से क्या कभी ट्यूशन पढ़ने जाता है। वह हमेशा अपने से ज्यादा विद्वान मास्टर के पास ही जाता है। तो फिर कोई अपने इम्तिहान की कापी कैसे अपने से कम योग्य शिक्षक से जंचवा सकता है। इतनी मेहनत से घपला करें हम। हम जोकि घोटाले की यूनिवर्सिटी के ब्रिलियेंट छात्र हैं और हमारी कापी जांचे ये घसखोदे। हम इनकी मांग कैसे मान सकते हैं। कभी किया है,इन्होंने छयत्तर हजार करोड़ का घोटाला। हमें मालुम है कि ये हमारी कापी जांचने के बहाने हमारे घोटाले के सीक्रेट फंडे ले उड़ना चाहते हैं। इसलिए मिलकर जांच करने की मांग कर रहे हैं। हम सब इनकी चाल समझते हैं। हमारे घोटाले.. गणित के दुर्लभ सूत्रों की मिसाल हैं। आदर्श सोसायटी घोटाले में हमने पहले शहीदों के हक में डंडी मारी। और अपनी योग्यता को तौला। आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है। जब हमें भरोसा हो गया कि हम बड़ा खेल खेल सकते हैं तो फिर हमने,हमारी सरकार ने आईपीएल घोटाले में सिर्फ दोहजार करोड़ का दांव मार के अपने खिलंदड़ी पराक्रम का जायजा लिया। घोटाले की प्रयोगशाला में ये हमारी योग्यता का अघोषित लिटमस टैस्ट था। जिसमें जब हम खरे उतर लिए तब फिर हमने कॉमनवेल्थ गेम के खेल में आईपीएल से दोगुना और तिगुना नहीं पूरे चारगुना ज्यादा राशि यानी आठ हजार करोड़ का घोटाला करके अपनी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति का शानदार प्रदर्शन कर देश को एक बार फिर लज्जापूर्ण गौरव से महिमा मंडित करके विरोधियों के चेहरे उतार दिए। वे हाथ मल कर और मुंह मसोसकर रह गए। कृतज्ञ देशवासी अभी घोटाले के इस हाहाकारी जश्न की सरगर्मियों का जायजा ले ही रहे थे कि हमने आईपीएल घोटाले से अड़तीसगुना बड़ा घोटाला यानी छयत्तर हजार करोड़ का 2-जी स्पैक्ट्रम का जानदार घोटाला करके देश को एक शानदार तोहफा भेंट कर के गरीबी-रेखा से नीचे जिंदगी की टोकरी सिर पर लिए घूमते अस्सीकरोड़ भुखमरों को यूपीए सरकार ने छोटे से समय में कुल छयासीहजार करोड़ के विभिन्न घोटाले करके बता दिया कि आर्थिक मोर्चे पर हम कितनी मेहनत से काम कर रहे हैं और हमारी आर्थिक नीतियां कितनी सफल हैं। गरीबों को भी यह सोचकर खुश होने का मौका हमारी ही सरकार ने दिया है कि भले ही हम अपने निजी कारणों से गरीब रह गए हों मगर सरकार तो संपन्नता की एवरेस्ट पर आर्थिक विकास का झंडा गाढ़ चुकी है। हम एक जानदार-शानदार अमीर देश के अति सम्मानित गरीब नागरिक हैं। आखिर सारी योजनाएं बनतीं तो हमारे भले के लिए ही हैं न। देश अमीर होगा तो नागरिक गरीब कैसे रह जाएगा। घोटाले हमारे आर्थिक विकास के श्वेतपत्र हैं। जिनके आंकड़े सरकार नहीं खुद जनता जुटाती है। इसलिए इन आंकड़ों पर शक भी नहीं किया जा सकता। सब कुछ पारदर्शी ढंग से होता है,यूपीए सरकार में। जिस पर घोटाले का आरोप लगता है और जो एजेंसी जांच करती है घोटाले की, घोटाले का आरोपी मंत्री, निष्पत्र जांच की खातिर खुद उस जांच एजेंसी के पास जाकर सहयोग देने की फरियाद करता है। सांच को आंच कहां। वह कहता है मैं हर तरह की जांच में सहयोग देने को तैयार हूं। हम आपसी सहयोग के महत्व को खूब समझते हैं। बिना आपसी सहयोग के तो कोई आज किसी की चवन्नी भी नहीं मार सकता है। घोर कलयुग आ गया है। और फिर हमारे सिर पर तो विपक्ष ने छयत्तरहजार करोड़ के घोटाले का ताज रख दिया है। हम राजा लोग हैं। खानदानी लोग हैं। हमसे जितनी चाहें,जहां चाहें,जैसी चाहें और जब चाहें जांच में मदद ले सकते हैं। जरूरतमंद की मदद करना हमारा पुराना शौक रहा है। और फिर वैसे भी आप अपनी मर्जी से थोड़े ही हमारी जांच कर रहे हैं। हमें सब मालुम है। आप तो सुप्रीमकोर्ट के चक्कर में आकर हमें परेशान करने की बजाय खुद ज्यादा परेशान हो रहे हैं। हम आपकी मुश्किल समझते हैं। हम भी कानून की इज्जत करते हैं। इसलिए जांच में हर तरह की मदद करने को तैयार हैं। दूध-का-दूध और पानी-का-पानी तो हो ही जाना चाहिए। विपक्षी दलों को और कोई काम तो है नहीं सिवाय सरकार से इस्तीफा मांगने के। विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमारी यूपीए सरकार के मंत्री ने 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शिरकत कर चुकीं पिच्यासी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए हैं। और उनसे साफ-साफ पूछा है कि आप जैसे इज्तदार लोग कैसे इस घोटाले के अंटे में आ गए.। कहीं आपको प्रतिपक्षवालों ने तो नहीं बरगला दिया था। हमने यही सब जानने के लिए आपकी सेवा में ये कारण बताओ नोटिस भेजा है। जो भी अच्छा-सा कारण आपको समझ में आए बेहिचक लिख देना। कारण समझ में नहीं आए तो घबड़ाना मत। हमसे अलग से संपर्क कर लेना। हम बहुत बढ़िया कारण बता देंगे। मगर कारण जरूर बता देना। वरना लोग समझेंगे कि आप जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जब तक आरोप सिद्ध नहीं होते कानून की नजर में आप अपराधी नहीं हैं। हम तो जानते हैं कि आप खानदानी लोग हैं। और सरासर निर्दोष हैं। हिसाब में थोड़ी-बहुत ऊंच-नीच तो हर किसी से हो जाती है। इसका मतलब ये थोड़े ही है कि वो चोर है। आपके पिताजी से तो ऐसी गलती बार-बार हो जाती थी। ये सब छोटी-मोटी मानवीय चूक हैं। दुखी होकर आप घर मत बैठ जाना। कानून और भगवान पर विश्वास रखिएगा,देखना सब ठीक हो जाएगा। कारण बताओ पत्र में कुछ तो भी कारण जरूर लिख दीजिएगा। निष्पक्ष जांच का सवाल जो है।

इसबीच कुछ बुद्धिजीवी बहस करने पर आमादा हैं कि इतने सारे घोटालों के आरोपों के बाद भी क्या सरकार को सरकार में बने रहने का नैतिक अधिकार रह गया है तो मैं अपने इन बुद्धिजीवी साथियों से यह पलटकर पूछता हूं कि पहले ये बताओ कि ये सरकार नैतिकता के आधार पर बनी थी क्या। क्योंकि इस प्रश्न के जरिए आप हमारी लोकप्रिय सरकार को कहीं-न-कहीं नैतिक तो मान ही रहे हैं। तभी तो नैतिकता का सवाल उठा रहे हैं। कुछ प्रश्नाकुल पत्रकार पूछ रहे हैं कि मनमोहनसिंह को इस्तीफा देना चाहिए या नहीं। तो भैया इस प्रश्न का उत्तर मुझे तो क्या खुद मनमोहनसिंहजी को भी नहीं मालुम। जैसा सोनियजी चाहेंगी वैसा हो जाएगा। हम काहे को फालतू में मगज़ मारी करें। विपक्ष लाख बुरा चाहे क्या होता है,वही होता है जो मंजूरे मैडम होता है। जितनी चाबी भरी जनपथ ने उतना चले खिलौना..रोते-रोते कभी देखो,हंसते-हंसते कभी रोना।

3 COMMENTS

  1. @r सिंह : भ्रष्टाचार कोई विषय नहीं है, यह देश को लगी दीमक है…और याद रखिये की आप हम कही न कही इसके शिकार होते ही है तो फिर इस पर व्यंग्य करना कैसे गलत या असामयिक/ पुराना हो सकता है….
    @पंडित जी: बहुत ही बढ़िया व्यंग्य के लिए बधाई

  2. भ्रष्टाचार पर इन पन्नों में इतनी बहस हो चुकी है अब यह विषय सडने लगा है. क्यों नहं अब इससे हट कर कुछ बातें करेंकोई अन्य सामयिक विषय क्यों न चुना जाये और उसपर अपने विचार व्यक्त किया जाये.

  3. वही होता है जो मंजूरे मैडम होता है।
    जितनी चाबी भरी जनपथ ने उतना चले खिलौना..
    रोते-रोते कभी देखो,हंसते-हंसते कभी रोना।
    सारे घोटालों के आरोपों के बाद भी क्या सरकार को सरकार में बने रहने का नैतिक अधिकार रह गया है तो मैं अपने इन बुद्धिजीवी साथियों से यह पलटकर पूछता हूं कि पहले ये बताओ कि ये सरकार नैतिकता के आधार पर बनी थी क्या। क्योंकि इस प्रश्न के जरिए आप हमारी लोकप्रिय सरकार को कहीं-न-कहीं नैतिक तो मान ही रहे हैं। तभी तो नैतिकता का सवाल उठा रहे हैं। कुछ प्रश्नाकुल पत्रकार पूछ रहे हैं कि मनमोहनसिंह को इस्तीफा देना चाहिए या नहीं। तो भैया इस प्रश्न का उत्तर मुझे तो क्या खुद मनमोहनसिंहजी को भी नहीं मालुम। जैसा सोनियजी चाहेंगी वैसा हो जाएगा। हम काहे को फालतू में मगज़ मारी करें। विपक्ष लाख बुरा चाहे क्या होता है,वही होता है जो मंजूरे मैडम होता है। जितनी चाबी भरी जनपथ ने उतना चले खिलौना..रोते-रोते कभी देखो,हंसते-हंसते कभी रोना।

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