‘वचन’ और ‘संकल्प’ का नया साल

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मनोज कुमार

2018 को अलविदा कहने वाला साल भाजपा, कांग्रेस और मध्यप्रदेश के लिए यादगार साल बन गया है क्योंकि ‘कमल’ को हटाकर ‘कमल नाथ’ का सत्तासीन होना मध्यप्रदेश के भविष्य के लिए चुनौती भरा है. राज्य का खजाना खाली है. विपक्ष के तौर पर भाजपा मजबूत है. ‘वचन’ से बंधी कांग्रेस और ‘संकल्प’ लेकर मैदान में डटी भाजपा के मध्य सत्ता की दूरी सूत भर की है. एक पखवाड़े की कांग्रेस की नाथ सरकार ने ‘वचन’ पूरा करने श्रीगणेश कर दिया है. 15 साल बाद मध्यप्रदेश में बदलाव की बयार चली तो भाजपा को सत्ता से अलग होना पड़ा और कांग्रेस की वापसी हुई है. ‘वचन’ और ‘संकल्प’ का नये  साल के स्वागत के लिए मध्य प्रदेश तैयार है.   इस बार कमान कांग्रेस  के सबसे दिग्गज नेता कमल नाथ के हाथों में है. सत्ता और संगठन के मंझे हुए राजनेता कमल नाथ का गांधी परिवार से पुराना और करीबी रिश्ता रहा है. उनका जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ लेकिन राजनीति का अधिकांश स्वर्णिम समय मध्यप्रदेश के लिए रहा. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से वे अविजित सांसद के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे. एक तरह से छिंदवाड़ा और कमल नाथ एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. मध्यप्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कमल नाथ का समूचा राजनीतिक जीवन बेदाग रहा है. वे सौम्य हैं और मृदुभाषी भी. मिलनसारिता भी है और कडक़ प्रशासक भी. उनके पास अनुभवों का खजाना है तो पक्का इरादा भी. जो सोच लिया, वह करेंगे और जो कह दिया, उससे पीछे नहीं हटेंगे, उनके व्यक्तित्व की विशेषता है. मुख्यमंत्री कमल नाथ वचनबद्धता के साथ सत्ता के सिंहासन पर बैठे हैं. अब तक का अनुभव रहा है कि चुनाव से पहले किए गए वायदे और घोषणाएं आमतौर पर कागजी साबित होती रही हैं लेकिन यह पहला मौका है जब ‘वचन’ का पालन हो रहा है. किसानों की कर्जमाफी का वचन पूर्ण किया गया है तो बेटियों के ब्याह के लिए रकम में बढ़ोत्तरी कर दी गई है. घोषणाओं का पिटारा खोलने के बजाय दिए गए वचन पूरा करने में वर्तमान सरकार का यकीन दिखता है. यह शायद पहली बार मध्यप्रदेश में प्रयोग हो रहा है जब किसी नए काम का ऐलान मुख्यमंत्री या मंत्री ना करके अधिकारी करेंगे. यह प्रयोग सार्थक होगा क्योंकि घोषणा करना और उन्हें पूरा करना दोनों अधिकारियों का काम होगा. इसके पहले तक तो जनप्रतिनिधियों की घोषणओं को पूरा करने में अक्सर प्रशासनिक दिक्कतें आती थी लेकिन इस बार बदले पैटर्न में अधिकारी खुद जवाबदार होंगे. यह प्रयोग इसलिए भी सफल होगा कि अधिकारियों को इस बात की जानकारी होती है कि किस काम को, किस तरह और कितने दिनों में पूरा किया जा सकता है. अधिकारी घोषणा करेंगे, काम पूरा करेंगे और श्रेय सरकार के हिस्से में जाएगा. नए साल शुरू होने के लगभग एक पखवाड़े पहले बनी कमल नाथ सरकार के ऐसे प्रयोग आने वाले दिनों में लोगों को चौंकाते रहेंगे.  यहां स्मरणीय है कि एक नवम्बर 1956, एक नवम्बर 2000, दिसम्बर 2003 तथा 11 दिसम्बर 2018 मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में ऐसे महत्वपूर्ण साल रहे हैं जो शिलालेख बन गए हैं. एक नवम्बर 1956 में नए मध्यप्रदेश का गठन होता है तो साल 2000 में मध्यप्रदेश का विभाजन और साल 2003 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो जाती है. एक और महत्वपूर्ण तारीख 11 दिसम्बर, 2018 मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में जुड़ जाता है जब 15 वर्षों की भाजपा सरकार को बेदखल कर कांग्रेस एक बार फिर सत्तासीन होती है. ‘कमल’ से ‘कमल नाथ’ की अगुवाई में कांग्रेस का सत्ता में वापसी एक बड़ी घटना के रूप में देखा जा रहा है. बीते 15 साल भाजपा का शासनकाल एक परिघटना के तौर पर स्मरण में रहेगा. इन 15 सालों में बदलाव का जो दौर चला, वह उल्लेखनीय नहीं, अविस्मरणीय है. भौगोलिक रूप से भारत के सबसे बड़े प्रदेश के विखंडन के बाद आकार छोटा हो गया लेकिन देश के ह्दय प्रदेश एवं अपनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता के कारण लघु भारत के रूप में मध्यप्रदेश की पहचान बनी रही. तीन साल बाद एक और बड़ा मोड़ तब आता है जब पहली बार किसी विपक्षी दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत के साथ मध्यप्रदेश में सत्तासीन होती है. हालांकि इस बड़ी जीत के बाद भी भाजपा का पुराना इतिहास रहा है कि वह तीन वर्ष से अधिक का शासन नहीं चला पायी है. उम्मीद थी कि इस बार भी वैसा ही होगा और इसके आसार तब दिखने लगे थे जब इस जीत की शिल्पकार उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से हटाकर भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर की ताजपोशी की गई. उमा भारती के कार्यकाल को साल भर नहीं हुए थे और लगभग गौर का कार्यकाल भी इसी के आसपास था कि उन्हें भी हटा कर शिवराजसिंह चौहान की ताजपोशी की गई. फौरीतौर पर लगा कि ये भी आयाराम-गयाराम मुख्यमंत्री की कतार में हंै और होते ना होते पांच साला कार्यकाल पूर्ण कर मध्यप्रदेश की सत्ता से भाजपा की विदाई हो जाएगी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. शिवराजसिंह ने मध्यप्रदेश में लम्बी पारी खेली और लगातार 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड अपने नाम लिखाया. इसके पहले भी मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल दो और तीन बार का रहा है लेकिन दस वर्ष तक लगातार मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के नाम रहा तो उनसे आगे निकलकर शिवराजसिंह ने मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यह रिकार्ड अपने नाम लिख दिया. इस 15 साल के भाजपा के कार्यकाल में मध्यप्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती मिली थीं. भाजपा की 15 साल की सरकार और 13 साल के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान की लोकप्रियता अपार थी. पांव-पांव वाले भैय्या के रूप में पहचाने जाने वाले शिवराजसिंह शायद उन बिरले नेताओं में शुमार किए जाएंगे जो इतनी लम्बी अवधि के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी अलोकप्रिय नहीं हुए. मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में इस बात का उल्लेख रहेगा.मध्यप्रदेश की सूरत बदलने के लिए मुख्यमंत्री कमल नाथ का अनुभव काम आएगा. भले ही केन्द्र में भाजपा की सरकार हो लेकिन मध्यप्रदेश के हिस्से का बजट लाने में मुख्यमंत्री कमल नाथ को कोई अड़चन नहीं आएगी. मध्यप्रदेश के हिस्से के बजट में कटौती करने के लिए केन्द्र से अधिक जवाबदार राज्य शासन का तंत्र जवाबदार है जिन्होंने प्रभावी प्रस्तुति नहीं दी. लेकिन उन्होंने ऐसे तंत्र के हाथ में कमान सौंप दी है जो ना हो हां में बदलवाने का गुर जानते हैं. मुख्य सचिव के पद पर अनुभवी अफसर एसआर मोहंती की पदस्थापना इस बात का संकेत है. मुख्यमंत्री कमल नाथ कह चुके हैं कि बदले नहीं, बदलाव की दृष्टि उनकी रहेगी और इसी दृष्टि के साथ सेवानिवृत हुए मुख्य सचिव बीपी सिंह को नया काम सौंप दिया है. काबिल और मेहनती अफसरों को काम करने का अवसर दिया जा रहा है और एक नई कार्यसंस्कृति मध्यप्रदेश में देखने को मिल रही है. मितव्ययता भी नई सरकार की प्राथमिकता में है क्योंकि हजारों करोड़ के कर्ज डूबे प्रदेश को उबारना है और विकास कार्यों को अंजाम तक पहुंचाना भी है. जनता के विश्वास पर खरे उतरने के लिए हाल-फिलहाल राज्य की कांग्रेस सरकार के पास तीन महीने का वक्त है. यही तीन माह इस बात की गवाही देंगे कि लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा. राज्य सरकार की नीति और नीयत से भरोसा बढ़ा तो दिल्ली दूर नहीं होगी. यकीन किया जाना चाहिए कि साल 2019 का सूरज विश्वास की नई किरण के साथ देश के ह्दय प्रदेश को आलोकित करेगा. 

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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  1. प्रस्तुत राजनैतिक निबंध, ‘वचन’ और ‘संकल्प’ का नया साल, पढ़ते मैं क्षण भर अतीत में जा मनोज कुमार जी का सोचता हूँ| वे दस वर्ष के रहे होंगे और उनके मुख से “ये हाथ हमको दे दे ठाकुर!” और “अरे ओ साम्भा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर?” सुन बड़े- बुजुर्ग खुश हो माथा चूम लेते होंगे| दिल्ली में रहते मैंने वर्षों ऐसे दृश्य देखे थे| ये तब की बात थी जब आये दिन इन आलापों को सुन मैं आज भी सोच दंग रह जाता हूँ कि भारत में हम अच्छाई से कम बुराई से क्योंकर अधिक प्रभावित होते हैं| कुछ ही वर्षों पहले संजय द्विवेदी जी को ढूँढ़ते कांग्रेस द्वारा प्रवक्ता.कॉम के किवाड़ खटखटाने पर मैं आज भी “यहाँ से पचास पचास कोस दूर गाँव में, जब बच्चा रोता है, तो माँ कहती है बेटे सो जा, सो जा नहीं तो कांग्रेस, मेरा मतलब गब्बर सिंह आ जाएगा” का सोच पूछता हूँ “तेरा क्या होगा कालिया?”

    मैं दृढ़ विश्वास से कह सकता हूँ कि आज वयस्क बनी तब की युवा पीढ़ी में अधिकांश लोगों को रामगढ़ के ठाकुर बलदेव सिंह की पहचान तक न होगी| तथाकथित स्वतंत्रता के पश्चात से प्रत्येक नये साल के धूल चाटते ‘वचन’ और ‘संकल्प’ को पूरा करने में व्यस्त व इक्कीसवीं शताब्दी की नई उपलब्धियों को जुटाने में लगे युगपुरुष मोदी के नेतृत्व व दिशा-निर्देशन में राष्ट्रीय शासन को हटाने में लगे राष्ट्र-विरोधी तत्व उस युवा-पीड़ी में बहुत से पथभ्रष्ट लोगों को साथ लिए हुए है| अब आगामी लोकसभा के निर्वाचनों तक एकमात्र प्रश्न यह रहेगा कि कमल से नहीं बल्कि सोशल-मीडिया पर यूट्यूब और फेसबुक में कीचड़ से उठ कोई स्वच्छ मध्य प्रदेश अथवा स्वच्छ भारत कैसे बना पाएगा?

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