राजनीति

उत्तर प्रदेश की राजनीति

जितेन्द्र कुमार नामदेव

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लिया है। जब अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश ने प्रदेश की बागडोर सम्भाली। उनके मुख्यमंत्री पद पर बैठने से युवाओं को उनसे खासी उम्मीदें हैं। और माना भी यह जा रहा है कि इस चुनाव में पूर्ण बहुमत से सपा की जीत का कारण युवा वर्ग का अखिलेश के प्रति बढ़ता रुझान रहा है। अब तक सपा के मुखिया यह बागडोर सम्भालते आ रहे हैं, लेकिन इस बार अखिलेश को प्रदेश मुख्यमंत्री बनने से युवा वर्ग काफी उत्साहित है।

सपा की अपनी चुनावी रणनीति रही है कि वह प्रदेश की जनता को जीतने के बाद बेहतरीन तौफों की सौगात देने का वादा करते रहे हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही आलम था। अपनी चुनावी सभाओं और प्रचार के दौरान भी पार्टी के कर्ताधर्ताओं ने खूब चुनावी वादें कर जनता को लुभाया। जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई। वहीं फिर सपा के प्रदेश मुख्य सचिव अखिलेश यादव उर्फ टीपू भइया को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बैठाने के फैसले ने युवाओं के दिलों को जीत लिया। उन्होंने चुनावी दौर में बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिलाने, विधवा और वृद्धा पेंशन, शिक्षा और रोजगार जैसे वादे किए थे।

अखिलेश के मुख्यमंत्री पद सम्भालते ही सबसे पहले बेरोजगार युवा वर्ग उभरकर सामने आया। जिला स्तरीय रोजगार कार्यालयों पर बेरोजगारों युवाओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। अब अखिलेश को अपने किए हुए वादों को पूरा करना था। जिस तरह अखिलेश ने जनता से वादे किए थे उन्हें पूरा करने में प्रदेश सरकार को अनुमानत: तीस हजार करोड़ रुपए की जरूरत पड़नी थी। तब जाकर युवा बेरोजगारों को एक हजार रुपए माह वार दिया जा सकता था। घोषणाओं को पूरा करें तो उसका बजट आखिर कहां से लाते। अखिलेश यादव उर्फ टीपू भइया ने एक बेरोजगार भत्ता में कुछ फेरबदल कर डाला। उन्होंने घोषणा की कि यह भत्ता उन बेरोजगारों को दिया जाएगा जो 35 वर्ष की उम्र पर कर चुके हैं और कम से कम हाइस्कूल पास की योग्यता रखते हैं, उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। इस नई घोषणा ने उस वर्ग को नाराज कर दिया जो टीपू भइया की जीत का कारण बनी थी।

ऐसा नहीं हुआ कि शर्तें बदलने से रोजगार कार्यालयों पर भीड़ कम हुई हो। बल्कि भीड़ और बढ़ गई। अब 35 वर्ष से अधिक उम्र के वो सभी लोग बेरोजगारी भत्ता का रजिस्ट्रेशन कराने पहुंचने लगे जिन्होंने कम से कम हाइस्कूल की परीक्षा पास की थी। ऐसा नहीं कि 35 वर्ष की उम्र के यह सभी रजिस्ट्रेशन कराने वाले बेरोजगार हों। बल्कि सरकार से जो मिले उसे मुफ्त का प्रसाद समझकर सभी ने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए। अब रोजगार कार्यालयों पर ताया-ताई, चाचा-चाची, भइया-भाभी ही नहीं बल्कि दादा-दादी भी पहुंचने लगे। इसके अलावा इंजीनियर, डाक्टर, एमबीए होल्डर, एडवोकेट और न जाने कौन-कौन बेरोजगारी भत्ते की उम्मीद पर लाइनों में खड़े नजर आए। और लाइनों में क्यों न लगे आखिर टीपू भइया ने प्रदेश सरकार का खजाना इन्हीं के लिए तो खोला है।

अब सवाल उठता है कि क्या बाइक में लाइन में लग यह सभी लोग बेरोजगार हैं। क्या इन्हें बेराजगार भत्ते की जरूरत है। जो व्यक्ति अपनी कार, बाइक या स्कूटी से रोजगार कार्यालय पर रजिस्ट्रेशन कराने आया हो उससे क्या अनुमान लगाया जा सकता है कि वह बेरोजगार हैं। नहीं। बल्कि वह तो प्रदेश सरकार के खजाने को पाने के हकदार हैं। उन्होंने इसी उम्मीद पर तो टीपू भइया को प्रदेश की कमान सौंपी है। और ना जाने कितने ऐसे वादें हैं जिनसे प्रदेश की जनता उम्मीद लगाए बैठी है कि कब घोषणा हो और वो कब लाइन में लगें।