उर अश्रु लिए भस्म रमा, कौन विचरता;

शिव सरिस ललित ताण्डव कर, व्याप्ति सिहरता !
आलोक अलोकी का दिखा, जाग्रत करता;
कर चित्त-शुद्धि चक्रन वरि, वरण वो करता !
आयाम अनेकों में रमा, प्राणायाम सुर;
गुरु चक्र प्रणय लीला किए, प्रणवित करता !
यम नियम सुद्रढ़ शोध करा, स्वास्थ्य सुधाता;
अध्यात्म रस में रास करा, रन्ध्र दिखाता !
रागों में आग कभी छिड़क, रोशन करता;
‘मधु’ बना वधु प्रभु के कक्ष, प्रमुदित रहता !
गोपाल बघेल ‘मधु’